Posts

RSS Rashtriya Swayamsewak Sangh.

Image
ASSAM CM‟S CLAIM THAT BAJRANG DAL HAS NO LINK WITH RSS CONTRADICTS RSS ARCHIVES   A leading RSS cadre who happens to be the chief minister of Assam, Himanta Biswa Sarma true to his training at the RSS „boudhik shivirs‟ (ideological training camps) resorted to a Hindutva trade-mark lie that “The Bajrang Dal is not associated in any way with the Bharatiya Janata Party or the Rashtriya Swayamsevak Sangh.” [„RSS, BJP don't even have a distant connection with Bajrang D al: Himanta on outfit providing arms training in Assam, The Indian Express, Delhi, September 12, 2023. Link: https://indianexpress.com/article/india/rss-bjp-bajrang-dal-himanta-biswa-sarma-8935343/] This lie was spoken not while addressing some Hindutva zealots or election meeting but in a meeting of Assam Assembly. He was responding to an adjournment motion on arms training during a Bajrang Dal camp in the state earlier in 2023. Let us compare this claim of Himanta with the documents in the RSS archives. The ...

अखिल भारतीय पासी समाज

Image
अखिल भारतीय पासी समाज जिला शाखा के चौथम प्रखंड के नीरपुर पंचायत में एक बैठक का आयोजन संयोजक पंकज चौधरी के अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। कार्यक्रम में जिला अध्यक्ष शोभा कांत चौधरी जिला प्रवक्ता सह मीडिया प्रभारी गोपाल कृषण चौधरी गोगरी संयोजक सहदेव चौधरी के अलावा दर्जनों दंडाधिकारी बैठक में सिरकत किया। सभा को संबोधित करते हुए संयोजक पंकज चौधरी ने कहा कि संगठन की मजबूती सबसे पहले जरूरी है इसे पंचायत से लेकर जिला स्तर तक ले जाना है। वहीं जिला अध्यक्ष शोभा कांत चौधरी ने कहा कि 2016 से लेकर अब तक राज्य सरकार के तुगलकी फरमान के चलते राज्य भर के पासी समाज हसिये पर है अगर इस पर रोक राज्य सरकार नहीं लगाती है तो बाध्य होकर आने वाले 2024 का लोकसभा चुनाव 2025 का विधानसभा चुनाव के जदयू को वोट नहीं करेंगे। ये कार्य सिर्फ़ खगड़िया तक नहीं राज्यभर के पासी समाज बहिष्कार करेंगे। पासी समाज सरकार से मांगा करती है कि के के पाठक द्वारा जो काला कानून लगाया था उसे अविलंब समाप्त करने की मांग की। वहीं जिला प्रवक्ता सह मीडिया प्रभारी गोपाल कृष्ण चौधरी ने कहा कि पासी समाज की समस्या को लेकर एक शिष्ट मंडल देवनानी चौधर...

प्रधानमंत्री गुलज़ारीलाल नंदा

Image
  एक आज वाला है और एक प्रधानमंत्री थे गुलज़ारी लाल नंदा। एक बार 94 साल के एक बूढ़े व्यक्ति को मकान मालिक ने किराया न दे पाने के कारण उसे मकान से निकाल दिया। बूढ़े व्यक्ति के पास एक पुराना बिस्तर, कुछ एल्युमीनियम के बर्तन, एक प्लास्टिक की बाल्टी और एक मग आदि के अलावा शायद ही कोई और सामान था। बूढ़े ने मालिक से किराया देने के लिए कुछ समय देने का अनुरोध किया। पड़ोसियों को भी बूढ़े आदमी पर दया आयी और उनके कहने पर मकान मालिक को किराए का भुगतान करने के लिए उस बूढ़े आदमी को कुछ दिनों की मोहलत देने के लिए मना लिया। वह बूढ़ा आदमी अपना सामान अंदर ले गया। रास्ते से गुजर रहे एक पत्रकार ने रुक कर यह सारा नजारा देखा। उसने सोचा कि यह मामला उसके समाचार पत्र में प्रकाशित करने के लिए उपयोगी होगा। उसने एक शीर्षक भी सोच लिया,  ”क्रूर मकान मालिक, बूढ़े को पैसे के लिए किराए के घर से बाहर निकाल देता है।”  फिर उसने किराएदार बूढ़े की और किराए के घर की कुछ तस्वीरें भी ले लीं।  पत्रकार ने जाकर अपने प्रेस मालिक को इस घटना के बारे में बताया। प्रेस के मालिक ने तस्वीरों को देखा और हैरान रह गए। उन्होंन...

