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Social Justice

आदिवासी भूमि या रणभूमि

 बस्तर संभाग के सर्व आदिवासी समाज व भारत देश के नागरिक गण को, सेवा जोहार, अत्यंत दुख के साथ लिख रही हूँ।  हमारा बस्तर पूंजीपतियों के लालच को पूरा करने के लिए विनाशकार युद्ध भूमि बन चुका है। ये हम सबको पता है।  बस्तर की लडाई के दौरान कुछ वर्ष पहले पुलिस विभाग के एक उच्च अधिकारी ने मुझसे कहा था कि आदिवासियों का कभी कोई अस्तित्व ना था ना कभी रहेगा। ना कोई औकात, ना कोई जीवन ना कोई पहचान। आदिवासियों को कीड़े मकोड़ों की तरह कुचलना है, मारना है। यही सत्य है। इस सच को अपने दिमाग अपनी सोच में अच्छी तरह डाल लो यही तुम्हारी औकात है।  हाल ही में जब मुझे ये जानकारी मिली। कि कर्रेगुटटा जंगल में पहाड़ो से नक्सली के नाम से भारी संख्या में आदिवासियों को मार कर लाये है। उनके परिवार वाले बहुत परेशान है। भूखे प्यासे रहकर लाशों को ले जाने के लिए लड़ रहे हैं लेकिन  पुलिस प्रशासन लाश नहीं दे रहा है।  उस स्थिति में दिनांक 12-5-2025 को मैं जिला बीजापुर अस्पताल में पहुंच गई। कई गांव के आदिवासी लोग अस्पताल से बीजापुर थाना। थाने से अस्पताल चक्कर काट रहे थे। इसी बीच मैं गांव के लोगो से ...

ठीक नहीं हुआ प्रधानमंत्री जी!

 प्रेमकुमार मणि  पहलगाम घटना के तुरत बाद प्रधानमंत्री मोदी जिस तरह बिहार में जा कर गरजे थे, मुझे अनुमान हुआ था कि पुलवामा की तरह ही कुछ हल्का-फुल्का अभ्यास होगा ताकि लोगों के गुस्से को शांत किया जा सके। घटनाओं की तुलना नहीं करना चाहता, किन्तु पुलवामा की घटना अधिक भयावह थी। हमारी सेना के चालीस जवान विस्फोट में उड़ा दिए गए थे. यह सीधे सेना को चुनौती थी। पहलगाम में निहत्थे सैलानियों को घेर कर उनका परिचय पूछ कर मारा गया। यह कायराना हमला था। परिचय जान कर गोली मारने के पीछे मकसद था कि सांप्रदायिक तनाव बनाया जाय। जब शत्रु उकसावे तब हमें विवेक से काम लेना चाहिए, एकबारगी क्रोध में नहीं आना चाहिए। जवाब देने केलिए सही समय का इन्तजार करना चाहिए। यह न पुलवामा के बाद हुआ, न पहलगाम के बाद। 1965 और 1971 में इस से कम गंभीर मामले पर त्वरित और ठोस कार्रवाई हुई थी। उस से सरकार सबक तो ले सकती थी। प्रधानमंत्री का विदेश यात्रा को स्थगित कर देश लौटना सही था। लेकिन अगले रोज सर्वदलीय बैठक में न शामिल हो कर उनका बिहार की एक उद्घाटन रैली में पहुँच जाना अफसोसजनक था। सर्वदलीय बैठक की गरिमा उन्होंने गिराई। ब...

