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वीणा और हिमांशु की संघर्ष गाथा : छत्तीसगढ़ में आदिवासी के जीवन के लिए...

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जब मैंने वीणा को पहली बार देखा तो वह दिल्ली के गाँव गाँव में अपने साथियों के साथ उनके मानवाधिकारों के लिए पदयात्रा कर रही थी  वीणा ने खादी का सलवार कुरता पहना हुआ था और उसके एक कंधे पर कम्बल तह करके रखा हुआ था , कंधे पर खादी का झोला था और सर पर खादी का गमछा बांधा हुआ था  इसके कई साल के बाद 1992  में एक ट्रेन के सफर में मैंने वीणा के सामने एक साथ रहकर आदिवासियों के लिए काम करने का प्रस्ताव किया  और मुझे पता ही नहीं था कि वीणा कब से मुझे पसंद करने लगी थी वीणा ने तुरंत हाँ कर दी  हम दोनों ने अपने घर वालों को अपने फैसले की सूचना दी  दोनों के परिवार वाले बहुत खुश हुए और तीन महीनों के भीतर बीस नवम्बर के दिन ही हम दोनों की शादी हो गई  शादी के बीस दिन बाद हम दोनों ने अपना सामान पैक किया और हम दोनों बस्तर के एक गाँव में जाकर रहने लगे  गाँव में वीणा के मेकअप बाक्स में हमने दवाइयां भरी और मलेरिया से मरते हुए आदिवासियों का इलाज करने लगे  उसके बाद हमने आदिवासियों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने और उन्हें संगठित करने का काम किया  धीरे धीरे वह...

आइए, हम छठ पूजा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को जानें और समझें !

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आइए, हम छठ पूजा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को जानें और समझें! *****"*"*"*"*"*************"***"********** आज से चार दिनों तक चलने वाला छठ पर्व की शुरुआत नहाय- खाय (स्नान कर कद्दू की सब्जी और चावल भोजन करने से) होगी। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को यह व्रत मुख्य रूप से शुरु होता है, इसलिए लोग इसे छठ पूजा के नाम से पुकारते हैं।यह व्रत और पर्व इस अर्थ में अधिक महत्व का है कि यह मुख्य तौर पर बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश के लोगाें  द्वारा आयोजित किया जाता है। यहां के लोग भारत के विभिन्न प्रदेशों में स्थाई और अस्थाई तौर पर निवास करते हैं और बहुत लोग विदेशों में भी जा बसे हैं, इसलिए वे लोग उन स्थानों पर भी इस पर्व को मनाते हैं। इस व्रत की विशेषता यह है कि इसमें कृषि जनित अन्न,सब्जी, फल -फूल तथा गाय- भैंस पशु के दूध,घी, गोबर और नदी, सरोवर, पोखर आदि के जल से सूर्य की उपासना की जाती है। इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि घर द्वार की पूर्णतः सफाई की जाती है।व्रत करने वाले लोगों के द्वारा उपवास करने और फिर अस्ताचलगामी सूर्य एवं उदयमान सूर्य को अर्घ्य देकर उपासना के...

गणेश पूजा के इतिहास और संस्कृति को हम जानें और समझें...

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Social Justice (socialjusticesj.blogspot.com) आज गणेश चतुर्थी से पूरे देश भर में गणपति पूजा की हो रही है। महाराष्ट्र एवं  गुजरात में तो यह दस दिवसीय राजकीय पूजा का रूप ग्रहण कर चुका है। बिहार सहित पूरे हिन्दी भाषी क्षेत्रों में भाद्र माह अर्थात भादो महीने के शुक्ल चतुर्थी को चौठचंदा या चौरचंदा के नाम से महिलाओं द्वारा पति और बेटे की दीर्घायु जीवन के लिए चांद की पूजा का व्रत किया जाता है, जिसे गणेश पूजा के साथ भी जोड़ दिया गया है। वास्तव में यह गणेश या  गणपति पूजा है।इसकी शुरुआत गुप्तकाल के बाद हुई थी और बाद में इसे चांद की पूजा से जोड़ कर महिलाओं के बीच सदियों तक प्रचारित- प्रसारित किया गया। आधुनिक भारत में एक समारोह के रूप में महाराष्ट्र में इसकी शुरुआत स्वतंत्रता आंदोलन के प्रसिद्ध ब्राह्मणवादी नेता गंगाधर तिलक के द्वारा की गई थी। कोल्हापुर नरेश छत्रपति शाहूजी महाराज के द्वारा बहुजनों के लिए शिक्षा देने, छुआछूत खत्म करने, राजकीय पदों पर आरक्षण लागू करने एवं उनके अन्य समाज सुधार के कार्यक्रमों को देखकर ब्राह्मणवादी नेताओं और पुरोहितों में खलबली मच गई थी। उनके इन सुधार कार्यक्...

सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने जादुनाथ सिन्हा की थीसिस अपने नाम छपवा ली.

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https://www.facebook.com/rabindrakumar.mandal.1690/videos/3353200271659650/?idorvanity=439133580635381&mibextid=Nif5oz https://www.youtube.com/watch?v=wJbU4Foh7YM&t=25s यह पोस्ट पूरी तरह सत्य घटना पर आधारित है. इस पोस्ट में दर्ज सभी नाम वास्तविक हैं. मैं यह पोस्ट पूरी जवाबदेही के साथ लिख रहा हूँ. कहानी में छह प्रमुख किरदार हैं और तीन उच्च संस्थानों का वर्णन है. 1) जादुनाथ सिन्हा  2) सर्वपल्ली राधाकृष्णन  3) डॉ ब्रजेन्द्रनाथ सील  4) डॉ बीएन सील  5) आशुतोष मुखर्जी 6) श्यामा प्रसाद मुखर्जी संस्थान 1) कलकत्ता हाईकोर्ट 2) कलकत्ता विश्वविद्यालय 3) मैसूर विश्वविद्यालय ब्राह्मण कश्मीरी हो या बंगाली हो या तेलगु हो, इनमें गजब की एकता रहती है. 1921 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति थे आशुतोष मुखर्जी. इन्होंने औसत दर्जे के शिक्षक तेलगु नियोगी ब्राह्मण सर्वपल्ली राधाकृष्णन को 2011 किलोमीटर दूर मैसूर विश्वविद्यालय से निकालकर कलकत्ता विश्वविद्यालय में शिक्षक नियुक्त किया. बंगाली छात्रों को सर्वपल्ली राधाकृष्णन की भाषा शैली समझ में नही आती थी. जान पहचान के दम पर कलकत्ता ...

आरक्षण का विरोध करने वाले लोग

जाति आधारित आरक्षण का विरोध करने वाले लोग आमतौर पर निम्न बिंदुओं पर भी अपने तर्क और दावे प्रस्तुत करते हैं -  1. योग्यता की हत्या होती है - ज्यादातर आरक्षण विरोधी लोग यही तर्क देते हैं कि आरक्षण लागू होने पर योग्यता की हत्या होती है। वे कहते हैं कि उच्च शिक्षा जैसे मेडिकल, इंजीनियरिंग में अयोग्य लोगों को प्रवेश मिलेगा। जवाब - हजारों सालों से दबे-कुचले लोगों को मौका देने पर ही योग्यता आयेगी और वे अपने आपको योग्य बना लेंगे। यदि योग्यता ही एक मात्र मापदंड है तो पेमेंट-शीट, मंत्री कोटे, अफसर कोटे से अगड़े के बिगड़े बच्चों को प्रवेश देने में आपत्ति क्यों नहीं उठाते? कहीं इसलिए तो नहीं कि ये कोटे उन्हीं के लिए ही आरक्षित हैं? 2. आरक्षण से समाज में जातिवाद को बढ़ावा मिलता है और असली जरूरतमंदों को यानि निर्धनों को कोई लाभ नहीं मिलता है। जवाब - योग्यता तंत्र की दुहाई देने वाले लोग यह मानकर चलते हैं कि प्रतिभा और योग्यता उनकी जातियों की बपौती है। यह वैसा ही तर्क है जैसा कभी अंग्रेज हिन्दुस्तानियों के बारे में दिया करते थे कि हिन्दुस्तानियों को शासन की बागडोर सौंपी गई तो सब कुछ चौपट हो जाएगा। वा...

