ब्राह्मणवाद

  गैर ब्राह्मणों को अवश्य विचार करना चाहिए!

"ब्राह्मण" सरेआम सड़कों पर अपने समुदाय को कभी गाली नही बकता.. "सड़कों, चौराहों, ढाबों और अपने ही घरों" में बात-बात पर गाली बकने वाली मख्लूक कौम "दलित-मुस्लिम, ओबीसी, किसान व क्षत्रिय-राजपूत" समुदाय है। 

ब्राह्मणों को पहले आरक्षण नही मिलता था, फिर भी सरकार के हर तंत्र की मशीनरी में सबसे ज्यादा "ब्राह्मण" पुर्जे लगे हुए हैं और रिमोट-कंट्रोल भी ब्राह्मणों के हाथ में है।

ब्राह्मणो का नाम चिन्दी चोरियों, जेबकतरी,, लूटेरों व दादागिरि में नही आता, जब्कि इनका नाम बड़े बड़े घोटालो में स्वर्ण अक्षरों में  नाम मिल जाएगा..

 ये टपोरीबाज़ी  नही करते। जब्कि ये बड़े बड़े दंगो में जाँच के केंद्र में रहते हैं और जब चाहे जाँच की दिशा भी मोड़ देते हैं..

ये देर रात घर के बाहर सिगरेट चाय का आनंद लेते नही नजर आते। आपको देशी शराब के ठेकों पे दारु पीते हुए ब्राह्मण नही मिलेंगे... ब्राह्मण आपको आलिशान बार, आश्रम, दरबार में मिलेगा.. शराब पीकर "गटर नालों" में दलित-मुस्लिम ओबीसी, किसान, दलित, क्षत्रिय-राजपूत मिलते रहते हैं। 

सड़को पे घूम घूम कर अगरबत्ती बेचने का काम "दलित-मुस्लिम, दलित ओबीसी" जाति के लोग करते हैं। जब्कि, ब्राह्मण उसी अगरबत्ती को 7 बार हवा में घुमाकर 700 रु. बना सकने की काबिलियत रखते हैं। 

जेलों में मुस्लिम दलित, ओबीसी, किसान व क्षत्रिय-राजपूतों से भरे पड़े हैं।, जब्कि ब्राह्मण वहाँ बाइज्जत व मुश्किल से नजर आता है..

 ब्राह्मणों ने शासन-प्रशासन, कोर्ट-कचहरी का हिस्सा बनकर अपराधी को नियंत्रित करने का काम अपनाया और जो जेल में बंद हैं, वे अपने अपराध करने की इच्छा को नियंत्रित नही कर सकते.और इनकी नाक रबर की तरहं लम्बी होकर व इनकी जर-जोरु-जमीन-जान पीढी-दर-पीढी रंजिश की बलि चढती रहती है। 

दंगो में कभी-भी ब्राह्मण तलवार भाला लेकर घर से बाहर नही निकलता.. वो अपनी पॉश कॉलोनी, आश्रम मन्दिरों, धाम में सुरक्षाबलों के घेरे में सुरक्षित रहता है। मरने मारने का जिम्मा "मुस्लिम दलित, किसान, राजपूत, ओबीसी" के सिर पर  होती है।  

केवल 5% ब्राह्मण जाति के लोग  95% गैर जाति के लोगों को भेड-बकरियों की तरह कैसे हांक रहे  हैं.... जरा इस बारे में सोचिये ??

जब देश आज़ाद हुआ तब ब्राह्मणों को सबसे पहले इस बात की समझ आ गयी थी की अब धार्मिक किताबें सत्ता में बने रहने के लिए अपर्याप्त हैं.. इसलिए उन्होंने धार्मिक किताबें "दलितों, ओबीसी, किसान व राजपूतों के हाथ में" थमाकर खुद संविधान की किताब पढ़ने लगे। 

मुसलमानों को तो ब्रिटिश राज में 1857 के ग़दर के फौरन बाद से तीन अलग अलग फिरकों के मदरसे मिल चुके थे। वे वहां एक दूसरे के खिलाफ गड्डा खोदने में मस्त रहे और आज़ादी के बाद "दलित ओबीसी, किसान व राजपूत" ईश्वर व ब्राह्मणों को प्रसन्न करने के लिये तरह तरह के अनुष्ठान, कथावाचन करवाने लगे हैं।। 