अपने तो अपने होते हैं - महाराजा बिजली पासी जयंती: लालू प्रसाद यादव

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https://www.facebook.com/share/p/o1S94XfMSACBXNh6/ कल महाराजा बिजली पासी जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम का दीप प्रज्वलित कर उद्घाटन किया। पासी समाज के लिए हमने बहुत कुछ किया है। पहले ताड़ के पेड़ों से ताड़ी उतारने के लिए लोगों को टैक्स देना होता था। सरकार की ओर से ताड़ी टैक्स वसूला जाता था। मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद मैंने पासी भाईयों के लिए सदियों से चले आ रहे ताड़ी टैक्स (Palm Tree Tax) को माफ किया था।  मुझे स्मरण है 1990-91 में एक दफ़ा सभा में उपस्थित पासी भाइयों से मैंने पूछा कि, ”पासी भाई दिखाएं कि ताड़ के पेड़ पर चढ़ने से उनके करेजा पर घट्ठा पड़ा है कि नहीं। (घट्ठा - त्वचा के ऊपर ऐसा घाव होता है जिसमें कुछ दूर तक चमड़ी कड़ी और काली हो जाती है)  मैंने कहा कि, ”करेजा पर घट्ठा होई त देखावे के परी”। फिर क्या था भीड़ में शामिल पासी समाज के लोग कुर्ता- कमीज का बटन खोलने की बजाय सीधे फाड़ कर दिखाने लगे कि, “देखीं साहेब, हमरो करेजा पर घट्ठा बा” पहले की सामंती व्यवस्था में शोषक लोग दलित-पिछड़ी जाति के लोगों का सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और मानसिक से लेकर शारीरिक शोषण भी करते...

Dalit Chintan Thought on Differnt Social Media

1. (756) साहित्य आज तक के मंच पर प्रो.रतन लाल का गुस्सा सातवें आसमान पर - YouTube 2.  Sahitya Aajtak 2024: संविधान के 75 बरस: 2 दलित साहित्य, समाज और संविधान | Mohan Dass | Sheoraj Singh 3. It will be added more links in further days. 

The Reality of RSS

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  'यह आप बिलकुल अच्छी तरह से जानते हैं कि इन लोगों ने मरने का फैसला कर लिया है |  यह कोई मज़ाक नहीं है | मैं कानून मंत्री को बताना चाहता हूँ कि वो इस बात को समझें कि कोई आम इंसान जान बूझ कर फाका करके मरने का फैसला नहीं कर सकता | आप थोड़ी देर के लिए भी ऐसा करके तो देखिये आपको खुद समझ में आ जाएगा |' जो इंसान भूख हडताल करता है वह अपनी आत्मा की आवाज़ पर ऐसा करता है | वह अपनी आत्मा की बात सुनता है और उसे विश्वास होता है कि वह सच्चे और इन्साफ के रास्ते पर है | वह कोई आम इंसान नहीं है जो ठन्डे दिमाग से किये गये दुष्टतापूर्ण अपराध का अपराधी हो ' - मोहम्मद अली जिन्नाह  नेशनल असेम्बली में भगत सिंह के पक्ष में बोलते हुए  दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक गोलवरकर भगत सिंह की कुर्बानी के आलोचक थे, देखिये उन्होंने भगत सिंह के खिलाफ क्या लिखा है  ‘बंच ऑफ थॉट्स’ (गोलवलकर के भाषण और लेखों का संकलन, जिसे संघ में पवित्र ग्रंथ माना जाता है) के कई अंश हैं जहां उन्होंने शहादत की परंपरा की निंदा की है. ‘इस बात में तो कोई संदेह नहीं है कि ऐसे व्यक्ति जो शहादत को गले लगाते है...

