आदिवासी भूमि या रणभूमि

 बस्तर संभाग के सर्व आदिवासी समाज व भारत देश के नागरिक गण को,

सेवा जोहार,

अत्यंत दुख के साथ लिख रही हूँ। 

हमारा बस्तर पूंजीपतियों के लालच को पूरा करने के लिए विनाशकार युद्ध भूमि बन चुका है। ये हम सबको पता है। 

बस्तर की लडाई के दौरान कुछ वर्ष पहले पुलिस विभाग के एक उच्च अधिकारी ने मुझसे कहा था कि आदिवासियों का कभी कोई अस्तित्व ना था ना कभी रहेगा। ना कोई औकात, ना कोई जीवन ना कोई पहचान। आदिवासियों को कीड़े मकोड़ों की तरह कुचलना है, मारना है। यही सत्य है। इस सच को अपने दिमाग अपनी सोच में अच्छी तरह डाल लो यही तुम्हारी औकात है। 

हाल ही में जब मुझे ये जानकारी मिली। कि कर्रेगुटटा जंगल में पहाड़ो से नक्सली के नाम से भारी संख्या में आदिवासियों को मार कर लाये है। उनके परिवार वाले बहुत परेशान है। भूखे प्यासे रहकर लाशों को ले जाने के लिए लड़ रहे हैं लेकिन  पुलिस प्रशासन लाश नहीं दे रहा है। 

उस स्थिति में दिनांक 12-5-2025 को मैं जिला बीजापुर अस्पताल में पहुंच गई। कई गांव के आदिवासी लोग अस्पताल से बीजापुर थाना। थाने से अस्पताल चक्कर काट रहे थे। इसी बीच मैं गांव के लोगो से मिली और जानकारी इकट्ठा करने लगी कि वास्तव में कर्रेगुटटा पहाड़ में क्या हुआ था ? पुलिस प्रशासन और सरकार जो बोल रही है क्या वो सच है ? आप सभी लोग बताओ। तब हम लोग मदद कर पायेंगे। 

कई गांवो के ग्रामीण महिला पुरुष बच्चे आये हुए थे। परिवार के सदस्यों और ग्रामीणों ने बताया। दीदी मुठभेड़ की बात हम भी सुन रहे हैं। लेकिन ऐसी कोई मुठभेड़ नहीं हुई है। ये सब फर्जी है। बल्कि सीआरपीएफ की कोबरा, डीआरजी, और तेलंगाना के ग्रे-हाउंड के बीच क्रॉस फायरिंग हुई है। ये फोर्स एक-दूसरे पर गलतफहमी में गोली चलाये है। जिसमे तीन पुलिस जवान भी मारे गये है। और कई ज‌वान घायल हुए है। नक्सलियों की लगाई हुई आईईडी या गोला बारूद से नहीं आपसी फायरिंग से घायल हुए हैं। ये घटना दिनांक 7-5-2025 को सुबह लगभग 7-8 बजे हुई है ၊

हम तो लाश लेने आये है। ये लाशे उसी दिन उसी तारीख की लाशे है। पुलिस वाले घेर कर मारे है। जिनमे नाबालिग भी हैं ၊ निर्दोष आदिवासी भी है। महिला पुरुष कुछ निहत्थे किसान संघम सदस्य है ၊ कोई नक्सली लीडर नहीं है। 6-7 तारीख को कोई मुठभेड़ नहीं हुई है । मैंने वहां गांवों  से आये हुए ग्रामीणों से पूछा आप लोगों को कैसे पता कि यह घटना 7-5-2025 की है। मारे गए लोगों के परिवारों के सदस्यों और ग्रामीणों ने बताया कि हमारे गांव के कुछ लोग डीआरजी में है। हमें डीआरजी वाले फोन करके बताये कि अपने परिवार के लोगों की लाश लेने आओ, उन्हें मार दिये है। 8 तारीख को हम लाश, लेने आये थे ၊ 9 तारीख रात तक हम रुके रहे कि लाशों को लेकर जायेगे। पुलिस प्रशासन ने हमारे परिवार की सदस्यों की लाशें हमें नहीं दी ၊ दो दिन भूखे प्यासे रहकर हम लाश मांगते रहे। भूख प्यास और गर्मी से हम सब की हालत बहुत ज्यादा खराब होने लगी तो हम 10 तारीख को वापस अपने गांव पहुंच गए ၊ ।। तारीख को रूक कर आज 12-5-2025 को फिर लाश लेने आये है। आज भी देंगे या नहीं पता नहीं ၊ मैंने कहा आज हर हाल में लाशो को लेकर जाओगे। आज हम सब आप लोगो के साथ है। परिवार वाले बहुत ही परेशान हो रहे थे। समय बीतता जा रहा था शवों को देने में पुलिस प्रशासन बहुत ही आनाकानी कर रहा था । आखिर शवों को देने में इतना नाटक क्यो ? हम सबको कुछ समझ मे नहीं आ रहा था। 

हम सब लोग शवों को लेने आगे बढ़ते चले गये। तुब पुलिस प्रशासन मजबूर होकर शवों को देने लगे। जब मैं शवों के ओर बढी तो देखा कि लाशों पर हज़ारो की संख्या में कीड़े चल रहे थे। हर एक लाश पर कीडे थे। हर आदिवासी का मृत शरीर कीड़ों से ढका हुआ था। कीडे मृत शरीर को पूरी तरह से घेर कर खा रहे थे। उस अधिकारी की बातें सच साबित होती हुई  होते नजर आ रही थी । सवाल ये नहीं होना चाहिए कि मर गया व्यक्ति कौन था वह नक्सली था या निर्दोष आदिवासी ? 

जो मारे गए वह सब इंसान थे और वे सब बस्तर के आदिवासी थे ? आदिवासियों के मृत शरीर को कीड़ों के हवाले कर दिया जाता है। ताकि परिवार लाशों को पहचान ना सके ၊  पुलिस प्रशासन और  सरकार को इस बार फर्जी मुठभेड़ के  झूठ की नींव तैयार करने में 6 दिन लग गये ၊

अगर एक आदिवासी मां के दो बेटे हैं तो उनमें से एक आदिवासी को सरकार अपनी तरफ से सिपाही बनाकर बंदूक पकड़ा देती है ၊ 

दूसरा आदिवासी भाई अपनी जमीन की रक्षा करता है ၊ अगर सरकार की तरफ से लड़ने वाला आदिवासी मारा जाता है तो उसे तिरंगे झंडे में लपेटकर अंतिम संस्कार किया जाता है ၊ और अपनी जमीन बचाने के लिए जो आदिवासी मारा जाता है उसकी लाश को कीड़ों की चादर से ढक दिया जाता है ၊

- सोनी सोरी

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