इश्क़ की अच्छी बातें।

Image
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोए,  ढ़ाई आखर प्रेम के पढ़े सो पंडित होए।।  इश्क़ जाति देखकर नहीं होता। मोहब्बत क्रांति करने के लिए नहीं होती, पर मोहब्बत से संभव है कि क्रांति हो जाए। प्रेम वैसे नहीं होता जैसे गणितीय गणना होती है सोच-समझ कर। सोच-समझ कर तो अवसर के फायदे उठाये जाते हैं। अगर यह सब है, तो वह बाक़ी कुछ भी हो, इश्क़ नहीं है. इश्क़ करना अपने आप में ही क्रांति है। इश्क़ में दो अलग-अलग शख़्स मिलकर एक हो जाते हैं। कोई बड़ा, छोटा या ऊँचा नीचा नहीं रह जाता है। इश्क़ बेड़ियाँ तोड़ता है, जितनी बाहर की, उससे कहीं ज़्यादा भीतर की। इश्क़ हमें एक मुक़म्मल (सम्पूर्ण) इंसान बनाता है। इस दौर को मोहब्बत की सख़्त ज़रूरत है। अगर इश्क दो अलग-अलग धर्म के युवक-यूवती के बीच हो, आपस में प्रेम हो और दोनों में से कोई ये कहें की तुम मेरे धर्म को अपना लो हम दोनों एक जैसे हो जायेंगे, ख़ुशी से जीवन बिताएंगे; यकीन करो ये बाते खुश रहने के लिए पर्याप्त नहीं है अंततः तुम्हे प्रेम ही खुश रख सकता है। बांकी ख़ुशी क्षण भर की होंगी। ऐसा करने से प्रेम के मध्य बड़ा अर्चन पैदा हो सकता है। सोचो इसी धर्म के चलते ...

हिन्दुओं में फैले हुए अंधविश्वासो

हिन्दुओं में फैले हुए अंधविश्वासो और कुरीतियों के बारे में लिखो तो तुरंत कुछ लोग आकर कहते हैं कि दम है तो मुसलमानों के बारे में लिख कर दिखाओ  मेरे कुछ मुस्लिम दोस्त मुसलमानों की कुरीतियों के बारे में लिखते हैं तो उन्हें मुसलमान आकर इसी तरह से बुरा भला कहते हैं  देखिये आपको सिर्फ अपने समुदाय की कमियों और कुरीतियों पर ही बोलने का अधिकार है  दुसरे धर्म या समुदाय के खिलाफ लिखने बोलने का आपको कोई अधिकार नहीं है  हांलाकि आपको यही अच्छा लगता है कि आप दुसरे धर्म की बुराई खोजें और उन्हें बुरा भला कहें  इससे आपका झूठा घमंड और ज्यादा फूल जाता है कि देखो मैं कितना महान हूँ  मान लीजिये जब आपके समुदाय का ही व्यक्ति आपके समुदाय की कुरीतियों के बारे में कहता है तो वह आपका सबसे बड़ा दोस्त है  आपके दुश्मन दुसरे धर्म के लोग नहीं है  आपका अज्ञान गरीबी और पिछड़ापन आपका सबसे बड़ा दुश्मन है  अगर हिन्दू ख़त्म होंगे तो वह गरीबी अज्ञान और अंधविश्वास की वजह से खत्म होंगे   मुसलमान हिन्दुओं का कुछ नहीं बिगाड़ सकते  मुसलमान डूबेंगे तो अपनी ज़हालत और गरीबी की वजह...