कांग्रेस का दोहरा रूप

 बाबा साहब को भारत रत्न देने से मंडल कमीशन लागू करने और ओबीसी आरक्षण तक, कांग्रेस के शासन में ओबीसी और एससी के काम क्यों नहीं होते हैं? - बाबा साहब को कांग्रेसी शासन में भारत रत्न नहीं मिला. बाबा साहब के जन्म दिन की छुट्टी कांग्रेसी शासन में नहीं दी गई. बाबा साहब को भारत रत्न वीपी सिंह सरकार ने 1990 में दिया, जिसका समर्थन बीजेपी कर रही थी.  - सरदार पटेल को भारत रत्न इसके भी बाद जाकर मिला. पता नहीं कांग्रेस को क्या समस्या थी? - मंडल कमीशन का गठन 1978 में हुआ, जब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार थी, जिसमें जनसंघ (अब भी बीजेपी) शामिल थी. आडवाणी और वाजपेयी मंत्री थे.  - कांग्रेस इस रिपोर्ट पर बैठी रही. ये रिपोर्ट 1990 में लागू होती है. संयोग है कि इस सरकार का समर्थन बीजेपी कर रही थी. बीजेपी ने संसद में रिपोर्ट लागू करने का समर्थन किया. कांग्रेस ने विरोध किया.  - राजीव गांधी ने मंडल कमीशन के खिलाफ लोकसभा में जो भाषण दिया, वह उनके जीवन का सबसे लंबा भाषण था. - ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा मोदी सरकार में मिला.  - 1986 से मेडिकल एडमिशन में ऑल इंडिया सीटों का नियम लागू था...

Bulldozing: Its Harmful, not a Democratic Steps for Democracy In Uttar Pradesh

  Educate!                                                         Agitate!!                                                               Organize!!! Bulldozing Lives: Caste Violence and State Brutality in Uttar Pradesh      Uttar Pradesh has become a site of concentration camps for Dalits and Muslims. The Chief Minister of Uttar Pradesh, Yogi Adityanath, popularized by Manu media as 'Bulldozer Baba', openly threatens and murders people from oppressed communities. The double-engine government has ensured nothing but double humiliation, harassment, and oppression of Dalits and Muslims in the State. The State-sponsored ...

अंबेडकर और गांधी की सामाजिक स्थिति और उसके फायदे!

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 मोहनदास को स्कूल के भीतर बैठाया गया इस लड़के के साथ स्कूल में कोई भेदभाव नही किया गया, जाति से मोड़ बनिया जो था पिता राजकोट रियासत में दीवान थे. ब्लैक बोर्ड पर लिखावट साफ़ दिखाई देती, मास्टर की वाणी भी साफ़ सुनाई पड़ती लेकिन इसके बावजूद भी ये विद्यार्थी पढ़ाई में कमजोर था, स्कूल प्रोग्रेस रिपोर्ट कार्ड अनुसार मोहनदास सामान्य विद्यार्थी था जो इंग्लिश में ठीक ठाक था, गणित और भूगोल में कमजोर और उसकी लिखावट बेहद खराब थी. भीम राव का जन्म गरीब परिवार में हुआ, पिता मामूली सिपाही थे. भीम राव को स्कूल में कक्षा से बाहर बिठाया गया उनसे भेद भाव किया जाता अन्य विद्यार्थी उनकी परछाई से भी दूर भागते. कारण क्रूर सनातन संस्कृति अनुसार भीम राव अछूत महार जाति से हैं. कक्षा में बाहर बिठाए जाने कारण ब्लैक बोर्ड पर अक्षर धूमिल दिखाई देता लेकिन इसके बावजूद भीम राव पढ़ाई में होशियार थे हर विषय में उन्हें महारत हासिल थी. मोहनदास अपने पिता के धन के बल पर लंदन में कानून की पढ़ाई करने गए. भीम राव को बड़ोदा के राजा ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी पढ़ने भेजा पर इसके एवज में उन्हें बड़ोदा रियासत को अपनी सेवा देनी थी. ...

