राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले की 191 वीं जयंती।
आज दिनांक 3 जनवरी 2022 को राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले की 191 वीं जयंती विश्वविद्यालय अम्बेडकर विचार एवं समाज कार्य विभाग में बिहार फुले-अंबेडकर युवा मंच के तत्वावधान में आयोजित की गई.
कार्यक्रम की शुरूआत द्वीप प्रज्जवलन एवं पुष्पांजलि अर्पित कर की गई. कार्यक्रम की अध्यक्षता बिहार फुले-अंबेडकर युवा मंच के संरक्षक मान्यवर विलक्षण रविदास ने की.
वक्ताओं ने राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले के जीवन दर्शन पर विस्तार से चर्चा की एवं उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लिया.
इतिहास की शोध छात्रा निमिषा राज ने कहा कि महिलाओं की शिक्षा में उनका योगदान अद्वितीय है। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के लिए लड़ाई लड़ी और सती प्रथा सहित कई अन्य सामाजिक कुरीतियों, जिसमें महिलाओं को निशाना बनाया जाता था, के खिलाफ आवाज़ उठाई। सबसे उल्लेखनीय आंदोलन में से एक ‘नाई हड़ताल’ थी। यह हड़ताल विधवाओं के मुंडन के खिलाफ थी।
अम्बेडकर विचार एवं समाज कार्य विभाग की शोध छात्रा खुशबु कुमारी ने कहा कि सावित्रीबाई भारत की पहली शिक्षिका और प्रधानाध्यापिका हैं। उन्होंने देश में बहुत सारे सामाजिक सुधार किये हैं और पुणे विश्वविद्यालय ने उनके प्रयासों को मान्यता दी। 2015 में, पुणे विश्वविद्यालय का नाम बदलकर सावित्री बाई फुले पुणे विश्वविद्यालय कर दिया गया। उन्होंने कई दलित आंदोलनों को गति दी जो अनुकरणीय है।
बिहार फुले अम्बेडकर युवा मंच के मुंगेर प्रभारी मणि कुमार अकेला ने कहा कि आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे हैं और आगे बढ़कर समाज में अपनी उपस्थिति दर्ज कर रही हैं। यह शिक्षा के माध्यम से ही संभव हो सका है। शिक्षा ने स्त्रियों को उनके अधिकार दिए और उनकी सुरक्षा के लिए हौसले बुलंद किए। मगर कभी सोचा कि आज जिस शिक्षा को वह अपना अधिकार मानती हैं उसका संघर्ष कब और कैसे आरंभ हुआ? और वह कौन थे जिन्होंने स्त्री शिक्षा को उनका अधिकार बनाया? यह सबको जानने समझने की आवश्यकता है।
बिहार फुले-अंबेडकर युवा मंच के महासचिव सार्थक भरत ने कहा कि समाजिक दासता से मुक्ति के लिए तर्कवादी होना जरूरी है। सावित्री बाई फुले असल में हमारी राष्ट्रमाता थी जिन्होंने लोगों को मानसिक दासता से मुक्ति दिलाई।
डॉ विलक्षण रविदास ने उनके जीवन दर्शन की चर्चा करते हुए कहा कि 1848 का वर्ष दो दृष्टियों से क्रांति का समय था “पहला तो यह कि उस वर्ष मार्क्स और एंजिल्स ने कम्युनिस्ट घोषणा पत्र (मेनीफैस्टो) प्रकाशित किया, जिसने समूचे विश्व को हिला दिया तथा दुनियाँ भर के सताए व कुचले हुए लाखों लोगों को अपनी नियति बदल डालने के लिए प्रेरित किया; और दूसरा यह कि महाराष्ट्र राज्य के पुणे नगर में शुरू की गई सामाजिक क्रांति की जननी सावित्री बाई फुले ने रुढ़िपंथियों द्वारा किए गए घोर विरोध तथा उनके द्वारा डाली गई दुर्लभ्य बाधाओं के बावजूद प्रथम महिला विद्यालय की नींव रखी। असल में दूसरी क्रांति भारतीय समाज के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है।
बामसेफ के पूर्व अध्यक्ष मा0 ई0 डी पी मोदी, संत रविदास महासभा के जिलाध्यक्ष मा0 महेश अम्बेडकर, नवगछिया जिला इकाई के संयोजक सुनिल कुमार, प्रदेश उपाध्यक्ष विरेन्द्र गौतम, कार्यालय सचिव दीपक प्रभाकर, डॉ मनोज कुमार शर्मा (प्राचार्य सर्वोदय महाविद्यालय), विभाग की छात्रा दीपप्रीया, रेखा कुमारी, बहुजन स्टुडेंट यूनियन के अध्यक्ष सोनम राव, राजेश कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता मा0 जगदीश दास, रामदेव यादव (तिलकपुर), प्रधान लिपिक खगेंद्र कुमार, कला केंद्र भागलपुर के शिक्षक उमेश आर्या आदि ने अपने विचार व्यक्त किए. कार्यक्रम का संचालन प्रदेश अध्यक्ष अजय राम ने किया. स्वागत भाषण डॉ विष्णु देव दास एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ संजय रजक ने किया. मिंटू हरि ने व्यवस्थापन में सहयोग किया।
सार्थक भरत
प्रदेश महासचिव
बिहार फुले-अंबेडकर युवा मंच
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