ग्रेट पेरियार नायकर के ईश्वर से कुछ सवाल

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1977 की बात है,मद्रास हाईकोर्ट में एक याचिका आई जिसमें कहा गया था कि तमिलनाडु में पेरियार की मूर्तियों के नीचे जो बातें लिखी हुई हैं, वे आपत्तिजनक हैं और लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाती हैं इसलिए उन्हें हटाया जाना चाहिए। याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि ईरोड वेंकट रामास्वामी पेरियार जो कहते थे, उस पर विश्वास रखते थे इसलिए उन के शब्दों को उन की मूर्तियों के पैडेस्टर पर लिखवाना गलत नहीं है। पेरियार की मूर्तियों के नीचे लिखा था- ‘ईश्वर नहीं है और ईश्वर बिलकुल नहीं है। जिस ने ईश्वर को रचा वह बेवकूफ है, जो ईश्वर का प्रचार करता है वह दुष्ट है और जो ईश्वर की पूजा करता है वह बर्बर है।’ ग्रेट पेरियार नायकर के ईश्वर से सवाल : 1. क्या तुम कायर हो जो हमेशा छिपे रहते हो, कभी किसी के सामने नहीं आते? 2. क्या तुम खुशामद परस्त हो जो लोगों से दिन रात पूजा, अर्चना करवाते हो? 3. क्या तुम हमेशा भूखे रहते हो जो लोगों से मिठाई, दूध, घी आदि लेते रहते हो ? 4. क्या तुम मांसाहारी हो जो लोगों से निर्बल पशुओं की बलि मांगते हो? 5. क्या तुम सोने के व्यापारी हो जो मंदिरों में लाखों टन सोना दबाये ब...

तानाशाही और अंधविश्वासों पर टिके हुए सामाजिक आधार

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उपनिवेश विरोधी संघर्ष के दौरान भारत के उच्च-वर्गीय नेताओं ने जान-बूझकर भारतीय राष्ट्रवाद को हिंदू राष्ट्रवाद के प्रतिनिधि रूप में पेश किया।  स्वाभाविक ही था कि उन्होंने इस राष्ट्रवाद को उन हिंदू ग्रथों में तलाश किया जो दलित-बहुजन को आध्यात्मिक रूप में अशुद्ध और ऐतिहासिक रूप से मूर्ख करार देती थीं। फुले, पेरियार और अंबेडकर को छोड़कर किसी भी और राष्ट्रवादी नेता ने राष्ट्रवादी विमर्श को धर्म-निरपेक्ष रखने और उसमें हिंदू चेतना की अवैज्ञानिकता की आलोचना को जगह देने का प्रयास नहीं किया। हिंदू धर्म को केन्द्र मे रखकर किया जानेवाला मुख्य धारा का समूचा विमर्श यही कहता है कि यह एक पवित्र धर्म रहा है, इसकी उत्पादन-विरोधी और विज्ञान -विरोधी नैतिकता पर कभी किसी ने कोई सवाल नहीं उठाया। इससे अविकास की एक विनाशकारी प्रक्रिया शुरू हुई। हिंदू आध्यात्मिक ने बौद्धिक गरीबी का निर्माण किस-किस तरह किया और भाऋत के आध्यात्मिक, सामाजिक और नैतिक तंत्र में अब हमारे पास क्या विकल्प हैं। देश को हिंदू धर्म की आध्यात्मिक तानाशाही और अंधविश्वासों पर टिके हुए सामाजिक आधार से रचनात्मक आध्यात्मिक के लोकतंत्र तक ले जान...

बहुजन राजनीति का मॉडल प्रदेश तमिलनाडु- 1912 ( जस्टिस पार्टी) से एम. के स्टालिन तक

तमिलनाडु में द्रविड़ बहुजन राजनीति  की औपचारिक शुूरूआत 1916 में तब हुई, जब जस्टिस पार्टी ने गैर-ब्राह्मण घोषणा-पत्र जारी किया। ब्राह्मणवाद बनाम गैर-ब्राह्मणवाद का संघर्ष ही इस घोषणा-पत्र का मूल स्वर था। तमिलनाडु (तब मद्रास प्रेसीडेंसी)  में ब्राह्मणों का वर्चस्व किस कदर था, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 1912 में वहां ब्राह्मणों की आबादी सिर्फ 3.2 प्रतिशत थी, जबकि 55 प्रतिशत जिला अधिकारी और 72.2 प्रतिशत जिला जज ब्राह्मण थे। मंदिरों और मठों पर ब्राह्मणों का कब्जा तो था ही जमीन की मिल्कियत भी उन्हीं लोगों के पास थी। इस प्रकार तमिल समाज के जीवन के सभी क्षेत्रों में ब्राह्मणों का वर्चस्व था 1915-1916 के आसपास मंझोली जातियों की ओर से सी.एन. मुलियार, टी. एन. नायर और पी. त्यागराज चेट्टी ने जस्टिस आंदोलन की स्थापना की थी। इन मंझोली जातियों में तमिल वल्लाल, मुदलियाल और चेट्टियार प्रमुख थे। इनके साथ ही इसमें तेलुगु रेड्डी, कम्मा, बलीचा नायडू और मलयाली नायर भी शामिल थे। 1920 में मोंटेग-चेम्सफोर्ड सुधारों के अनुसार मद्रास प्रेसीडेंसी में एक द्विशासन प्रणाली बनायी गयी जिसमें प्...