संविधान की सोच

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संविधान कहता है कि हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह वैज्ञानिक समझ का प्रसार करे इसलिए मैं आपसे कुछ कुछ बातों पर वैज्ञानिक तरीके से सोचने का आग्रह करता हूँ हमारे सभी भगवान् हथियारधारी हैं वे किनको मारते थे ? क्या कहीं ऐसा तो नहीं मारने वालों को ही हमने भगवान बना लिया ? आप कहते हैं वे असुरों को मारते थे मतलब असुर खराब होते थे ध्यान दीजिये हम पूरे असुर समाज को बुरा कहते हैं हमारे युद्ध के वर्णनों में लिखा गया है कि हमले से असुर स्त्रियों के गर्भ गिर गये और असुर जल कर चिल्ला कर भागने लगे इसका मतलब है जिन्हें हम मार रहे थे वे असुर परिवार समेत रहने वाले लोग थे यानी असुर पूरे के पूरे समुदाय थे उनके गाँव थे उनके परिवार थे पत्नी बच्चे घर सब थे यानी वे हमारी तरह के ही लोग थे हम उन्हें मारते थे उनका कसूर था कि वे काले होते थे उनके सींग होते थे वे हो हो करके जोर से हंसते थे आज भी आदिवासी काले होते हैं, हो हो कर के हंसते हैं, आज भी आप कुछ समुदायों से नफरत करते हैं आप दलितों आदिवासियों मुसलमानों ईसाईयों से नफरत करते हैं उनके साथ खान पान शादी ब्याह में आपको आज भी आपत्ति है यानी पूरे के पूरे समुदायों को ...

RSS Rashtriya Swayamsewak Sangh.

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ASSAM CM‟S CLAIM THAT BAJRANG DAL HAS NO LINK WITH RSS CONTRADICTS RSS ARCHIVES   A leading RSS cadre who happens to be the chief minister of Assam, Himanta Biswa Sarma true to his training at the RSS „boudhik shivirs‟ (ideological training camps) resorted to a Hindutva trade-mark lie that “The Bajrang Dal is not associated in any way with the Bharatiya Janata Party or the Rashtriya Swayamsevak Sangh.” [„RSS, BJP don't even have a distant connection with Bajrang D al: Himanta on outfit providing arms training in Assam, The Indian Express, Delhi, September 12, 2023. Link: https://indianexpress.com/article/india/rss-bjp-bajrang-dal-himanta-biswa-sarma-8935343/] This lie was spoken not while addressing some Hindutva zealots or election meeting but in a meeting of Assam Assembly. He was responding to an adjournment motion on arms training during a Bajrang Dal camp in the state earlier in 2023. Let us compare this claim of Himanta with the documents in the RSS archives. The ...

अखिल भारतीय पासी समाज

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अखिल भारतीय पासी समाज जिला शाखा के चौथम प्रखंड के नीरपुर पंचायत में एक बैठक का आयोजन संयोजक पंकज चौधरी के अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। कार्यक्रम में जिला अध्यक्ष शोभा कांत चौधरी जिला प्रवक्ता सह मीडिया प्रभारी गोपाल कृषण चौधरी गोगरी संयोजक सहदेव चौधरी के अलावा दर्जनों दंडाधिकारी बैठक में सिरकत किया। सभा को संबोधित करते हुए संयोजक पंकज चौधरी ने कहा कि संगठन की मजबूती सबसे पहले जरूरी है इसे पंचायत से लेकर जिला स्तर तक ले जाना है। वहीं जिला अध्यक्ष शोभा कांत चौधरी ने कहा कि 2016 से लेकर अब तक राज्य सरकार के तुगलकी फरमान के चलते राज्य भर के पासी समाज हसिये पर है अगर इस पर रोक राज्य सरकार नहीं लगाती है तो बाध्य होकर आने वाले 2024 का लोकसभा चुनाव 2025 का विधानसभा चुनाव के जदयू को वोट नहीं करेंगे। ये कार्य सिर्फ़ खगड़िया तक नहीं राज्यभर के पासी समाज बहिष्कार करेंगे। पासी समाज सरकार से मांगा करती है कि के के पाठक द्वारा जो काला कानून लगाया था उसे अविलंब समाप्त करने की मांग की। वहीं जिला प्रवक्ता सह मीडिया प्रभारी गोपाल कृष्ण चौधरी ने कहा कि पासी समाज की समस्या को लेकर एक शिष्ट मंडल देवनानी चौधर...

