विश्व प्रेम दिवस अर्थात वेलेंटाइन डे
विश्व प्रेम दिवस अर्थात वेलेंटाइन डे जिन्दाबाद!
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एक मध्यकालीन कवि ने कहा था--
"प्रेम न बाड़ी उपजै,प्रेम न हाट बिकाय।
राजा प्रजा जै जुरे,सीस दैय ले जाय।।"
इसका सीधा अर्थ है कि आदमी चाहे अमीर हो या गरीब,राजा हो या आम जन, किसी भी पद पर हों, किसी भी जाति, वंश,धर्म,क्षेत्र एवं देश में जन्म लिया हो,वह अपने सिर को प्रेमी या प्रेमिका के आगे झूका कर( यानी हर प्रकार के घमंड को त्यागकर) प्रेम को पा सकता है।प्रेम तो आदमी से सिर्फ त्याग मांगता है-अमीरीऔर गरीबी की सीमाओं का,पद का, धन का, घमंड का,स्वार्थ का, जाति और वंश का, धर्म और संकीर्णता का, क्षेत्र और देश की सीमाओं का।प्रेम का आधार ही होते हैं-परस्पर त्याग और विश्वास। जहां इन दोनों में किसी एक का भी अभाव होता है या दोनों का अभाव होता है,वहां प्रेम भी नहीं होता है।
जहां कहीं भी व्यक्ति रंग, जाति, पद, पैसे,स्वार्थ और अभिमान के प्रभाव से या प्रभाव में आकर प्रेम करता है,प्रेम वहां से भाग खड़ा होता है और वहां से ही नफरत, द्वेष,ईर्ष्या, हिंसा और दुख का सिलसिला चल पड़ते हैं।
भारत और दुनिया भर में हजारों वर्षों से पितृसत्तात्मक परिवार एवं समाज व्यवस्था , रंग-वर्ण एवं जाति व्यवस्था,अमीर और गरीब , ऊंच-नीच एवं छुआछूत और लिंग- विभेद की इन दीवारों के कारण आदमी से आदमी के बीच और स्त्रियों से पुरुष के बीच प्रेम की ही बलि दी जाती रही हैं। लाखों पुरुषों और महिलाओं ने इन दीवारों के कारण अपनी कुर्बानियां दी हैं, अपमानजनक स्थिति में रहे हैं, गालियां सुनी हैं और अनगिनत दुःख झेले हैं।
आज जब भारत सहित पूरी दुनिया में लोकतांत्रिक व्यवस्था द्वारा स्त्री और पुरुष दोनों को समान अवसर, प्रतिष्ठा एवं अधिकार दी गये हैं तो भीे नफरत, ऊंच-नीच, लिंग -विभेद और छुआछूत फैलाए रखने के लिए धार्मिक एवं पौराणिक राग अलापने वाले बुरे लोग स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा और प्रेम के सामने लाठी लेकर खड़े हैं। ये संकीर्ण और अंधे लोग अाज के इस वैज्ञानिक युग में विज्ञान की जानकारी रखते हुए भी यह समझने के लिए तैयार नहीं हैं कि प्रेम एक प्राकृतिक देन है जो सभी जीव- जंतुओं में पाया जाता हैै, चाहे कम हो या अधिक। यद्यपि आज के युग में ये नफरत की दीवारें कुछ कमजोर हुई हैं क्योंकि युवा- युवतियों द्वारा उन दीवारों को तोड़ कर नये समाज बनाने के लिए संघर्ष किए जा रहे हैं। वे अपनी कुर्बानियां लगातार दे रहे हैं। आधुनिक युग में लोकतांत्रिक व्यवस्था के कारण आदमी में प्रेम का विस्तार तो और भी ज्यादा हुआ है- मां और उनकी संतानों के बीच, पति-पत्नी के बीच, प्रेमी और प्रेमिका के बीच, सभी लोगों और जीवों के प्रति, समाज,देश और दुनिया के प्रति एवं पर्यावरण के प्रति। प्रेम के कारण ही दूसरे के प्रति दया, करुणा और मित्रता की भावनाओं का विकास होते हैं। तथागत गौतम बुद्ध ने इसे भी सद्धम्म कहा है। हमें याद रखना चाहिए कि प्रेम ही विकास है और सभी लोगों की समास्याओं का समाधान और शांति हैं।
तो आइए,हम इस प्रेम दिवस यानी वैलेंटाइन डे के अवसर पर अपने देश और दुनिया में लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित समाज एवं संस्कृति को बनाएं और सभी महिलाओं एवं पुरुषों के बीच न्याय,समानता, स्वतंत्रता,प्रतिष्ठा, अवसर, संवैधानिक अधिकार ,भाईचारा एवं प्रेम की स्थापना के लिए लगातार संघर्ष करें।
जय भीम। जय भारत।
विलक्षण रविदास
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