Jan Nayak Karpuri Thakur and Social Justice जन नायक कर्पूरी ठाकुर
बात बीसवीं सदी के तीसरे दशक की होगी. बिहार के समस्तीपुर में एक नाई के बेटे ने मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली. पिता बेटे को साथ ले कर गाँव के एक सामंत के घर गए. इस उम्मीद में कि वे कुछ मदद कर देंगे तो बेटा आगे पढ़ाई कर लेगा. सामंत अपने दालान पर लेटा हुआ था. बेटे ने उत्साहित होकर कहा कि 'मैंने अच्छे दर्ज़े से मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली'. सामंत हिलते हुए एक नजर देखा उस लड़के को देखा. फिर बोला 'अच्छा, तूने मैट्रिक पास कर लिया? आओ गोड़ (पैर) दबाओ.'
नाई का वह बेटा कोई और नहीं, कर्पूरी ठाकुर थे. उस सामंत का इतिहास में कोई नामलेवा न रहा; जबकि कर्पूरी ठाकुर ने भारतीय राजनीति को आमूलचूल बदलकर नया इतिहास रच दिया. जननायक से लेकर ग़रीबों, मज़लूमों के मसीहा जैसे तमगे हासिल किए. महिलाओं से लेकर दलित पिछड़ों की ज़िंदगी में लोकतंत्र व राष्ट्र होने के मायने शामिल करवा दिए. ऐसे लड़े कि इन्हें शिकस्त देने के लिए तब कांग्रेस व जनसंघ (आज की भाजपा कह लें) दोनों एक हो गए. विचार के लिए मर मिटने वाला यह योद्धा यूँ लड़ा.
बिहार राज्य के दो बार मुख्यमंत्री रहे. ख़ुद मैट्रिक करने की अहमियत समझने वाले जननायक कर्पूरी ठाकुर ने आठवीं तक की पढ़ाई निःशुल्क कर दी, अंग्रेज़ी की अनिवार्यता ख़त्म कर दी, जिससे वंचित शोषित जमात के युवा पढ़ सके. शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव क़ायम कर दिया. भूमि सुधार के साथ साथ पहली बार पिछड़ों को 26 फ़ीसद आरक्षण और महिलाओं को 3 फ़ीसद आरक्षण लागू किया. इन कामों के चलते भारतीय अभिजात्य वर्ग द्वारा सबसे ज़्यादा और सबसे गंदी गालियाँ खाईं. इतना अपमान भारतीय राजनीति में शायद किसी ने नहीं सहा. सोचिएगा, क्यों?
'आरक्षण कहाँ से आई,
करपुरिया की माँ बियाई.'
MA BA पास करेंगे,
करपुरिया को बांस करेंगे.'
मुख्यमंत्री रहते हुए पिता को किसी ने मारा, डीएम ने कड़ी कार्यवाही कर दी तो उन्हें छुड़वा दिया. बोले ऐसे जाने कितने पिता रोज़ मार खाते हैं. सिस्टम सुधारो, जब कोई नहीं मार खाएगा तो मेरे पिता भी नहीं मार खाएँगे. खुद के लिए धन दौलत व संपत्ति नहीं बनाई, करोड़ों अरबों की पार्टी ऑफ़िस या घर नहीं बनवाए. कोट तक नहीं खरीदते थे, कभी चंद्रशेखर तो कभी टीटो जैसे नेताओं ने कोट गिफ़्ट किया. आज आत्ममुग्ध नेताओं के लखटकिया लिबास और नफ़रती, ज़हरीले कामों के सामने जननायक पूरे तेवर के साथ खड़ा है.
भारतीय राजनीति, भारतीय समाज, भारतीय ज्ञान व ताक़त के सत्ता प्रतिष्ठानों के इतिहास से लेकर वर्तमान तक का समग्र मूल्यांकन करने का दौर आ गया है कि यह सब कितना जातिवादी, सामंती, पितृसत्ता का शिकार रहा. हमारी पीढ़ी को यह काम करना है. यह भी न कर सके, तो हम सामूहिक तौर पर वक़्त से घात करेंगे. अभिजात्यवाद, जातिवाद, सामंतवाद, पितृसत्तात्मक पूँजीवाद से लड़ने के विचार का नाम है सामाजिक न्याय. इस जमीन पर खड़े नायकों में अगुआ नायक हैं कर्पूरी ठाकुर.
नमन
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