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Showing posts from March, 2022

धर्म परिवर्तन का बहाना और हिन्दुत्व का ऐजेंडा

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अक्सर यह कहा जाता है कि मुगलों ने जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाया था  लेकिन अंग्रेजी शासन के समय के आंकड़े कुछ और ही कह रहे है। 1881 की जनगणना के मुताबिक संयुक्त पंजाब में हिन्दू जाटों की जनसंख्या 14 लाख 45 हजार थी। पचास वर्ष बाद अर्थात 1931 में जनसंख्या होनी चाहिए थी 20 लाख 76 हजार  लेकिन घटकर 9 लाख 92 हजार रह गई। संकेत साफ है कि अंग्रेजी शासन के इन 50 सालों में 50%जाट सिक्ख व मुसलमान बन गए। इस दौरान हिंदुओं की आबादी 43.8%से घटकर 30.2%हो गई  व सिक्खों की आबादी 8.2% से बढ़कर 14.3%  व मुसलमानों की आबादी 40.6% से बढ़कर 52.2% हो गई। जाटों ने धर्म परिवर्तन इसलिए किया क्योंकि ब्राह्मण धर्म का कास्ट-सिस्टम इनको जलील कर रहा था। पाखंड व अंधविश्वास की लूट उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही थी। जाट सदा से प्रकृति के नजदीक रहा है।  इंसान जीवन मे सरलता ढूंढता है  लेकिन ब्राह्मण धर्म ने कर्मकांडों का जंजाल गूंथ दिया था  जिससे मुक्ति के लिए धर्म परिवर्तन करना पड़ा। हालांकि दयानंद सरस्वती के अथक प्रयासों के कारण जाटों को धर्म परिवर्तन से रोका गया था। मूर्तिपूजा का विरोध करके जाटों को ...

कश्मीर 1947 परिस्थिति

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 #कश्मीर_1947_परिस्थिति #नेहरू_जिन्ना_माउंटबेटन_सयुंक्त_राष्ट्र_जनमत_संग्रह #मिथक_और_तथ्य  आरोप लगता है कि नेहरू की वजह से कश्मीर समस्या है,पटेल की जगह नेहरू ने इसे अकेले हैंडल किया इसलिए सब गुड़गोबर हो गया, UN जाकर सत्यानाश किया।सच क्या है? #इति_श्री_इतिहास  में लाल चौक पर झंडा फहराकर भीड़ के बीच खड़े पं.नेहरू की तस्वीर देखते हुए । अब थोड़ा धैर्य से पढ़िएगा अब तथ्य  सितंबर का महीना,1949। कश्मीर घाटी में एक बेहद खास सैलानी पहुंचते हैं, नाम था पंडित जवाहर लाल नेहरू। झेलम नदी इस बात की गवाह है कि पं.नेहरू और शेख अब्दुला उसकी गोद  में थे। दोनों ने करीब 2 घंटे तक खुले आसमान के नीचे नौकाविहार किया।आगे-पीछे खचाखच भरे शिकारों की कतार थी...  हर कोई प.नेहरू को एक नजर निहार लेना चाहता था। नेहरू पर फूलों की वर्षा हो रही थी, नदी के किनारे आतिशबाजी हो रही थी, स्कूली बच्चे नेहरू-अब्दुला जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। इस पर टाइम मैग्जीन ने लिखा- ''सारे लक्षण ऐसे हैं कि हिंदुस्तान ने कश्मीर की जंग फतह कर ली है'' मगर ये...बात तो तब की है जब कश्मीर का भारत में विलय हो चुका था,...

होलिका दहन और नैतिक मुल्य।

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होलिका दहन करने वाले इस लेख को अवश्य पढ़ें--- गत कई दिनों से पूरे देश के शैक्षणिक संस्थानों, मीडिया- चैनलों एवं राजनीतिक गलियारों में धर्मनिरपेक्षता की धज्जियां उड़ाते हुए होली मनाने की धूम मची हुई है। हर जगह आज की रात्रि में होलिका (महिला)का दहन किया जायेगा और कल रंग-अबीर उड़ाते हुए होली मनाई जाएगी। प्राचीन भारत में इस त्योहार की शुरुआत महान सम्राट हिरण्यकश्यप की हत्या और वैज्ञानिक एवं तकनीकी विशेषज्ञा हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के दहन करने से हुई थी।उसके पुत्र प्रह्लाद जो आर्य ब्राह्मणवादी देवता विष्णु के भक्त थे ,के जीवित बच जाने की खुशी से जुड़ी कहानी से हुई थी। इसके अलावा जितने भी ब्राह्मणवादी पुराण और पौराणिक कथाएं हैं उनमें तरह-तरह के विवरण मिलते हैं जो एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न और विपरीत हैं। दरअसल सिन्धु - हड़प्पा सभ्यता में इस त्योहार का कोई स्थान नहीं था। लगभग 1750 ईसा पूर्व से 1000ईसा पूर्व के बीच आर्यों-ब्राह्मणों द्वारा संपूर्ण सिंधु घाटी में वहां के मूलनिवासियों असुर,राक्षस, नाग, दास,दैत्य,दानव आदि की सम्पत्ति,सत्ता और संस्कृति पर कब्जा कर लिया गया था। फिर वे पूरब एवं दक्...

काश्मीर फाइल्स और राजनीतिक ताने-बानें

 The Kashmir Files देखते हुए मुझे Mathieu Kassovitz की फ़िल्म La Haine का एक डायलॉग बार बार याद आता रहा - "Hate Breeds Hate" ख़ैर …  मैं हर कहानी को पर्दे पर उतारने का समर्थक हूँ। यदि कहानी ब्रूटल है, तो उसे वैसा ही दिखाया जाना चाहिए।  जब टैरंटीनो और गैस्पर नोए, फ़िक्शन में इतने क्रूर दृश्य दिखा सकते हैं तो रियल स्टोरीज़ पर आधारित फ़िल्मों में ऐसी सिनेमेटोग्राफ़ी से क्या गुरेज़ करना। और वैसे भी, तमाम क्रूर कहानियाँ, पूरी नग्नता के साथ पहले भी सिनेमा के ज़रिए दुनिया को सुनाई और दिखाई जाती रही हैं।  रोमन पोलांसकी की "दा पियानिस्ट" ऐसी ही एक फ़िल्म है। ..  जलीयांवाला बाग़ हत्याकांड की क्रूरता को पूरी ऑथेंटिसिटी के साथ शूजीत सरकार की "सरदार ऊधम" में फ़िल्माया गया है। मगर आख़िर ऐसा क्या है कि पोलांसकी की "दा पियानिस्ट" देखने के बाद आप जर्मनी के ग़ैर यहूदीयों के प्रति हिंसा के भाव से नहीं भरते? और शूजीत सरकार की "सरदार ऊधम" देखने के बाद आपको हर अंग्रेज़ अपना दुश्मन नज़र नहीं आने लगता।  पर कश्मीर फ़ाइल्स देखने के बाद मुसलमान आपको बर्बर और आतंक...