प्यार से रहना आसान, नफरत से रहना दूभर

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हिंदुओं में भक्ति का एक प्रकार होता है उसका नाम है विरोधी भक्ति कहते हैं जब आप किसी से खूब ज्यादा नफरत करते हैं तो असल में वह भी मोहब्बत का ही एक रूप होता है क्योंकि जिससे आप घृणा करते हैं आप हर वक्त उसी के बारे में सोचते रहते हैं किसी के बारे में हर वक्त सोचने से वह हमेशा आपके दिल में रहने लगता है और जो हमेशा आपके दिल में रहता है आपको उससे प्यार हो जाता है तो आपकी ना ना करते प्यार उसी से कर बैठे वाली हालत हो जाती है जब मैं छोटा था तो हमारी मां एक कहानी सुनाती थी एक चरवाहा था वह बहुत दुखी रहता था बचपन में उसके मां बाप मर गए थे वह गांव वालों के जानवर चराता था गांव वाले बदले में उसे बासी खाना दे देते थे  दुख सह सह कर धीरे-धीरे उसे भगवान से नफरत हो गई  जंगल में एक पुराना शिव मंदिर था वह गुस्से में जाकर रोज शिवलिंग को एक लात मारता था कई लोग थे जो जाकर शिव लिंग को जल भी चढ़ाते थे एक बार उस इलाके में बरसात जोर से हुई और बाढ़ आ गई  घर बह गए  शिव पर रोज जल चढ़ाने वाले अपना घर बार की फिक्र में पड़े थे लेकिन चरवाहे को शिवलिंग पर रोज लात मारना याद था चरवाहा बाढ़ में चढ़ी हुई नद...

सत्ता, नौकरियों एवं संपत्ति का बंटवारा वर्णों के क्रम के अनुसार ही है...

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आज भी भारत में, सत्ता, नौकरियों एवं संपत्ति का बंटवारा वर्णों के क्रम के अनुसार ही है, वर्ण व्यवस्था पूरी तरह लागू है-कुछ तथ्य  1- वर्तमान लोकसभा में (यानी 2019 में चुने गए सदन) कुल 543 सांसदों में 120 ओबीसी, 86 अनुसूचित जाति और 52 अनुसूचित जनजाति के हैं और हिंदू सवर्ण जातियों के सांसदों की संख्या 232 है। आनुपातिक तौर देखें, तो ओबीसी सांसदों का लोकसभा में प्रतिशत 22.09 है, जबकि मंडल कमीशन और अन्य आंकड़ों के अनुसार आबादी में इनका अनुपात 52 प्रतिशत है। इकनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित एक विश्लेषण के मुताबिक, आबादी में करीब 21 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले सवर्णों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व उनकी आबादी  से करीब दो गुना 42.7 प्रतिशत है।  52  प्रतिशत ओबीसी को अपनी आबादी के अनुपात से आधे से भी कम और सवर्णों को उनकी आबादी से दो गुना प्रतिनिधित्व  मिला हुआ है।  2-‘द प्रिंट’ में प्रकाशित एक विश्लेषण के अनुसार, 2019 में पीएमओ सहित केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में कुल 89 शीर्ष आईएएस अधिकारियों ( सचिवों) में से एक भी ओबीसी समुदाय से नहीं था और इनमें केवल एक एससी  औ...

