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Showing posts from August, 2021

आरक्षण का विरोध करने वाले लोग

जाति आधारित आरक्षण का विरोध करने वाले लोग आमतौर पर निम्न बिंदुओं पर भी अपने तर्क और दावे प्रस्तुत करते हैं -  1. योग्यता की हत्या होती है - ज्यादातर आरक्षण विरोधी लोग यही तर्क देते हैं कि आरक्षण लागू होने पर योग्यता की हत्या होती है। वे कहते हैं कि उच्च शिक्षा जैसे मेडिकल, इंजीनियरिंग में अयोग्य लोगों को प्रवेश मिलेगा। जवाब - हजारों सालों से दबे-कुचले लोगों को मौका देने पर ही योग्यता आयेगी और वे अपने आपको योग्य बना लेंगे। यदि योग्यता ही एक मात्र मापदंड है तो पेमेंट-शीट, मंत्री कोटे, अफसर कोटे से अगड़े के बिगड़े बच्चों को प्रवेश देने में आपत्ति क्यों नहीं उठाते? कहीं इसलिए तो नहीं कि ये कोटे उन्हीं के लिए ही आरक्षित हैं? 2. आरक्षण से समाज में जातिवाद को बढ़ावा मिलता है और असली जरूरतमंदों को यानि निर्धनों को कोई लाभ नहीं मिलता है। जवाब - योग्यता तंत्र की दुहाई देने वाले लोग यह मानकर चलते हैं कि प्रतिभा और योग्यता उनकी जातियों की बपौती है। यह वैसा ही तर्क है जैसा कभी अंग्रेज हिन्दुस्तानियों के बारे में दिया करते थे कि हिन्दुस्तानियों को शासन की बागडोर सौंपी गई तो सब कुछ चौपट हो जाएगा। वा...

ग्रेट पेरियार नायकर के ईश्वर से कुछ सवाल

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1977 की बात है,मद्रास हाईकोर्ट में एक याचिका आई जिसमें कहा गया था कि तमिलनाडु में पेरियार की मूर्तियों के नीचे जो बातें लिखी हुई हैं, वे आपत्तिजनक हैं और लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाती हैं इसलिए उन्हें हटाया जाना चाहिए। याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि ईरोड वेंकट रामास्वामी पेरियार जो कहते थे, उस पर विश्वास रखते थे इसलिए उन के शब्दों को उन की मूर्तियों के पैडेस्टर पर लिखवाना गलत नहीं है। पेरियार की मूर्तियों के नीचे लिखा था- ‘ईश्वर नहीं है और ईश्वर बिलकुल नहीं है। जिस ने ईश्वर को रचा वह बेवकूफ है, जो ईश्वर का प्रचार करता है वह दुष्ट है और जो ईश्वर की पूजा करता है वह बर्बर है।’ ग्रेट पेरियार नायकर के ईश्वर से सवाल : 1. क्या तुम कायर हो जो हमेशा छिपे रहते हो, कभी किसी के सामने नहीं आते? 2. क्या तुम खुशामद परस्त हो जो लोगों से दिन रात पूजा, अर्चना करवाते हो? 3. क्या तुम हमेशा भूखे रहते हो जो लोगों से मिठाई, दूध, घी आदि लेते रहते हो ? 4. क्या तुम मांसाहारी हो जो लोगों से निर्बल पशुओं की बलि मांगते हो? 5. क्या तुम सोने के व्यापारी हो जो मंदिरों में लाखों टन सोना दबाये ब...

तानाशाही और अंधविश्वासों पर टिके हुए सामाजिक आधार

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उपनिवेश विरोधी संघर्ष के दौरान भारत के उच्च-वर्गीय नेताओं ने जान-बूझकर भारतीय राष्ट्रवाद को हिंदू राष्ट्रवाद के प्रतिनिधि रूप में पेश किया।  स्वाभाविक ही था कि उन्होंने इस राष्ट्रवाद को उन हिंदू ग्रथों में तलाश किया जो दलित-बहुजन को आध्यात्मिक रूप में अशुद्ध और ऐतिहासिक रूप से मूर्ख करार देती थीं। फुले, पेरियार और अंबेडकर को छोड़कर किसी भी और राष्ट्रवादी नेता ने राष्ट्रवादी विमर्श को धर्म-निरपेक्ष रखने और उसमें हिंदू चेतना की अवैज्ञानिकता की आलोचना को जगह देने का प्रयास नहीं किया। हिंदू धर्म को केन्द्र मे रखकर किया जानेवाला मुख्य धारा का समूचा विमर्श यही कहता है कि यह एक पवित्र धर्म रहा है, इसकी उत्पादन-विरोधी और विज्ञान -विरोधी नैतिकता पर कभी किसी ने कोई सवाल नहीं उठाया। इससे अविकास की एक विनाशकारी प्रक्रिया शुरू हुई। हिंदू आध्यात्मिक ने बौद्धिक गरीबी का निर्माण किस-किस तरह किया और भाऋत के आध्यात्मिक, सामाजिक और नैतिक तंत्र में अब हमारे पास क्या विकल्प हैं। देश को हिंदू धर्म की आध्यात्मिक तानाशाही और अंधविश्वासों पर टिके हुए सामाजिक आधार से रचनात्मक आध्यात्मिक के लोकतंत्र तक ले जान...

बहुजन राजनीति का मॉडल प्रदेश तमिलनाडु- 1912 ( जस्टिस पार्टी) से एम. के स्टालिन तक

तमिलनाडु में द्रविड़ बहुजन राजनीति  की औपचारिक शुूरूआत 1916 में तब हुई, जब जस्टिस पार्टी ने गैर-ब्राह्मण घोषणा-पत्र जारी किया। ब्राह्मणवाद बनाम गैर-ब्राह्मणवाद का संघर्ष ही इस घोषणा-पत्र का मूल स्वर था। तमिलनाडु (तब मद्रास प्रेसीडेंसी)  में ब्राह्मणों का वर्चस्व किस कदर था, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 1912 में वहां ब्राह्मणों की आबादी सिर्फ 3.2 प्रतिशत थी, जबकि 55 प्रतिशत जिला अधिकारी और 72.2 प्रतिशत जिला जज ब्राह्मण थे। मंदिरों और मठों पर ब्राह्मणों का कब्जा तो था ही जमीन की मिल्कियत भी उन्हीं लोगों के पास थी। इस प्रकार तमिल समाज के जीवन के सभी क्षेत्रों में ब्राह्मणों का वर्चस्व था 1915-1916 के आसपास मंझोली जातियों की ओर से सी.एन. मुलियार, टी. एन. नायर और पी. त्यागराज चेट्टी ने जस्टिस आंदोलन की स्थापना की थी। इन मंझोली जातियों में तमिल वल्लाल, मुदलियाल और चेट्टियार प्रमुख थे। इनके साथ ही इसमें तेलुगु रेड्डी, कम्मा, बलीचा नायडू और मलयाली नायर भी शामिल थे। 1920 में मोंटेग-चेम्सफोर्ड सुधारों के अनुसार मद्रास प्रेसीडेंसी में एक द्विशासन प्रणाली बनायी गयी जिसमें प्...