वीरांगना दुर्गा भाभी और पति भगवती चंद्र बोहरा

Image
 यह दुर्गा भाभी हैं, वही दुर्गा भाभी जिन्होंने साण्डर्स वध के बाद राजगुरू और भगतसिंह को लाहौर से अंग्रेजो की नाक के नीचे से निकालकर कोलकत्ता ले गयी. इनके पति क्रन्तिकारी भगवती चरण वोहरा थे. ये भी कहा जाता है कि चंद्रशेखर आजाद के पास आखिरी वक्त में जो माउजर था, वो भी दुर्गा भाभी ने ही उनको दिया था. 14अक्टूबर 1999 में वो इस दुनिया से गुमनाम ही विदा हो गयी कुछ एक दो अखबारों ने उनके बारे में छापा बस. आज आज़ादी के इतने साल के बाद भी न तो उस विरांगना को इतिहास के पन्नों में वो जगह मिली जिसकी वो हकदार थीं और न ही वो किसी को याद रही चाहे वो सरकार हो या जनता. किसी स्मारक का नाम तक उनके नाम पर नही है कहीं कोई मूर्ति नहीं है उनकी. सरकार तो भूली ही जनता भी भूल गयी. ऐसी पूज्य वीरांगनाओं को हम शत शत नमन करते है और भविष्य मे ऐसे तमाम वीरों और वीरांगनाओं को सम्मान दिलाने के लिये प्रयासरत रहें . साभार –

बीएचयू के जाने-माने कार्डियोथोरेसिक सर्जन पद्म श्री डॉ. टी.के. लहरी

Image
 डॉ. लहरी का मुख्यमंत्री योगी से मिलने से इनकार? "हिंदुस्तान में आज भी ऐसे देवताओं की कमी नहीं है जो इस धरती पर रहकर देव तुल्य कर्म कर रहे हैं ऐसे ही हैं डॉ. तपन कुमार लहरी! जिनको आज भी हाथ में बैग और छतरी लिए पैदल घर या बीएचयू हास्पिटल की ओर जाते हुए देखा जा सकता है।" आम लोगों का निःशुल्क इलाज करने वाले बीएचयू के जाने-माने कार्डियोथोरेसिक सर्जन पद्म श्री डॉ. टी.के. लहरी (डॉ तपन कुमार लहरी) ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उनके घर पर जाकर मिलने से इनकार कर दिया है। योगी को वाराणसी की जिन प्रमुख हस्तियों से मुलाकात करनी थी, उनमें एक नाम डॉ टीके लहरी का भी था। मुलाकात कराने के लिए अपने घर पहुंचने वाले अफसरों से डॉ लहरी ने कहा कि मुख्यमंत्री को मिलना है तो वह मेरे ओपीडी में मिलें। इसके बाद उनसे मुलाकात का सीएम का कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया। अब कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री चाहते तो डॉ लहरी से उनके ओपीडी में मिल सकते थे। लेकिन वीवीआईपी की वजह से वहां मरीजों के लिए असुविधा पैदा हो सकती थी। जानकार ऐसा भी बताते हैं कि यदि कहीं मुख्यमंत्री सचमुच मिलने के लिए ओपीडी मह...

