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Showing posts from June, 2021

ब्राह्मणवाद

  गैर ब्राह्मणों को अवश्य विचार करना चाहिए! "ब्राह्मण" सरेआम सड़कों पर अपने समुदाय को कभी गाली नही बकता.. "सड़कों, चौराहों, ढाबों और अपने ही घरों" में बात-बात पर गाली बकने वाली मख्लूक कौम "दलित-मुस्लिम, ओबीसी, किसान व क्षत्रिय-राजपूत" समुदाय है।  ब्राह्मणों को पहले आरक्षण नही मिलता था, फिर भी सरकार के हर तंत्र की मशीनरी में सबसे ज्यादा "ब्राह्मण" पुर्जे लगे हुए हैं और रिमोट-कंट्रोल भी ब्राह्मणों के हाथ में है। ब्राह्मणो का नाम चिन्दी चोरियों, जेबकतरी,, लूटेरों व दादागिरि में नही आता, जब्कि इनका नाम बड़े बड़े घोटालो में स्वर्ण अक्षरों में  नाम मिल जाएगा..  ये टपोरीबाज़ी  नही करते। जब्कि ये बड़े बड़े दंगो में जाँच के केंद्र में रहते हैं और जब चाहे जाँच की दिशा भी मोड़ देते हैं.. ये देर रात घर के बाहर सिगरेट चाय का आनंद लेते नही नजर आते। आपको देशी शराब के ठेकों पे दारु पीते हुए ब्राह्मण नही मिलेंगे... ब्राह्मण आपको आलिशान बार, आश्रम, दरबार में मिलेगा.. शराब पीकर "गटर नालों" में दलित-मुस्लिम ओबीसी, किसान, दलित, क्षत्रिय-राजपूत मिलते रहते हैं।  सड़को...

Caste system in Islam मुसलमानों में जातियां

 मुसलमानों में सवर्ण, पिछड़ा और दलित जातियां हैं। इनकी आपस में शादियाँ नहीं होतीं। फिर शिया व सुन्नी दो बड़े सेक्शन हैं। इनकी आपस में शादियाँ तो छोड़िए अमूमन दोस्ती तक नहीं होती, दुश्मनी भले रहे या हो जाये। पाकिस्तान में तो इनके बीच जंग ही होती रहती है।  इन दो धड़ो में फिर ढेर सारे फिरके हैं, मसलन सुन्नियों में वहाबी, बरेलवी, अहले हदीस आदि। इनकी भी आपस में शादियाँ नहीं होतीं, कई तो एक दूसरे की मस्जिदों में नमाज़ तक नहीं पढ़ते। मेरा ताअल्लुक़ बरेलवी ग्रुप से है और मुझे लगता है कि हमारा ग्रुप सबसे खुराफ़ाती मुसलमान है। बरेलवी की मस्जिद में किसी और फिरके के लोग आ जाएं तो मारपीट तक हो सकती है, बाकी मस्जिद धोयी जाएगी, ये तो पक्की बात है।  हिन्दू धर्म में धर्मांतरण हो जाये तो संकट खड़ा हो जाएगा कि उसे किस जाति में रखा जाए। मुसलमानों में शिया या सुन्नी में जाना तो आसान है लेकिन जाति वाला संकट यहां भी है।  वहाबी व अहले हदीस तबक़े से पिछले कुछ सालों में एक तरक्कीपसंद तबका पैदा हुआ है जो जाति तोड़कर शादियाँ कर रहा है लेकिन ये अभी प्रचलन में बहुत कम है। शिया समूह के बारे में ज़्यादा लिखने ...

संत कबीर

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संत परंपरा में कबीर वर्ग संघर्ष को लेकर प्रतिबद्ध थे! कबीर डंके की चोट पर कहते हैं कि 'तू बाम्हन मैं कासी का जुलाहा।' अगर कहें तो धर्मनिरपेक्षता का सबसे बेहतर उदाहरण आपको कबीर के यहां मिलेगा।  कबीर कहते हैं कि  पाथर पूजे तो हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहाड़। ताते या चाकी भली, पीस खाए संसार।। काँकर पाथर जोरि कै, मस्जिद लई बनाय। ता चढ़ मुल्‍ला बांग दे, बहिरा हुआ खुदाए।। कबीर एक ऐसे संत हैं जिसे किसी बंधनों में नहीं बांधा जा सकता है। कबीर कहते हैं कि 'पंछी खोज मीन को मारग, कहहि कबीर दोउ भारी।' आकाश में पक्षी की उड़ान का रास्ता और मछली का जल-मार्ग खोजना दुस्तर है। अगर स्वतंत्रता के अभिव्यक्ति की झलक आपको देखना है तो आप कबीर के परंपराओं में देख सकते हैं। कबीर ही ऐसे संत हैं जो कभी भी हीनता बोध का शिकार नहीं हुआ।  बच्चन सिंह अपने हिंदी साहित्य के दूसरा इतिहास में लिखते हैं कि ' बैठे-ठाले साधुओं तथा अगृहस्थ होकर भी गृहस्थी का उपदेश देनेवाले भक्तों के सामने वह शारीरिक श्रम का उदाहरण प्रस्तुत करता है। गृहस्थी में रहकर भी उससे वीतराग। छोटी जाति में पैदा होने पर भी उसमें हीनता की ग्...