ब्राह्मणवाद

  गैर ब्राह्मणों को अवश्य विचार करना चाहिए! "ब्राह्मण" सरेआम सड़कों पर अपने समुदाय को कभी गाली नही बकता.. "सड़कों, चौराहों, ढाबों और अपने ही घरों" में बात-बात पर गाली बकने वाली मख्लूक कौम "दलित-मुस्लिम, ओबीसी, किसान व क्षत्रिय-राजपूत" समुदाय है।  ब्राह्मणों को पहले आरक्षण नही मिलता था, फिर भी सरकार के हर तंत्र की मशीनरी में सबसे ज्यादा "ब्राह्मण" पुर्जे लगे हुए हैं और रिमोट-कंट्रोल भी ब्राह्मणों के हाथ में है। ब्राह्मणो का नाम चिन्दी चोरियों, जेबकतरी,, लूटेरों व दादागिरि में नही आता, जब्कि इनका नाम बड़े बड़े घोटालो में स्वर्ण अक्षरों में  नाम मिल जाएगा..  ये टपोरीबाज़ी  नही करते। जब्कि ये बड़े बड़े दंगो में जाँच के केंद्र में रहते हैं और जब चाहे जाँच की दिशा भी मोड़ देते हैं.. ये देर रात घर के बाहर सिगरेट चाय का आनंद लेते नही नजर आते। आपको देशी शराब के ठेकों पे दारु पीते हुए ब्राह्मण नही मिलेंगे... ब्राह्मण आपको आलिशान बार, आश्रम, दरबार में मिलेगा.. शराब पीकर "गटर नालों" में दलित-मुस्लिम ओबीसी, किसान, दलित, क्षत्रिय-राजपूत मिलते रहते हैं।  सड़को...

Caste system in Islam मुसलमानों में जातियां

 मुसलमानों में सवर्ण, पिछड़ा और दलित जातियां हैं। इनकी आपस में शादियाँ नहीं होतीं। फिर शिया व सुन्नी दो बड़े सेक्शन हैं। इनकी आपस में शादियाँ तो छोड़िए अमूमन दोस्ती तक नहीं होती, दुश्मनी भले रहे या हो जाये। पाकिस्तान में तो इनके बीच जंग ही होती रहती है।  इन दो धड़ो में फिर ढेर सारे फिरके हैं, मसलन सुन्नियों में वहाबी, बरेलवी, अहले हदीस आदि। इनकी भी आपस में शादियाँ नहीं होतीं, कई तो एक दूसरे की मस्जिदों में नमाज़ तक नहीं पढ़ते। मेरा ताअल्लुक़ बरेलवी ग्रुप से है और मुझे लगता है कि हमारा ग्रुप सबसे खुराफ़ाती मुसलमान है। बरेलवी की मस्जिद में किसी और फिरके के लोग आ जाएं तो मारपीट तक हो सकती है, बाकी मस्जिद धोयी जाएगी, ये तो पक्की बात है।  हिन्दू धर्म में धर्मांतरण हो जाये तो संकट खड़ा हो जाएगा कि उसे किस जाति में रखा जाए। मुसलमानों में शिया या सुन्नी में जाना तो आसान है लेकिन जाति वाला संकट यहां भी है।  वहाबी व अहले हदीस तबक़े से पिछले कुछ सालों में एक तरक्कीपसंद तबका पैदा हुआ है जो जाति तोड़कर शादियाँ कर रहा है लेकिन ये अभी प्रचलन में बहुत कम है। शिया समूह के बारे में ज़्यादा लिखने ...

संत कबीर

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संत परंपरा में कबीर वर्ग संघर्ष को लेकर प्रतिबद्ध थे! कबीर डंके की चोट पर कहते हैं कि 'तू बाम्हन मैं कासी का जुलाहा।' अगर कहें तो धर्मनिरपेक्षता का सबसे बेहतर उदाहरण आपको कबीर के यहां मिलेगा।  कबीर कहते हैं कि  पाथर पूजे तो हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहाड़। ताते या चाकी भली, पीस खाए संसार।। काँकर पाथर जोरि कै, मस्जिद लई बनाय। ता चढ़ मुल्‍ला बांग दे, बहिरा हुआ खुदाए।। कबीर एक ऐसे संत हैं जिसे किसी बंधनों में नहीं बांधा जा सकता है। कबीर कहते हैं कि 'पंछी खोज मीन को मारग, कहहि कबीर दोउ भारी।' आकाश में पक्षी की उड़ान का रास्ता और मछली का जल-मार्ग खोजना दुस्तर है। अगर स्वतंत्रता के अभिव्यक्ति की झलक आपको देखना है तो आप कबीर के परंपराओं में देख सकते हैं। कबीर ही ऐसे संत हैं जो कभी भी हीनता बोध का शिकार नहीं हुआ।  बच्चन सिंह अपने हिंदी साहित्य के दूसरा इतिहास में लिखते हैं कि ' बैठे-ठाले साधुओं तथा अगृहस्थ होकर भी गृहस्थी का उपदेश देनेवाले भक्तों के सामने वह शारीरिक श्रम का उदाहरण प्रस्तुत करता है। गृहस्थी में रहकर भी उससे वीतराग। छोटी जाति में पैदा होने पर भी उसमें हीनता की ग्...

