सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने जादुनाथ सिन्हा की थीसिस अपने नाम छपवा ली.


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यह पोस्ट पूरी तरह सत्य घटना पर आधारित है. इस पोस्ट में दर्ज सभी नाम वास्तविक हैं. मैं यह पोस्ट पूरी जवाबदेही के साथ लिख रहा हूँ.

कहानी में छह प्रमुख किरदार हैं और तीन उच्च संस्थानों का वर्णन है.

1) जादुनाथ सिन्हा 

2) सर्वपल्ली राधाकृष्णन 

3) डॉ ब्रजेन्द्रनाथ सील 

4) डॉ बीएन सील 

5) आशुतोष मुखर्जी

6) श्यामा प्रसाद मुखर्जी

संस्थान

1) कलकत्ता हाईकोर्ट

2) कलकत्ता विश्वविद्यालय

3) मैसूर विश्वविद्यालय

ब्राह्मण कश्मीरी हो या बंगाली हो या तेलगु हो, इनमें गजब की एकता रहती है. 1921 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति थे आशुतोष मुखर्जी. इन्होंने औसत दर्जे के शिक्षक तेलगु नियोगी ब्राह्मण सर्वपल्ली राधाकृष्णन को 2011 किलोमीटर दूर मैसूर विश्वविद्यालय से निकालकर कलकत्ता विश्वविद्यालय में शिक्षक नियुक्त किया.

बंगाली छात्रों को सर्वपल्ली राधाकृष्णन की भाषा शैली समझ में नही आती थी. जान पहचान के दम पर कलकत्ता विश्वविद्यालय में शिक्षक का उच्च पद मिला था, ब्राह्मण जाति के अलावा कोई विशेष प्रतिभा तो सर्वपल्ली राधाकृष्णन में थी नही.

इसी कलकत्ता विश्वविद्यालय में जादुनाथ सिन्हा के नाम के होनहार छात्र ने 1921 भारतीय दर्शन नाम से अपनी थीसिस सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ ब्रजेन्द्र नाथ सील और डॉ बीएन सील के समक्ष प्रस्तुत की. 

सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने जादुनाथ सिन्हा की थीसिस 1923 में लंदन में पुस्तक के रूप में अपने नाम छपवा ली. और उसके बाद में जादुनाथ सिन्हा को पीएचडी की डिग्री दे दी. 

जादुनाथ सिन्हा ने जब सर्वपल्ली राधाकृष्णन की किताब भारतीय दर्शन पढ़ी तब उन्हें पता चला राधाकृष्णन ने उनकी थीसिस की हूबहू नकल कर किताब छापी है. अब एक आम लेकिन दार्शनिक युवक को न्याय चाहिए था. न्याय के लिए उसे उस वक़्त के सबसे बड़े कुलीन व्यक्ति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के लड़ना था.

जादुनाथ सिन्हा ने न्याय के लिए कलकत्ता हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने सिन्हा के खिलाफ 1,00,000 रुपये मानहानि का मुकदमा किया. 

अन्य दो प्रोफ़ेसर डॉ ब्रजेन्द्रनाथ सील और डॉ बीएन सील ने जादुनाथ सिन्हा का साथ देने से इनकार कर दिया. लेकिन जादुनाथ सिन्हा के पास दो प्रमुख सबूत थे. एक वे अपनी थीसिस एक मैगजीन में छपवा चुके थे और दूसरी अपने शोध की प्राप्त रसीद न्यायालय के समक्ष पेश कर दी.

सर्वपल्ली राधाकृष्णन समझ गए उनकी हार तय थे. उस वक़्त का हर बड़ा कांग्रेसी नेता इनका मित्र था लेकिन साथ देने सामने आए आशुतोष मुखर्जी के पुत्र श्यामा प्रसाद मुखर्जी जो कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति बन चुके थे.

श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जादुनाथ सिंह पर कोर्ट के बाहर समझौते के लिए काफी दबाव बनाया. मुखर्जी 1933 में न्यायालय के बाहर सिन्हा और राधाकृष्णन में समझौता कराने में कामयाब रहे. 1,00,000 मानहानि का दावा करने वाले सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने खुद 20,000 रुपये जादुनाथ सिन्हा को देकर अपनी थोड़ी बहुत इज्जत बचाने में कामयाब रहे.

लेकिन हम हैं कि सर्वपल्ली राधाकृष्णन की बची खुची इज्जत भी उतारने पर तुले रहते हैं. इतिहास वह नही है जो ब्राह्मणों ने लिखा है, इतिहास वह है जो हम लिख रहे हैं. 


✍🏻✍🏻Kranti Kumar


Teachers deserve respect, and India already has a glowing tradition of celebrating Guru Purnima every year. Therefore what is the requirement for celebrating September 5 as Teachers Day? In today's episode, Prakhar questions this modern tradition of celebrating the birthday of Dr. Radhakrishnan, who was accused of plagiarism by a student, Jadunath Sinha. With facts and evidence, the real character of Bharat Ratna Dr. Sarvapalli Radhakrishnan is revealed. Know how parts of Jadunath Sinha's thesis were used to publish a book titled "Indian Philosophy", which made Dr. Radhakrishnan a renowned name internationally. Know how a case of copyright infringement was filed in 1929 in the Kolkata High Court against Dr. Radhakrishnan and how an out-of-court settlement arrived in 1933. Till today the terms of the settlement remain a secret. What remains a perplexing fact is Radhakrishnan himself declared September 5 to be celebrated as Teachers Day. Also how a man known to be a great Hindu scholar, due to his friendship with Nehru, turned into a lobbying agent for the communist and genocidal ruler Stalin. Due to this role, Radhakrishnan was rewarded with the post of the President of India. Watch this and more. Keep watching "Khari Baat, Prakhar Ke Sath".

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