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Showing posts from February, 2021

कोविड-19 का राजनीतिक अर्थशास्त्र

मनीष आज़ाद राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। इसीलिए सत्ता के दमन का शिकार भी हो चुके हैं। 29 फरवरी को 8 महीने बाद वे जेल से रिहा हो कर लौटे हैं। इसके पहले भी वे दस्तक के लिए लिखते रहे हैं। प्रस्तुत है कोरोना वायरस की महामारी से जुड़े तमाम पहलुओं को बताता उनका यह लेख।  यह लेख इस मायने में बेहद महत्वपूर्ण है कि अमेरिकी साम्राज्यवाद जहां इसका ठीकरा चीन पर, भारत इसका ठीकरा  मुसलमानों पर फोड़ रहा है, यह लेख इस महामारी के कारणों पर वैज्ञानिक रूप से प्रकाश डालता है, ताकि आने वाले समय के लिए हम अपने विकास का रास्ता साफ साफ देख सकें। नाजी जर्मनी में जब ‘सोफी’ नाम की एक महिला को उसके दो बच्चों के साथ नाजी सैनिक गैस चैम्बर में लाये तो उन्होंने सोफी के रोने गिड़गिड़ाने के बाद उसके दो बच्चों में से एक को जिन्दा छोड़ने का वादा किया, लेकिन कौन जिन्दा रहेगा और कौन गैस चैम्बर में जायेगा, यह चुनाव उन्होंने सोफी पर ही छोड़ दिया। 1979 में इसी कहानी पर आधारित ‘सोफीज च्वाइस’ नाम के उपन्यास की सफलता के बाद अंग्रेजी में ‘सोफीज च्वाइस’ [Sophie’s choice] एक मुहावरा ही चल पड़ा। आज जब मैं कोरोना वाइरस से भयाक्रान्त ला...

बहुजन नायक संत गाडगे जी

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बहुजन नायक संत गाडगे जी की जयंती दिनांक 23 फ़रवरी 21 को अंबेडकर विचार एवं सामाजिक कार्य विभाग, टीएमबीयू , भागलपुर में समारोह पूर्वक मनाई गई। संत गाडगे जी जीवन पर प्रकाश डालते हुए विभाग के अध्यक्ष डॉ.विलक्षण रविदास ने कहा बहुजन नायक संत गाडगे अनपढ़ रहते हुए शिक्षा का अलख जगाते हुए दर्जनों स्कूल, हॉस्टल, महिला स्कूल, धर्मशाला आदि का निर्माण कराया। ये अपने झाड़ू से बाहर का कचरा निकलते हुए दिमाग में कचरे को साफ करने को कहा। मुख्य अतिथि विष्णुदेव रजक (सेवानिवृत्त डीएसपी) ने कहा संत गाडगे ने जो सपना बहुजन समाज के लिए देखा था उसमें बहुजन हिताय-बहजन सुखाय था। देश के विभिन्न हिस्सों में जाकर अपने संवाद कला से लोगों के बीच फैले अंधविश्वास को मिटाने का काम जीवनपर्यंत करते रहे। आज हमारे सामने एक बड़ी चुनौती है जिसे हम-सब मिलकर सफल करेंगे। सामाजिक न्याय आंदोलन, बिहार के गौतम कुमार प्रीतम ने कहा ब्राह्मणवादी-पितृसत्तात्मक अपसंस्कृति ने हमेशा से इस मुल्क के बहुजनों के साथ अन्याय-उत्पीड़न करता आया है जिसका जवाब बहुजन नायकों ने समय-समय पर देने का काम भी किया है आज मुल्क में ब्राह्मणवाद फिर से पूँजीपति...

