माता सावित्री बाई फूले वास्तविक विद्या की देवी
बहुजनों के ज्ञान की देवी सरस्वती नहीं, सावित्रीबाई फुले हैं- संदर्भ सरस्वती पूजन दिवस ( वसंत पंचमी, आज)
सरस्वती द्विज मर्दों के ज्ञान की देवी हो सकती हैं, दलितों- पिछड़ों और महिलाओं के ज्ञान की देवी सिर्फ और सिर्फ सावित्रीबाई फुले हैं।
अधिकांश हिंदू देवी-देवाओं के तरह सरस्वती भी सिर्फ द्विज मर्दों के ज्ञान की देवी रही हैं। वे कभी भी दलितों ( अतिशूद्रों) पिछड़ों ( शूद्रों) और महिलाओं ( शूद्र) की जीभ पर विराजमान नहीं होती थीं। उन्हें इन लोगों की तरफ देखना भी गवारा नहीं था। जब तक ज्ञान की देवी सरस्वती बनी रहीं, तब तक ज्ञान का दरवाजा बहुजनों के लिए बंद था।
लक्ष्मी की तरह सरस्वती भी सिर्फ और सिर्फ द्विज मर्दों पर कृपा करती थीं। जहां लक्ष्मी द्विज मर्दों को धन-धान्य से परिपूर्ण करती थीं, वैसे सरस्वती सिर्फ द्विज मर्दों को ज्ञान-विज्ञान से परिपूर्ण करती थीं।
दलितों, पिछड़ोंं और महिलाओं के लिए ज्ञान का दरवाजा सबसे पहले अंग्रेजों ने 1813 में खोला। बहुजनों की शिक्षा में ईसाई मिशरियों की अहम भूमिका थी।
डॉ. आंबेडकर के गुरू और भारतीय सामाजिक क्रांति के अग्रदूत जोतीराव फुले की शिक्षा स्कॉटिश मिशनरी स्कूल में हुई थी। सावित्रीबाई फुले को पहली किताब ईसाइयों ने पकड़ाई। स्वयं आंबेडकर भी अंग्रेजों के चलते ही पढ़ पाए और भारती समाज के मार्गदाता बने। उत्तर भारत में बहुजन पुनर्जागरण के अगुवा स्वामी अछूतानंद की भी पढ़ाई अंग्रेजों के कंटोमेंट में हुई थी।
विश्वविद्याल में मेरे शिक्षक-गुरु प्रोफेसर जनार्दन जब गोरखपुर विश्वविद्याल के हिंदी विभाग के अध्यक्ष हुए, तो उन्होंने विभागाध्यक्ष के कमरे से सरस्वती की प्रतिमा हटाकर स्टोर रूप में रखवा दिया। विरोध करने वालों को उन्होंने तर्क दिया कि मुझे शिक्षा सरस्वती के चलते नहीं, संविधान के चलते मिली है। यहां यह बताना जरूरी है कि वे कुम्हार जाति के थे। जिस जाति की जुबान जुबान पर भी सरस्वती अपना वास नहीं करती थीं।
नौकरी की औपचारिकता या किसी अन्य मजबूरी में भले किसी दलित-बहुजन को सरस्वती पूजा में शामिल होने को विवश होना पड़े, लेकिन कभी दिल में उन्हें जगह नहीं देना चाहिए, क्योंकि जब तक ज्ञान पर उनका राज था, उन्होंने दलित-बहुजनों और महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखा।
सरस्वती भी ब्राह्मणवादी वर्चस्व का उपकरण हैं।
भारत के बहुसंख्यक प्रगतिशील समाज की ज्ञान की जीती-जागती देवी मां सावित्रीबाई फुले हैं, सरस्वती नहीं।
जिन द्विज मर्दों पर सरस्वती अपार कृपा थी और जिसके बल पर उन्होंने देश पर राज किया और कर रहे हैं, उन्हें सरस्वती को पूजने दीजिए।
आइए हम अपनी ज्ञान की देवी सावित्रीबाई फुले को याद करें और उनके बारे में पढे़ं और जानें।
आज ब्राह्मण पुरोहितों द्वारा प्रचारित तथाकथित विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जा रही है। ब्राह्मणवादी ऋषियों एवं पुरोहितों के सबसे पवित्र और ईश्वरीय धर्म-ग्रंथ ऋग्वेद में कहीं भी सरस्वती को विद्या की देवी नहीं कहा गया है। ऋग्वेद के सातवें मंडल के 95एवं 96 सुक्तों एवं दसवें मंडल के 138वें सुक्त में सरस्वती (नदी)को जल,अन्न और अन्न से बुद्धि देने वाली देवी, गर्भ की रक्षा करने वाली एवं भौतिक सुखों को देने वाली देवी आदि के विवरण हमें मिलते हैं।
सदियों के बाद रचित ब्राह्मणवादी धर्मशास्त्रों,रामायण,महाभारत, स्मृतियों एवं पुराणों में कहीं भी सरस्वती के द्वारा दी गई शिक्षाओं का कोई विवरण हमें नहीं मिलते हैं। हां पुराणों में हमें विद्या की देवी उसे कहा गया है, किन्तु हमें इन बातों का विवरण नहीं मिलते हैं कि सरस्वती देवी किन लोगों को शिक्षा और विद्या देती थीं? उनकी शिक्षाएं क्या थीं?
अगर वे विद्या की देवी हैं तो 3500 वर्षों से सभी वर्णों एवं जातियों
की महिलाएं शिक्षा-ज्ञान से वंचित क्यों रह गई? भारत के मूलनिवासी बहुसंख्यक बहुजन लोग सदियों से विद्या से वंचित क्यों रह गये? भारत के बहुसंख्यक महिलाएं और पुरुष आज भी अनपढ़ एवं अशिक्षित क्यों हैं?जो लोग सरस्वती की पूजा करते हैं वे आज भी शिक्षा और ज्ञान हासिल करने के लिए पढ़ने लिखने में वर्षों तक मेहनत क्यों करते हैं? सरस्वती की पूजा करने वाले लोगों को तो बिना मेहनत किए ही विद्या और ज्ञान हासिल हो जाने चाहिए।
अतःअगर हम मनुष्य हैं तो हमें अपनी बुद्धि और विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए और इस झूठी बातों एवं अन्धविश्वास को मिटाने की कोशिश करनी चाहिए। हमें ये बातें याद रखनी चाहिए कि शिक्षा,विद्या या ज्ञान लगातार कड़ी मेहनत और संघर्षों से ही हासिल होती हैं।
जय भीम! जय भारत!!
विलक्षण रविदास
बिहार फुले-अंबेडकर युवा मंच
बहुजन स्टूडेंट्स यूनियन बिहार
best thought.
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