प्रधानमंत्री गुलज़ारीलाल नंदा

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  एक आज वाला है और एक प्रधानमंत्री थे गुलज़ारी लाल नंदा। एक बार 94 साल के एक बूढ़े व्यक्ति को मकान मालिक ने किराया न दे पाने के कारण उसे मकान से निकाल दिया। बूढ़े व्यक्ति के पास एक पुराना बिस्तर, कुछ एल्युमीनियम के बर्तन, एक प्लास्टिक की बाल्टी और एक मग आदि के अलावा शायद ही कोई और सामान था। बूढ़े ने मालिक से किराया देने के लिए कुछ समय देने का अनुरोध किया। पड़ोसियों को भी बूढ़े आदमी पर दया आयी और उनके कहने पर मकान मालिक को किराए का भुगतान करने के लिए उस बूढ़े आदमी को कुछ दिनों की मोहलत देने के लिए मना लिया। वह बूढ़ा आदमी अपना सामान अंदर ले गया। रास्ते से गुजर रहे एक पत्रकार ने रुक कर यह सारा नजारा देखा। उसने सोचा कि यह मामला उसके समाचार पत्र में प्रकाशित करने के लिए उपयोगी होगा। उसने एक शीर्षक भी सोच लिया,  ”क्रूर मकान मालिक, बूढ़े को पैसे के लिए किराए के घर से बाहर निकाल देता है।”  फिर उसने किराएदार बूढ़े की और किराए के घर की कुछ तस्वीरें भी ले लीं।  पत्रकार ने जाकर अपने प्रेस मालिक को इस घटना के बारे में बताया। प्रेस के मालिक ने तस्वीरों को देखा और हैरान रह गए। उन्होंन...

इश्क़ की अच्छी बातें।

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पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोए,  ढ़ाई आखर प्रेम के पढ़े सो पंडित होए।।  इश्क़ जाति देखकर नहीं होता। मोहब्बत क्रांति करने के लिए नहीं होती, पर मोहब्बत से संभव है कि क्रांति हो जाए। प्रेम वैसे नहीं होता जैसे गणितीय गणना होती है सोच-समझ कर। सोच-समझ कर तो अवसर के फायदे उठाये जाते हैं। अगर यह सब है, तो वह बाक़ी कुछ भी हो, इश्क़ नहीं है. इश्क़ करना अपने आप में ही क्रांति है। इश्क़ में दो अलग-अलग शख़्स मिलकर एक हो जाते हैं। कोई बड़ा, छोटा या ऊँचा नीचा नहीं रह जाता है। इश्क़ बेड़ियाँ तोड़ता है, जितनी बाहर की, उससे कहीं ज़्यादा भीतर की। इश्क़ हमें एक मुक़म्मल (सम्पूर्ण) इंसान बनाता है। इस दौर को मोहब्बत की सख़्त ज़रूरत है। अगर इश्क दो अलग-अलग धर्म के युवक-यूवती के बीच हो, आपस में प्रेम हो और दोनों में से कोई ये कहें की तुम मेरे धर्म को अपना लो हम दोनों एक जैसे हो जायेंगे, ख़ुशी से जीवन बिताएंगे; यकीन करो ये बाते खुश रहने के लिए पर्याप्त नहीं है अंततः तुम्हे प्रेम ही खुश रख सकता है। बांकी ख़ुशी क्षण भर की होंगी। ऐसा करने से प्रेम के मध्य बड़ा अर्चन पैदा हो सकता है। सोचो इसी धर्म के चलते ...