तिलकामांझी

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आज (11 Feb 2021) तिलकामांझी की जयंती है। तिलकामांझी प्रथम ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ बगावत की थी। 1857 के विद्रोह के लगभग 100 साल पहले ही उन्होंने यह बगावत की थी, किन्तु उन्हें भारतीय इतिहास में वह शोहरत नहीं मिली, जिसके वे हकदार थे। इसकी वजह कुछ भी हो सकती है। मसलन वे आदिवासी थे, यह भी वजह रही होगी। और इतिहास लेखन पर ब्राह्मणवादी वर्चस्व रहा है, यह भी वजह हो सकती है। औपनिवेशिक संरक्षण में ही तो प्रारम्भिक दौर का इतिहास लेखन हुआ था। कौशलेन्द्र मिश्र लिखते हैं कि भारत में स्वाधीनता संग्राम की प्रथम मशाल सुलगाने वाली बिहार की संथाल परगना, भागलपुर छोटा नागपुर के अंचल की जंगली आदिवासी जातियां भले ही इतिहास की किताबों में न मिलती हो, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिला देने वाली इन जातियों को कभी भुलाया नहीं जा सकता। इन्हीं आदिवासी जातियों में तिलकामांझी का नाम प्रथम विद्रोही के रूप में लिया जाता है। 1857 के भारतीय स्वाधीनता संग्राम के 90 वर्ष पूर्व अंग्रेजी शासन की बर्बरता के जघन्य कार्यों के विरूद्ध उसने आवाज उठायी थी। उसे महान क्रान्तिकारी का अध्याय-काल 1750 से ...

सामाजिक न्याय Social Justice

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                                            Social Activist Himashu Kumar साइकिल यात्रा के दौरान स्कूल के बच्चों के साथ मेरी बातचीत, मैनें बच्चों से पूछा, समाज में ज़्यादा मेहनत करने वाले मज़े में है, या कुर्सी पर बैठ कर हुकुम चलाने वाले मजे में हैं, बच्चों ने जवाब दिया कुर्सी पर बैठ कर हुकुम चलाने वाले, मैनें पूछा, मेहनत करने वाले तकलीफ में और कुर्सी पर बैठ कर हुकुम चलाने वाले मजे में, क्या यह न्याय है ? बच्चों नें जवाब दिया नहीं यह अन्याय है, मैनें अगला सवाल किया, हम सब गन्दगी करते हैं, लेकिन एक खास ज़ात के लोग उसे साफ करते हैं, गन्दगी करने वाले अच्छे होते हैं या सफाई करने वाले ? बच्चों ने जवाब दिया सफाई करने वाले अच्छे, मैनें पूछा ज़्यादा इज़्जत किसकी होनी चाहिये ? गन्दगी करने वालों की या सफाई करने वालों की ? बच्चों ने जवाब दिया सफाई करने वालों की, मैनें पूछा क्या सफाई करने वालों को ज़्यादा इज़्जत मिलती है ? बच्चों ने कहा नहीं मिलती, मैनें पूछा यह न्य...

कौन है मनदीप पूनिया?

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  कौन है मनदीप पूनिया? क्या है उसकी पूरी कहानी, और हमें उसके लिए क्यों खड़ा होना चाहिए? ------------------- मनदीप पूनिया एक फ्रीलांस पत्रकार है, उसने साल 2017-18 में IIMC (Indian Institute of mass communication) से पढ़ाई की.  साल 2018 में मनदीप IIMC प्रशासन के खिलाफ 'हॉस्टल' की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे थे. तीन दिन तक चली उस भूख हड़ताल के बाद प्रशासन को पीछे हटना पड़ा और आने वाले बैच के लिए होस्टल देना पड़ा. आज उस हॉस्टल में 42 बच्चों को रहने के लिए जगह मिलती है.  चूंकि मैं भी उनके साथ पढ़ा हूँ. हम दोनों क्लासमेट थे. मनदीप को मैं बहुत नजदीक से जानता हूँ. उसे पैसों का मोह नहीं है, IIMC से पढ़ने के बाद मनदीप ने बहुत जगह जॉब नहीं देखीं, उसने मीडिया में चुनिंदा जगहों को ही अपने काम के लायक समझा. वह मीडिया से निराश था ही कि इसी बीच उसके पिता दुनिया छोड़कर चले गए, मीडिया की हालत देखकर मनदीप अपने गांव लौट गया और वहां जाकर खेती करने लगा. लेकिन खेती सिर्फ इसलिए की ताकि पेट भरता रहे और जहां-तहां आंदोलनों की रिपोर्ट करने के लिए आने-जाने का किराया आ जाया करे.  मनदीप ने खेती की लेकि...