आरक्षण का विरोध करने वाले लोग

जाति आधारित आरक्षण का विरोध करने वाले लोग आमतौर पर निम्न बिंदुओं पर भी अपने तर्क और दावे प्रस्तुत करते हैं - 


1. योग्यता की हत्या होती है - ज्यादातर आरक्षण विरोधी लोग यही तर्क देते हैं कि आरक्षण लागू होने पर योग्यता की हत्या होती है। वे कहते हैं कि उच्च शिक्षा जैसे मेडिकल, इंजीनियरिंग में अयोग्य लोगों को प्रवेश मिलेगा।


जवाब - हजारों सालों से दबे-कुचले लोगों को मौका देने पर ही योग्यता आयेगी और वे अपने आपको योग्य बना लेंगे। यदि योग्यता ही एक मात्र मापदंड है तो पेमेंट-शीट, मंत्री कोटे, अफसर कोटे से अगड़े के बिगड़े बच्चों को प्रवेश देने में आपत्ति क्यों नहीं उठाते? कहीं इसलिए तो नहीं कि ये कोटे उन्हीं के लिए ही आरक्षित हैं?


2. आरक्षण से समाज में जातिवाद को बढ़ावा मिलता है और असली जरूरतमंदों को यानि निर्धनों को कोई लाभ नहीं मिलता है।


जवाब - योग्यता तंत्र की दुहाई देने वाले लोग यह मानकर चलते हैं कि प्रतिभा और योग्यता उनकी जातियों की बपौती है। यह वैसा ही तर्क है जैसा कभी अंग्रेज हिन्दुस्तानियों के बारे में दिया करते थे कि हिन्दुस्तानियों को शासन की बागडोर सौंपी गई तो सब कुछ चौपट हो जाएगा। वास्तव में जिम्मेदारी मिलने पर ही योग्यता आती है।


यहां जातिवाद को बढ़ावा का प्रश्न ही नहीं है, क्योंकि ऐक जाति कमजोर एक जाति ताकतवर होने पर ही जातिवाद को बढ़ावा मिलता है। सभी जाति एक समान हो जाने पर जाति का मूल्य खत्म हो जायेगा और समानता के लिए आरक्षण आवश्यक है।


3. चिकनी परत मलाई मारता है - आरक्षण विरोधी लोग अक्सर यह कहते सुने जातै हैं कि चिकनी परत (जिन्होंने आरक्षण लेकर तरक्की की है) ही मलाई मारता है, बाकी वैसे के वैसे ही रहते हैं।


जवाब - चिकनी परत पूरे आरक्षण लाभार्थी का केवल 1 से 3 प्रतिशत है, बाकी 97 प्रतिशत भी आरक्षण का लाभ उठाते हैं, किन्तु इन्हें केवल चिकनी परत की समस्या क्यों है? 97 प्रतिशत लोगों को लाभ मिलने का पक्ष क्यों छिपा दिया जाता है। दरअसल इनका चिकनी परत में शामिल होना (तरक्की करना) ही खलता है।


4. आगे बढ़ गये लोग समाज से कट जाते हैं - गली-मुहल्ले, गोष्ठियों तथा रेल डिब्बों में ऐसे तर्क अक्सर दिये जाते हैं कि आरक्षण का लाभ पाकर बढ़ गये लोगों द्वारा समाज से रोटी-बेटी का नाता नहीं रखा जाता अर्थात वे समाज से कट जाते हैं, इसलिए इन्हें आरक्षण नहीं देना चाहिए।


जवाब - यदि वे अपने समाज से अट जाते हैं तो इन्हें क्यों चिंता हो रही है। जब आगे बढ़े ब्राह्मणों, क्षत्रियों ने मुगलों से हूणों, कुषाणों से रोटी-बेटी का संबंध किया तो उस पर वे मौन क्यों साधे हुए हैं? क्या वे रोटी-बेटी की स्वतंत्रता का भी हनन करना चाहते हैं? वैसे भी अन्तर्जातीय विवाह, जातिप्रथा के लिए एक जहर का काम करता है।


- संजीव खुदशाह (आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग)

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