हिन्दुओं में फैले हुए अंधविश्वासो

हिन्दुओं में फैले हुए अंधविश्वासो और कुरीतियों के बारे में लिखो तो तुरंत कुछ लोग आकर कहते हैं कि दम है तो मुसलमानों के बारे में लिख कर दिखाओ  मेरे कुछ मुस्लिम दोस्त मुसलमानों की कुरीतियों के बारे में लिखते हैं तो उन्हें मुसलमान आकर इसी तरह से बुरा भला कहते हैं  देखिये आपको सिर्फ अपने समुदाय की कमियों और कुरीतियों पर ही बोलने का अधिकार है  दुसरे धर्म या समुदाय के खिलाफ लिखने बोलने का आपको कोई अधिकार नहीं है  हांलाकि आपको यही अच्छा लगता है कि आप दुसरे धर्म की बुराई खोजें और उन्हें बुरा भला कहें  इससे आपका झूठा घमंड और ज्यादा फूल जाता है कि देखो मैं कितना महान हूँ  मान लीजिये जब आपके समुदाय का ही व्यक्ति आपके समुदाय की कुरीतियों के बारे में कहता है तो वह आपका सबसे बड़ा दोस्त है  आपके दुश्मन दुसरे धर्म के लोग नहीं है  आपका अज्ञान गरीबी और पिछड़ापन आपका सबसे बड़ा दुश्मन है  अगर हिन्दू ख़त्म होंगे तो वह गरीबी अज्ञान और अंधविश्वास की वजह से खत्म होंगे   मुसलमान हिन्दुओं का कुछ नहीं बिगाड़ सकते  मुसलमान डूबेंगे तो अपनी ज़हालत और गरीबी की वजह...

वीरांगना दुर्गा भाभी और पति भगवती चंद्र बोहरा

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 यह दुर्गा भाभी हैं, वही दुर्गा भाभी जिन्होंने साण्डर्स वध के बाद राजगुरू और भगतसिंह को लाहौर से अंग्रेजो की नाक के नीचे से निकालकर कोलकत्ता ले गयी. इनके पति क्रन्तिकारी भगवती चरण वोहरा थे. ये भी कहा जाता है कि चंद्रशेखर आजाद के पास आखिरी वक्त में जो माउजर था, वो भी दुर्गा भाभी ने ही उनको दिया था. 14अक्टूबर 1999 में वो इस दुनिया से गुमनाम ही विदा हो गयी कुछ एक दो अखबारों ने उनके बारे में छापा बस. आज आज़ादी के इतने साल के बाद भी न तो उस विरांगना को इतिहास के पन्नों में वो जगह मिली जिसकी वो हकदार थीं और न ही वो किसी को याद रही चाहे वो सरकार हो या जनता. किसी स्मारक का नाम तक उनके नाम पर नही है कहीं कोई मूर्ति नहीं है उनकी. सरकार तो भूली ही जनता भी भूल गयी. ऐसी पूज्य वीरांगनाओं को हम शत शत नमन करते है और भविष्य मे ऐसे तमाम वीरों और वीरांगनाओं को सम्मान दिलाने के लिये प्रयासरत रहें . साभार –

बीएचयू के जाने-माने कार्डियोथोरेसिक सर्जन पद्म श्री डॉ. टी.के. लहरी

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 डॉ. लहरी का मुख्यमंत्री योगी से मिलने से इनकार? "हिंदुस्तान में आज भी ऐसे देवताओं की कमी नहीं है जो इस धरती पर रहकर देव तुल्य कर्म कर रहे हैं ऐसे ही हैं डॉ. तपन कुमार लहरी! जिनको आज भी हाथ में बैग और छतरी लिए पैदल घर या बीएचयू हास्पिटल की ओर जाते हुए देखा जा सकता है।" आम लोगों का निःशुल्क इलाज करने वाले बीएचयू के जाने-माने कार्डियोथोरेसिक सर्जन पद्म श्री डॉ. टी.के. लहरी (डॉ तपन कुमार लहरी) ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उनके घर पर जाकर मिलने से इनकार कर दिया है। योगी को वाराणसी की जिन प्रमुख हस्तियों से मुलाकात करनी थी, उनमें एक नाम डॉ टीके लहरी का भी था। मुलाकात कराने के लिए अपने घर पहुंचने वाले अफसरों से डॉ लहरी ने कहा कि मुख्यमंत्री को मिलना है तो वह मेरे ओपीडी में मिलें। इसके बाद उनसे मुलाकात का सीएम का कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया। अब कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री चाहते तो डॉ लहरी से उनके ओपीडी में मिल सकते थे। लेकिन वीवीआईपी की वजह से वहां मरीजों के लिए असुविधा पैदा हो सकती थी। जानकार ऐसा भी बताते हैं कि यदि कहीं मुख्यमंत्री सचमुच मिलने के लिए ओपीडी मह...