एससी-एसटी एट्रोसिटी एक्ट को काला कानून बताने वाले और सामाजिक न्याय के कट्टर विरोधी

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एससी-एसटी एट्रोसिटी एक्ट को काला कानून बताने वाले और सामाजिक न्याय के कट्टर विरोधी सवर्ण कितने जहरीले और शातिर हैं इसकी बानगी तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में आप स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। नीचे तस्वीरों में एक सवर्ण लड़के के फेसबुक वॉल के कुछ फुटेज दिए गए हैं। इस लड़के ने कुछ लोगों के साथ मिलकर 26 मार्च को बिहार बन्द के दिन विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के एक शिक्षक को क्लासरूम से खींचकर थप्पड़ मारा। घटना के बाद उसी दिन शिक्षक ने इस पूरे मामले पर एफआईआर दर्ज कराते हुए इंसाफ की गुहार लगाई। दूसरे दिन इसी लड़के ने एक दलित लड़के को सामने लाकर हिंदी विभाग के उक्त शिक्षक और विभागाध्यक्ष पर एससी-एसटी एट्रोसिटी एक्ट के तहत जातिसूचक गाली देने का झूठा मुकदमा दर्ज करा दिया। इससे इस लड़के की शातिरी समझ सकते हैं। एक तो इस कानून का बेजा इस्तेमाल होता है, इसकी भी इसने पुष्टि कर दी और सामाजिक न्याय के लिए आवाज बुलंद करने वाले हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. योगेंद्र महतो को भी इसने बदनाम करने की कोशिश की। डॉ. योगेंद्र को जानने वाले जानते हैं कि उनपर लगाया गया यह इल्जाम कितना बेबुनियाद है।  हाँ एक ब...

इंसानियत और तर्क की बात

यह ऐसा समय है जब समाज इंसानियत और तर्क की बात करने  वाले हार रहे हैं और पूंजीवादी युद्धवादी राष्ट्रवादी तेज़ी से सारी  दुनिया में अपने पैरपसारते जा रहे हैं, ये ऐसा समय भी है जब सारी  दुनिया को एकमानने वाले बेईज्ज़त किये जा रहे हैं और अपने मुल्क  को महान बनाने के नारे लगाने वाले लोग सत्ता के सर पर बैठ गए  हैं,ये वो दौरहै जब इंसानियत की बात, सहनशीलता और तर्कशीलता  भयानक षड्यंत्र से जुड़े शब्द माने जा रहे हैं, दूसरों का ख्याल किये  बिना अपना ऐश ओ आराम बढ़ाते जाने को विकास मान लिया गया  है, ऐसे समय में कौन सी राजनीति लोकप्रिय होगी आप खुद सोचिये  ? एक इंसान आपसे कहता है कि तुम्हारा धर्म सबसे अच्छा है  तुम्हारी जाति सबसे ऊंची है ऐय्याशी से जीना और किसी बात की परवाह ना करना सबसे अच्छा जीवन है आओ अपने प्रतिद्वंदी धर्म  वाले को मार दें, आओ पड़ोसी मुल्क को मज़ा चखा दें, दूसरी तरफ दूसरा इंसान आपसे कहता है कि सिर्फ आपका धर्म सबसे अच्छा नहीं है बल्कि दुनिया के सभी धर्म एक जैसे हैं और सभी धर्म पुराने और अधूरे हैं इंसान को नई जानकारियों और खोजों से खुद ...