धर्म परिवर्तन का बहाना और हिन्दुत्व का ऐजेंडा

Image
अक्सर यह कहा जाता है कि मुगलों ने जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाया था  लेकिन अंग्रेजी शासन के समय के आंकड़े कुछ और ही कह रहे है। 1881 की जनगणना के मुताबिक संयुक्त पंजाब में हिन्दू जाटों की जनसंख्या 14 लाख 45 हजार थी। पचास वर्ष बाद अर्थात 1931 में जनसंख्या होनी चाहिए थी 20 लाख 76 हजार  लेकिन घटकर 9 लाख 92 हजार रह गई। संकेत साफ है कि अंग्रेजी शासन के इन 50 सालों में 50%जाट सिक्ख व मुसलमान बन गए। इस दौरान हिंदुओं की आबादी 43.8%से घटकर 30.2%हो गई  व सिक्खों की आबादी 8.2% से बढ़कर 14.3%  व मुसलमानों की आबादी 40.6% से बढ़कर 52.2% हो गई। जाटों ने धर्म परिवर्तन इसलिए किया क्योंकि ब्राह्मण धर्म का कास्ट-सिस्टम इनको जलील कर रहा था। पाखंड व अंधविश्वास की लूट उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही थी। जाट सदा से प्रकृति के नजदीक रहा है।  इंसान जीवन मे सरलता ढूंढता है  लेकिन ब्राह्मण धर्म ने कर्मकांडों का जंजाल गूंथ दिया था  जिससे मुक्ति के लिए धर्म परिवर्तन करना पड़ा। हालांकि दयानंद सरस्वती के अथक प्रयासों के कारण जाटों को धर्म परिवर्तन से रोका गया था। मूर्तिपूजा का विरोध करके जाटों को ...

कश्मीर 1947 परिस्थिति

Image
 #कश्मीर_1947_परिस्थिति #नेहरू_जिन्ना_माउंटबेटन_सयुंक्त_राष्ट्र_जनमत_संग्रह #मिथक_और_तथ्य  आरोप लगता है कि नेहरू की वजह से कश्मीर समस्या है,पटेल की जगह नेहरू ने इसे अकेले हैंडल किया इसलिए सब गुड़गोबर हो गया, UN जाकर सत्यानाश किया।सच क्या है? #इति_श्री_इतिहास  में लाल चौक पर झंडा फहराकर भीड़ के बीच खड़े पं.नेहरू की तस्वीर देखते हुए । अब थोड़ा धैर्य से पढ़िएगा अब तथ्य  सितंबर का महीना,1949। कश्मीर घाटी में एक बेहद खास सैलानी पहुंचते हैं, नाम था पंडित जवाहर लाल नेहरू। झेलम नदी इस बात की गवाह है कि पं.नेहरू और शेख अब्दुला उसकी गोद  में थे। दोनों ने करीब 2 घंटे तक खुले आसमान के नीचे नौकाविहार किया।आगे-पीछे खचाखच भरे शिकारों की कतार थी...  हर कोई प.नेहरू को एक नजर निहार लेना चाहता था। नेहरू पर फूलों की वर्षा हो रही थी, नदी के किनारे आतिशबाजी हो रही थी, स्कूली बच्चे नेहरू-अब्दुला जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। इस पर टाइम मैग्जीन ने लिखा- ''सारे लक्षण ऐसे हैं कि हिंदुस्तान ने कश्मीर की जंग फतह कर ली है'' मगर ये...बात तो तब की है जब कश्मीर का भारत में विलय हो चुका था,...

होलिका दहन और नैतिक मुल्य।

Image
होलिका दहन करने वाले इस लेख को अवश्य पढ़ें--- गत कई दिनों से पूरे देश के शैक्षणिक संस्थानों, मीडिया- चैनलों एवं राजनीतिक गलियारों में धर्मनिरपेक्षता की धज्जियां उड़ाते हुए होली मनाने की धूम मची हुई है। हर जगह आज की रात्रि में होलिका (महिला)का दहन किया जायेगा और कल रंग-अबीर उड़ाते हुए होली मनाई जाएगी। प्राचीन भारत में इस त्योहार की शुरुआत महान सम्राट हिरण्यकश्यप की हत्या और वैज्ञानिक एवं तकनीकी विशेषज्ञा हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के दहन करने से हुई थी।उसके पुत्र प्रह्लाद जो आर्य ब्राह्मणवादी देवता विष्णु के भक्त थे ,के जीवित बच जाने की खुशी से जुड़ी कहानी से हुई थी। इसके अलावा जितने भी ब्राह्मणवादी पुराण और पौराणिक कथाएं हैं उनमें तरह-तरह के विवरण मिलते हैं जो एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न और विपरीत हैं। दरअसल सिन्धु - हड़प्पा सभ्यता में इस त्योहार का कोई स्थान नहीं था। लगभग 1750 ईसा पूर्व से 1000ईसा पूर्व के बीच आर्यों-ब्राह्मणों द्वारा संपूर्ण सिंधु घाटी में वहां के मूलनिवासियों असुर,राक्षस, नाग, दास,दैत्य,दानव आदि की सम्पत्ति,सत्ता और संस्कृति पर कब्जा कर लिया गया था। फिर वे पूरब एवं दक्...