धर्म परिवर्तन का बहाना और हिन्दुत्व का ऐजेंडा

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अक्सर यह कहा जाता है कि मुगलों ने जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाया था  लेकिन अंग्रेजी शासन के समय के आंकड़े कुछ और ही कह रहे है। 1881 की जनगणना के मुताबिक संयुक्त पंजाब में हिन्दू जाटों की जनसंख्या 14 लाख 45 हजार थी। पचास वर्ष बाद अर्थात 1931 में जनसंख्या होनी चाहिए थी 20 लाख 76 हजार  लेकिन घटकर 9 लाख 92 हजार रह गई। संकेत साफ है कि अंग्रेजी शासन के इन 50 सालों में 50%जाट सिक्ख व मुसलमान बन गए। इस दौरान हिंदुओं की आबादी 43.8%से घटकर 30.2%हो गई  व सिक्खों की आबादी 8.2% से बढ़कर 14.3%  व मुसलमानों की आबादी 40.6% से बढ़कर 52.2% हो गई। जाटों ने धर्म परिवर्तन इसलिए किया क्योंकि ब्राह्मण धर्म का कास्ट-सिस्टम इनको जलील कर रहा था। पाखंड व अंधविश्वास की लूट उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही थी। जाट सदा से प्रकृति के नजदीक रहा है।  इंसान जीवन मे सरलता ढूंढता है  लेकिन ब्राह्मण धर्म ने कर्मकांडों का जंजाल गूंथ दिया था  जिससे मुक्ति के लिए धर्म परिवर्तन करना पड़ा। हालांकि दयानंद सरस्वती के अथक प्रयासों के कारण जाटों को धर्म परिवर्तन से रोका गया था। मूर्तिपूजा का विरोध करके जाटों को ...

कश्मीर 1947 परिस्थिति

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 #कश्मीर_1947_परिस्थिति #नेहरू_जिन्ना_माउंटबेटन_सयुंक्त_राष्ट्र_जनमत_संग्रह #मिथक_और_तथ्य  आरोप लगता है कि नेहरू की वजह से कश्मीर समस्या है,पटेल की जगह नेहरू ने इसे अकेले हैंडल किया इसलिए सब गुड़गोबर हो गया, UN जाकर सत्यानाश किया।सच क्या है? #इति_श्री_इतिहास  में लाल चौक पर झंडा फहराकर भीड़ के बीच खड़े पं.नेहरू की तस्वीर देखते हुए । अब थोड़ा धैर्य से पढ़िएगा अब तथ्य  सितंबर का महीना,1949। कश्मीर घाटी में एक बेहद खास सैलानी पहुंचते हैं, नाम था पंडित जवाहर लाल नेहरू। झेलम नदी इस बात की गवाह है कि पं.नेहरू और शेख अब्दुला उसकी गोद  में थे। दोनों ने करीब 2 घंटे तक खुले आसमान के नीचे नौकाविहार किया।आगे-पीछे खचाखच भरे शिकारों की कतार थी...  हर कोई प.नेहरू को एक नजर निहार लेना चाहता था। नेहरू पर फूलों की वर्षा हो रही थी, नदी के किनारे आतिशबाजी हो रही थी, स्कूली बच्चे नेहरू-अब्दुला जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। इस पर टाइम मैग्जीन ने लिखा- ''सारे लक्षण ऐसे हैं कि हिंदुस्तान ने कश्मीर की जंग फतह कर ली है'' मगर ये...बात तो तब की है जब कश्मीर का भारत में विलय हो चुका था,...

