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Showing posts from February, 2022

इस्लाम मानने वालों में अंतरद्वंद और पूंजीवाद | Inter conflict in Islamic thoughts and Capitalism.

उर्दू और अरबी नाम वाले काफ़ी लोग पिछले दिनों मित्रसूची में शामिल हुए हैं, तो इस पोस्ट के ज़रिये उनका एक टेस्ट ले लेता हूँ कि वो कितना मुझे झेल सकते हैं. अपना-अपना इस्लाम क़ुरआन इस्लाम का प्राथमिक ग्रंथ है। हदीस दूसरे नम्बर पर आती है, हलांकि हदीस को लेकर शिया व सुन्नियों में थोड़े मतभेद भी हैं, लेकिन क़ुरआन पर इन सबकी सहमति है। अहमदिया तक क़ुरआन मानते हैं लेकिन वो ये नहीं मानते की जनाब मुहम्मद स.अ. आखिरी नबी हैं। लिहाज़ा अहमदिया को शिया और सुन्नी दोनों ही मुसलमान नहीं मानते।  पाकिस्तान में तो इनके ऊपर जानलेवा हमले तक होते हैं। शिया और सुन्नियों का क़ुरआन एक है लेकिन शिया के नज़दीक सुन्नी और सुन्नियों के नज़दीक शिया सच्चे मुसलमान नहीं हैं। फिर सुन्नियों के भीतर बरेलवी के लिए देवबंदी और अहलेहदीस सच्चे मुसलमान नहीं हैं. अहलेहदीस के लिए दूसरे फिरके के लोग सच्चे मुसलमान नहीं हैं, मतलब हर फिरके के लिए उससे इतर दूसरी जमातें “सच्चे मुसलमान” की केटेगरी में नहीं आते। इन्हें काफ़िर कहने या सच्चा मुसलमान न मानने का फैसला इन स्कूल्स ऑफ थॉट्स के आलिमे दीन के हवाले से आता है। बाहर से देखने वाले लोग समझते हैं...

विश्व प्रेम दिवस अर्थात वेलेंटाइन डे

 विश्व प्रेम दिवस अर्थात वेलेंटाइन डे जिन्दाबाद! ******"************"***"**"********* एक मध्यकालीन कवि ने कहा था--            "प्रेम न बाड़ी उपजै,प्रेम न हाट बिकाय।              राजा प्रजा जै जुरे,सीस दैय ले जाय।।"     इसका सीधा अर्थ है कि आदमी चाहे अमीर हो या गरीब,राजा हो या आम जन, किसी भी पद पर हों, किसी भी जाति, वंश,धर्म,क्षेत्र एवं देश में जन्म लिया हो,वह अपने सिर को प्रेमी या प्रेमिका के आगे झूका कर( यानी हर प्रकार के घमंड को त्यागकर) प्रेम को पा सकता है।प्रेम तो आदमी से सिर्फ त्याग मांगता है-अमीरीऔर गरीबी की सीमाओं का,पद का, धन का, घमंड का,स्वार्थ का, जाति और वंश का, धर्म और संकीर्णता का, क्षेत्र और देश की सीमाओं का।प्रेम का आधार ही होते हैं-परस्पर त्याग और विश्वास। जहां इन दोनों में किसी एक का भी अभाव होता है या दोनों का अभाव होता है,वहां प्रेम भी नहीं होता है। जहां कहीं भी व्यक्ति रंग, जाति, पद, पैसे,स्वार्थ और अभिमान के प्रभाव से या प्रभाव में आकर प्रेम करता है,प्रेम वहां से भाग खड़ा होता है और वहां...

महानायक, महान विचारक एवं मार्गदर्शक, महान लेखक और समाज सुधारक ,पेरियार ललई सिंह यादव जी

आज बहुजन समाज के महानायक, महान विचारक एवं मार्गदर्शक, महान लेखक और समाज सुधारक ,पेरियार ललई सिंह यादव जी का 29 वां परिनिर्वाण दिवस है।इस अवसर पर भारत के नागरिकों, विशेष कर मूलनिवासी बहुजन समाज की ओर से उनके प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि और शत-शत नमन!           उनका जन्म 1 सितम्बर 1911ई को उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में कठारा गांव में एक सामान्य कृषक परिवार में हुआ था। उनके पिता गुज्जू सिंह यादव एक कर्मठ आर्य समाजी थे। इनकी माता का नाम मूलादेवी थी।ललई सिंह यादव ने 1928ई में उर्दू के साथ हिन्दी से मिडिल पास किया। 1929 ई  से 1931 ई तक ललई यादव फाॅरेस्ट गार्ड रहे। 1931 में सरदार सिंह यादव की बेटी दुलारी देवी के साथ उनका विवाह हुआ था। 1933ई में  वे  सशस्त्र पुलिस कम्पनी,जिला मुरैना (म.प्र.) में कॉन्स्टेबल पद पर भर्ती हुए। नौकरी के साथ-साथ उन्होंने पढ़ाई जारी रखी। उन्होंने 1946 ई में पुलिस एण्ड आर्मी संघ ,ग्वालियर की स्थापना की और वे उसके अध्यक्ष चुने गए। 29 मार्च 1947 को ललई यादव को पुलिस व आर्मी में हड़ताल कराने के आरोप में धारा 131 भारतीय दण्ड विधान (सै...

माता सावित्री बाई फूले वास्तविक विद्या की देवी

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बहुजनों के ज्ञान की देवी सरस्वती नहीं, सावित्रीबाई फुले हैं- संदर्भ सरस्वती पूजन दिवस ( वसंत पंचमी, आज) सरस्वती  द्विज मर्दों के ज्ञान की देवी हो सकती हैं, दलितों- पिछड़ों और महिलाओं के ज्ञान की देवी सिर्फ और सिर्फ सावित्रीबाई फुले हैं। अधिकांश हिंदू देवी-देवाओं के तरह सरस्वती भी सिर्फ द्विज मर्दों के ज्ञान की देवी रही हैं। वे कभी भी दलितों ( अतिशूद्रों) पिछड़ों ( शूद्रों) और महिलाओं ( शूद्र) की जीभ पर विराजमान नहीं होती थीं। उन्हें इन लोगों की तरफ देखना भी गवारा नहीं था। जब तक ज्ञान की देवी सरस्वती बनी रहीं, तब तक ज्ञान का दरवाजा बहुजनों के लिए बंद था।  लक्ष्मी की तरह सरस्वती भी सिर्फ और सिर्फ द्विज मर्दों पर कृपा करती थीं। जहां लक्ष्मी द्विज मर्दों को धन-धान्य से परिपूर्ण करती थीं, वैसे सरस्वती सिर्फ द्विज मर्दों को ज्ञान-विज्ञान से परिपूर्ण करती थीं।  दलितों, पिछड़ोंं और महिलाओं के लिए ज्ञान का दरवाजा सबसे पहले अंग्रेजों ने 1813 में खोला।  बहुजनों की शिक्षा में ईसाई मिशरियों की अहम भूमिका थी। डॉ. आंबेडकर के गुरू और भारतीय सामाजिक क्रांति के अग्रदूत जोतीराव फुले की...