काश्मीर फाइल्स और राजनीतिक ताने-बानें

 The Kashmir Files देखते हुए मुझे Mathieu Kassovitz की फ़िल्म La Haine का एक डायलॉग बार बार याद आता रहा - "Hate Breeds Hate" ख़ैर …  मैं हर कहानी को पर्दे पर उतारने का समर्थक हूँ। यदि कहानी ब्रूटल है, तो उसे वैसा ही दिखाया जाना चाहिए।  जब टैरंटीनो और गैस्पर नोए, फ़िक्शन में इतने क्रूर दृश्य दिखा सकते हैं तो रियल स्टोरीज़ पर आधारित फ़िल्मों में ऐसी सिनेमेटोग्राफ़ी से क्या गुरेज़ करना। और वैसे भी, तमाम क्रूर कहानियाँ, पूरी नग्नता के साथ पहले भी सिनेमा के ज़रिए दुनिया को सुनाई और दिखाई जाती रही हैं।  रोमन पोलांसकी की "दा पियानिस्ट" ऐसी ही एक फ़िल्म है। ..  जलीयांवाला बाग़ हत्याकांड की क्रूरता को पूरी ऑथेंटिसिटी के साथ शूजीत सरकार की "सरदार ऊधम" में फ़िल्माया गया है। मगर आख़िर ऐसा क्या है कि पोलांसकी की "दा पियानिस्ट" देखने के बाद आप जर्मनी के ग़ैर यहूदीयों के प्रति हिंसा के भाव से नहीं भरते? और शूजीत सरकार की "सरदार ऊधम" देखने के बाद आपको हर अंग्रेज़ अपना दुश्मन नज़र नहीं आने लगता।  पर कश्मीर फ़ाइल्स देखने के बाद मुसलमान आपको बर्बर और आतंक...

इस्लाम मानने वालों में अंतरद्वंद और पूंजीवाद | Inter conflict in Islamic thoughts and Capitalism.

उर्दू और अरबी नाम वाले काफ़ी लोग पिछले दिनों मित्रसूची में शामिल हुए हैं, तो इस पोस्ट के ज़रिये उनका एक टेस्ट ले लेता हूँ कि वो कितना मुझे झेल सकते हैं. अपना-अपना इस्लाम क़ुरआन इस्लाम का प्राथमिक ग्रंथ है। हदीस दूसरे नम्बर पर आती है, हलांकि हदीस को लेकर शिया व सुन्नियों में थोड़े मतभेद भी हैं, लेकिन क़ुरआन पर इन सबकी सहमति है। अहमदिया तक क़ुरआन मानते हैं लेकिन वो ये नहीं मानते की जनाब मुहम्मद स.अ. आखिरी नबी हैं। लिहाज़ा अहमदिया को शिया और सुन्नी दोनों ही मुसलमान नहीं मानते।  पाकिस्तान में तो इनके ऊपर जानलेवा हमले तक होते हैं। शिया और सुन्नियों का क़ुरआन एक है लेकिन शिया के नज़दीक सुन्नी और सुन्नियों के नज़दीक शिया सच्चे मुसलमान नहीं हैं। फिर सुन्नियों के भीतर बरेलवी के लिए देवबंदी और अहलेहदीस सच्चे मुसलमान नहीं हैं. अहलेहदीस के लिए दूसरे फिरके के लोग सच्चे मुसलमान नहीं हैं, मतलब हर फिरके के लिए उससे इतर दूसरी जमातें “सच्चे मुसलमान” की केटेगरी में नहीं आते। इन्हें काफ़िर कहने या सच्चा मुसलमान न मानने का फैसला इन स्कूल्स ऑफ थॉट्स के आलिमे दीन के हवाले से आता है। बाहर से देखने वाले लोग समझते हैं...