होलिका दहन और नैतिक मुल्य।

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होलिका दहन करने वाले इस लेख को अवश्य पढ़ें--- गत कई दिनों से पूरे देश के शैक्षणिक संस्थानों, मीडिया- चैनलों एवं राजनीतिक गलियारों में धर्मनिरपेक्षता की धज्जियां उड़ाते हुए होली मनाने की धूम मची हुई है। हर जगह आज की रात्रि में होलिका (महिला)का दहन किया जायेगा और कल रंग-अबीर उड़ाते हुए होली मनाई जाएगी। प्राचीन भारत में इस त्योहार की शुरुआत महान सम्राट हिरण्यकश्यप की हत्या और वैज्ञानिक एवं तकनीकी विशेषज्ञा हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के दहन करने से हुई थी।उसके पुत्र प्रह्लाद जो आर्य ब्राह्मणवादी देवता विष्णु के भक्त थे ,के जीवित बच जाने की खुशी से जुड़ी कहानी से हुई थी। इसके अलावा जितने भी ब्राह्मणवादी पुराण और पौराणिक कथाएं हैं उनमें तरह-तरह के विवरण मिलते हैं जो एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न और विपरीत हैं। दरअसल सिन्धु - हड़प्पा सभ्यता में इस त्योहार का कोई स्थान नहीं था। लगभग 1750 ईसा पूर्व से 1000ईसा पूर्व के बीच आर्यों-ब्राह्मणों द्वारा संपूर्ण सिंधु घाटी में वहां के मूलनिवासियों असुर,राक्षस, नाग, दास,दैत्य,दानव आदि की सम्पत्ति,सत्ता और संस्कृति पर कब्जा कर लिया गया था। फिर वे पूरब एवं दक्...

काश्मीर फाइल्स और राजनीतिक ताने-बानें

 The Kashmir Files देखते हुए मुझे Mathieu Kassovitz की फ़िल्म La Haine का एक डायलॉग बार बार याद आता रहा - "Hate Breeds Hate" ख़ैर …  मैं हर कहानी को पर्दे पर उतारने का समर्थक हूँ। यदि कहानी ब्रूटल है, तो उसे वैसा ही दिखाया जाना चाहिए।  जब टैरंटीनो और गैस्पर नोए, फ़िक्शन में इतने क्रूर दृश्य दिखा सकते हैं तो रियल स्टोरीज़ पर आधारित फ़िल्मों में ऐसी सिनेमेटोग्राफ़ी से क्या गुरेज़ करना। और वैसे भी, तमाम क्रूर कहानियाँ, पूरी नग्नता के साथ पहले भी सिनेमा के ज़रिए दुनिया को सुनाई और दिखाई जाती रही हैं।  रोमन पोलांसकी की "दा पियानिस्ट" ऐसी ही एक फ़िल्म है। ..  जलीयांवाला बाग़ हत्याकांड की क्रूरता को पूरी ऑथेंटिसिटी के साथ शूजीत सरकार की "सरदार ऊधम" में फ़िल्माया गया है। मगर आख़िर ऐसा क्या है कि पोलांसकी की "दा पियानिस्ट" देखने के बाद आप जर्मनी के ग़ैर यहूदीयों के प्रति हिंसा के भाव से नहीं भरते? और शूजीत सरकार की "सरदार ऊधम" देखने के बाद आपको हर अंग्रेज़ अपना दुश्मन नज़र नहीं आने लगता।  पर कश्मीर फ़ाइल्स देखने के बाद मुसलमान आपको बर्बर और आतंक...