फातिमा शेख़

स्त्रियों की शिक्षा और दूसरे सामाजिक मसलों को लेकर संघर्षमें अग्रणी भूमिका के लिए प्रसिद्ध समाज-सुधारकफ़ातिमा शेख़ के 191वें जन्मदिन पर आज गूगल ने उनके चित्र के साथ डूडल बनाया है।

भारत में स्त्री शिक्षा और ख़ासकर आधुनिक शिक्षा के लिए अभूतपूर्व मुहिम में फुले दम्पती (जोतिबा-सावित्रीबाई) के साथ फ़ातिमा शेख़ का नाम अमर रहेगा।

सावित्रीबाई फुले की तरह उन्होंने भी आधुनिक शिक्षण पद्धति की बाक़ाएदा ट्रेनिंग हासिल की थी। 

उनके भाई उस्मान शेख़ वह शख़्स थे जिन्होंने उस दौर में रेडिकल अभियान के कारण घर-बदर कर दिए गए फुले दम्पती को अपने घर में रखा था। 

फुले दम्पती से रिश्ता महसूस करने वालों को फ़ातिमा शेख़, उनके भाई उस्मान शेख़ और फुले दम्पती के बीच के रिश्ते और स्त्रियों, वंचित तबकों और सभी समुदायों के लिए किए गए अभूतपूर्व कार्यों में इस साझी सामाजिक-राजनीतिक भूमिका के महत्व को समझना होगा। 

आधुनिक भारत की इस पहली पंक्ति की शिक्षिका, समाज सुधारक और हमारी महान पुरखिन को सलाम, सद-सलाम।


एक बार फिर विदेशी इतिहासकार ही साक्ष्यों को तलाश कर हमारे नायकों को सामने लाने में सफल हुए हैं। देश के इतिहासकारों के लिए तो यह गैरजरूरी विषय है। आज इंडियन एक्सप्रेस में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रोसलिंडो हंलों का एक लेख छपा है जिसमें सावित्री बाई फुले और जोतिराव फुले को सरक्षण देने वाले पूना निवासी मियां उस्मान शेख, उनकी बहन फातिमा शेख के बारे में जानकारी दी गई है। सबसे महत्वपूर्ण बात इसमें छपे फोटो की है जो 1850 के आसपास का है और उस्मान साहब के घर पर, जहां फ़ातिमा और सावित्री बाई फुले बच्चों को पढ़ाना शुरू की थीं, खींचा गया है। इस फोटो में दोनों महिलाएं 1850 के आसपास पूना में पहनी जाने वाली परम्परागत साड़ी में हैं। सावित्री बाई का चेहरा कैमरे की ओर है मगर फ़ातिमा ने आंखें नीचे कर रखी हैं। इन दोनों के पीछे एक महिला है जो परम्परागत सफेद खिमार हिजाब में है। इस महिला का नाम पता नहीं है मगर वह उस्मान साहब के परिवार की हैं। यह दुर्लभ फोटो हमें विदेशी शोधकर्ताओं से मिल रही है। वैसे हम हैं विश्वगुरु ही। वंचित समुदाय को अब याद रखना चाहिए कि दलितों के उत्थान में, दलित स्त्रियों की शिक्षा में और फुले दम्पति को संरक्षण देने में एक मुसलमान का हाथ है तो पाखंडों के विरुद्ध हमें खड़ा करने में भी एक मुसलमान कवि (कबीर) का हाथ है और उन्हें भी विदेशियों ने ही प्रकाश में लाया।

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