विश्व प्रेम दिवस अर्थात वेलेंटाइन डे

 विश्व प्रेम दिवस अर्थात वेलेंटाइन डे जिन्दाबाद! ******"************"***"**"********* एक मध्यकालीन कवि ने कहा था--            "प्रेम न बाड़ी उपजै,प्रेम न हाट बिकाय।              राजा प्रजा जै जुरे,सीस दैय ले जाय।।"     इसका सीधा अर्थ है कि आदमी चाहे अमीर हो या गरीब,राजा हो या आम जन, किसी भी पद पर हों, किसी भी जाति, वंश,धर्म,क्षेत्र एवं देश में जन्म लिया हो,वह अपने सिर को प्रेमी या प्रेमिका के आगे झूका कर( यानी हर प्रकार के घमंड को त्यागकर) प्रेम को पा सकता है।प्रेम तो आदमी से सिर्फ त्याग मांगता है-अमीरीऔर गरीबी की सीमाओं का,पद का, धन का, घमंड का,स्वार्थ का, जाति और वंश का, धर्म और संकीर्णता का, क्षेत्र और देश की सीमाओं का।प्रेम का आधार ही होते हैं-परस्पर त्याग और विश्वास। जहां इन दोनों में किसी एक का भी अभाव होता है या दोनों का अभाव होता है,वहां प्रेम भी नहीं होता है। जहां कहीं भी व्यक्ति रंग, जाति, पद, पैसे,स्वार्थ और अभिमान के प्रभाव से या प्रभाव में आकर प्रेम करता है,प्रेम वहां से भाग खड़ा होता है और वहां...

महानायक, महान विचारक एवं मार्गदर्शक, महान लेखक और समाज सुधारक ,पेरियार ललई सिंह यादव जी

आज बहुजन समाज के महानायक, महान विचारक एवं मार्गदर्शक, महान लेखक और समाज सुधारक ,पेरियार ललई सिंह यादव जी का 29 वां परिनिर्वाण दिवस है।इस अवसर पर भारत के नागरिकों, विशेष कर मूलनिवासी बहुजन समाज की ओर से उनके प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि और शत-शत नमन!           उनका जन्म 1 सितम्बर 1911ई को उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में कठारा गांव में एक सामान्य कृषक परिवार में हुआ था। उनके पिता गुज्जू सिंह यादव एक कर्मठ आर्य समाजी थे। इनकी माता का नाम मूलादेवी थी।ललई सिंह यादव ने 1928ई में उर्दू के साथ हिन्दी से मिडिल पास किया। 1929 ई  से 1931 ई तक ललई यादव फाॅरेस्ट गार्ड रहे। 1931 में सरदार सिंह यादव की बेटी दुलारी देवी के साथ उनका विवाह हुआ था। 1933ई में  वे  सशस्त्र पुलिस कम्पनी,जिला मुरैना (म.प्र.) में कॉन्स्टेबल पद पर भर्ती हुए। नौकरी के साथ-साथ उन्होंने पढ़ाई जारी रखी। उन्होंने 1946 ई में पुलिस एण्ड आर्मी संघ ,ग्वालियर की स्थापना की और वे उसके अध्यक्ष चुने गए। 29 मार्च 1947 को ललई यादव को पुलिस व आर्मी में हड़ताल कराने के आरोप में धारा 131 भारतीय दण्ड विधान (सै...