8 मार्च अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस

 अन्तरराष्ट्रीय स्त्री दिवस (8 मार्च) के अवसर पर आज स्त्री मुक्ति लीग, उत्तराखंड द्वारा देहरादून के राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज में ईरानी फ़ि‍‍ल्मकार मर्जिएह मेश्किनी की स्त्री प्रश्न पर केन्द्रित एक विश्व प्रसिद्ध ईरानी फ़िल्म   THE DAY I BECAME A WOMAN ( वह दिन जब मैं औरत बन गई) की स्क्रीनिंग और उसपर बातचीत की गई। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्त्री दिवस के इतिहास और आज के समय में इसकी महत्ता पर भी विस्तार से  बात की गयी। कार्यक्रम का संचालन करते हुए स्त्री मुक्ति लीग की संयोजिका कविता कृष्णपल्लवी ने स्त्री दिवस के इतिहास पर चर्चा करते हुए कहा कि, 1910 में आयोजित समाजवादी महिला सम्मेलन में नारी-मुक्ति-संघर्ष और मेहनतकश अवाम की नेता क्लारा जेटकिन ने शान्ति, जनतन्त्र और समाजवाद के लिए संघर्ष में दुनियाभर की उत्पीड़ित औरतों की क्रान्तिकारी एकजुटता के प्रतीक के तौर पर 8 मार्च को अन्तरराष्ट्रीय स्त्री दिवस के रूप में मनाने का आह्वान किया था, क्योंकि इसी दिन 1857 में अमेरिका के कपड़ा उद्योग में काम करने वाली मेहनतकश औरतों ने काम के घण्टे 16 से 10 करने के लिए एक जुझारू प्रदर्शन ...

Mata Savitry bai Fule माता सावित्री बाई फूले

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  आज दिनांक 10 मार्च,2021ई को आधुनिक भारत में महिलाओं की शिक्षा की ऐतिहासिक नींव रखने वाली, प्रथम छात्रा और शिक्षिका,ऊंच-नीच, छुआछूत एवं लिंग-विभेद के खिलाफ जीवन भर संघर्ष करने वाली अदम्य योद्धा, समाज सुधार की महानायिका राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले का 124वां परिनिर्वाण दिवस है। इस पुनीत अवसर पर सभी नागरिकों एवं बहुजन समाज के लोगों की ओर से उनके प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि और शत शत नमन।            03 जनवरी,1831ई में उनका जन्म महाराष्ट्र के सातारा जिले में खंडाला तहसील के नायगांव निवासी खंडोजी नेवसे पाटिल की ज्येष्ठ पुत्री के रूप में हुई थी।1840 ई में केवल 9 वर्ष की आयु में सावित्रीबाई की शादी तेरह वर्षीय ज्योतिबा फुले के साथ कर दी गई थी।  ज्योतिबा फुले और बुआ सगुणाबाई क्षीरसागर के प्रयास से उनकी शिक्षा हुई।         01जनवरी,1848ई में ज्योतिबा फुले ने आधुनिक भारत में प्रथम कन्या विद्यालय की स्थापना की थीं जिसमें प्रथम छात्रा के रूप में सावित्रीबाई फुले का नामांकन कराया गया था। बहुत ही कम समय में ही दिन- रात मेहनत कर  सावित्रीबा...

कोविड-19 का राजनीतिक अर्थशास्त्र

मनीष आज़ाद राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। इसीलिए सत्ता के दमन का शिकार भी हो चुके हैं। 29 फरवरी को 8 महीने बाद वे जेल से रिहा हो कर लौटे हैं। इसके पहले भी वे दस्तक के लिए लिखते रहे हैं। प्रस्तुत है कोरोना वायरस की महामारी से जुड़े तमाम पहलुओं को बताता उनका यह लेख।  यह लेख इस मायने में बेहद महत्वपूर्ण है कि अमेरिकी साम्राज्यवाद जहां इसका ठीकरा चीन पर, भारत इसका ठीकरा  मुसलमानों पर फोड़ रहा है, यह लेख इस महामारी के कारणों पर वैज्ञानिक रूप से प्रकाश डालता है, ताकि आने वाले समय के लिए हम अपने विकास का रास्ता साफ साफ देख सकें। नाजी जर्मनी में जब ‘सोफी’ नाम की एक महिला को उसके दो बच्चों के साथ नाजी सैनिक गैस चैम्बर में लाये तो उन्होंने सोफी के रोने गिड़गिड़ाने के बाद उसके दो बच्चों में से एक को जिन्दा छोड़ने का वादा किया, लेकिन कौन जिन्दा रहेगा और कौन गैस चैम्बर में जायेगा, यह चुनाव उन्होंने सोफी पर ही छोड़ दिया। 1979 में इसी कहानी पर आधारित ‘सोफीज च्वाइस’ नाम के उपन्यास की सफलता के बाद अंग्रेजी में ‘सोफीज च्वाइस’ [Sophie’s choice] एक मुहावरा ही चल पड़ा। आज जब मैं कोरोना वाइरस से भयाक्रान्त ला...