ब्राह्मणो ने संविधान कोर्ट-कचहरी को अपनी शक्ति और शेष जाति के लोगों को वोटबैंक, बन्दरसेना व सुरक्षागार्ड बनाया और " मुस्लिम, दलित, ओबीसी, किसान, राजपूतों" ने अपने अपने धर्म को अपनी शक्ति समझा , हालांकि धर्म को तो इन्होंने कभी समझा ही नही था.. बहुत कम लोग हुए जो धर्म का असल मर्म समझ पाए हैं। अब यही लोग मर्महीन रैलियों झांकियों में शोर मचाने को धर्म समझते है, आपस में एक दूसरे को काफिर, मुश्ररीक मलेच्छ, नास्तिक समझना ही इनका धर्म है। इन्हें खुद के रोजगार व खुशहाल अस्तित्व की  बेहतर भविष्य की बजाय  धर्म को खतरे के निशान से ऊपर बहता हुआ नजर आ रहा है।

एक दूसरे के फिरके पे थुकिये, मारिये, चाटिये, ऊंच-नीच करिये...  यही धर्म है इनका।

 एक दूसरे को हिकारत से देखिये, जातिगत भेदभाव करिये यही धर्म है।

ब्राह्मणों के ब्राह्मण-धर्म से ये व इनके पुरखे सदियों से आजतक जलील होते रहे हैं और हो रहे हैं। इन्हें आज भी सावा, हस्तरेखा  दिखाने, शादी व कर्मकाण्ड करवाने के लिये ब्राह्मण चाहिए।

पैदा होने से पहले व मरने के बाद भी इनको ब्राह्मण चाहिए।

अधिकांश दलित, किसान, राजपूत दुनिया के सबसे खतरनाक नशा "आस्था" के नशे में चूर होकर व्राह्मण धर्मगुरु, आश्रम, मन्दिर, धाम की पदयात्राएं करने में मदमस्त हैं। फिर जन्म से पहले व मरने के बाद भी अंगुली पकडने के लिये इन्हें ब्राह्मण चाहिए।

ब्राह्मण-समाज के लोग इन्हें नीच मानकर इनके घर का बना खाना-पीना पसंद नहीं करते हैं। फिर भी ब्राह्मणों का आदर-सम्मान करना ये अपना ज‌न्मसिद्ध अधिकार मानते हैं।

मंदिरों के पुजारी, धर्मगुरु, मठाधीश, मुख्य-सचिव, मुख्य-न्यायधीश, सेना के सर्वोच्च पदों  आदि पर इन्ही बंदरसेना रंगेसियारों, अंगरक्षकों की मंदबुद्धि  की वजह से मनु-ब्राह्मण एकल वर्चस्व स्थापित किये हुए हैं।

दलित-मुसलमान, दलित, किसान राजपूत स्वयं को बहुत बुद्धिमान, जागरुक, बहादुर न जाने क्या क्या समझते हैं, मगर आज तक ये  यह भी नहीं समझ पाये हैं कि ये वोट चाहे कांग्रेस, बीजेपी या कम्युनिस्ट पार्टी को दें, जीत हमेशा मनु-ब्राह्मणों की ही होगी। न्याय का पलडा उधर ही झूकेगा जिधर ब्राह्मण चाहेंगे और  लडकी अग्नि के फेरे तभी ले पायेगी, जब ब्राह्मण चाहेगा। 


आप तो बस अग्नि-संस्कार के नाम पर अपने-अपने मरे हुए मां-बाप का सिर फोडकर और इनके  मुँह में घी डालकर आग लगाते रहें। 

इसे आप अपना हिन्दू-धर्म कहें या देश में ब्राह्मणों की हकूमत कहें । वरणा आपको व आपकी जाति के हितेषियों को आतंकवादी, नक्सलवादी, माओवादी, उग्रवादी श्रेणी की भट्टी में झोंक कर आपके ही जाति के सैनिक भाईयों की गोलियों की बौछार में भूनने के लिये तैयार रहें।

ब्राह्मण वाद व कोरोना लाइलाज बीमारी है।

इनसे बचाव ही एकमात्र इलाज है।

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