माता सावित्री बाई फूले वास्तविक विद्या की देवी

Image
बहुजनों के ज्ञान की देवी सरस्वती नहीं, सावित्रीबाई फुले हैं- संदर्भ सरस्वती पूजन दिवस ( वसंत पंचमी, आज) सरस्वती  द्विज मर्दों के ज्ञान की देवी हो सकती हैं, दलितों- पिछड़ों और महिलाओं के ज्ञान की देवी सिर्फ और सिर्फ सावित्रीबाई फुले हैं। अधिकांश हिंदू देवी-देवाओं के तरह सरस्वती भी सिर्फ द्विज मर्दों के ज्ञान की देवी रही हैं। वे कभी भी दलितों ( अतिशूद्रों) पिछड़ों ( शूद्रों) और महिलाओं ( शूद्र) की जीभ पर विराजमान नहीं होती थीं। उन्हें इन लोगों की तरफ देखना भी गवारा नहीं था। जब तक ज्ञान की देवी सरस्वती बनी रहीं, तब तक ज्ञान का दरवाजा बहुजनों के लिए बंद था।  लक्ष्मी की तरह सरस्वती भी सिर्फ और सिर्फ द्विज मर्दों पर कृपा करती थीं। जहां लक्ष्मी द्विज मर्दों को धन-धान्य से परिपूर्ण करती थीं, वैसे सरस्वती सिर्फ द्विज मर्दों को ज्ञान-विज्ञान से परिपूर्ण करती थीं।  दलितों, पिछड़ोंं और महिलाओं के लिए ज्ञान का दरवाजा सबसे पहले अंग्रेजों ने 1813 में खोला।  बहुजनों की शिक्षा में ईसाई मिशरियों की अहम भूमिका थी। डॉ. आंबेडकर के गुरू और भारतीय सामाजिक क्रांति के अग्रदूत जोतीराव फुले की...

गांधी की हत्या में गोडसे और उसके मित्र।

Image
गांधी की हत्या में गोडसे के साथ जिस दूसरे आदमी को फांसी की  सज़ा हुई थी उसका नाम नारायण आप्टे था. वह ब्रिटिश गुप्तचर  संगठन का एजेंट था और उसे इस काम के लिये नियमित पैसे मिलते  थे वह एक दुश्चरित्र व्यक्ति था उसने एक सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली  बच्ची के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाये जिसके फलस्वरूप वह  बालिका गर्भवती हो गई थी, गांधी को मारने में भले ही गोली गोडसे  ने चलाई थी लेकिन उसका गुरु नारायण आप्टे ही था गांधी की हत्या  ब्रिटिश गुप्तचर संगठन ने इसलिये करवाई थी क्योंकि गांधी ने बिहार  और बंगाल के दंगे जादुई तरीके से शांत करवा दिये थे और इसके  बाद गांधी ने घोषणा करी थी कि अब वे भारत से हिंदुओं को वापिस  पाकिस्तान लेकर जायेंगे और पकिस्तान से मुसलमानों को वापिस  भारत लेकर आयेंगे और आबादी के इस स्थानातंरण को वो स्वीकार  नहीं करेंगे गांधी की इस योजना से अंग्रेज घबरा गये क्योंकि  पकिस्तान को तो पश्चिमी साम्राज्यवादी खेमे ने अरब के तेल क्षेत्र  और  एशिया पर अपना दबदबा बनाये रखने के लिये एक फौजी अड्डे  के रूप में बना...

हिन्दू महासभा और सुभाष चन्द्र बोस

Image
4 मई 1940, एक सम्पादकीय छपता है। शीर्षक है "कोंग्रेस और साम्प्रदायिक संगठन" साप्ताहिक का नाम है, फॉरवर्ड ब्लॉक। सम्पादक सुभाष चन्द्र बोस। "बहुत समय पहले कोंग्रेस के बडे नेता हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग जैसे साम्प्रदायिक संगठनों के सदस्य हो सकते थे। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। ये साम्प्रदायिक संगठन और कट्टर साम्प्रदायिक हो गए हैं। इस कारण कांग्रेस के संविधान में हमने अब यह क्लॉज जोड़ दिया है कि  हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग जैसे किसी भी साम्प्रदायिक कट्टर संगठनों का सदस्य कॉंग्रेस का सदस्य नहीं रह सकता " मजेदार बात ये थी कि इस सम्पादकीय में हिन्दू महासभा का नाम हमेशा मुस्लिम लीग से आगे लिखा गया था ।  जब श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने हिन्दू महासभा जॉइन किया, तब अपनी डायरी में मुखर्जी ने लिखा कि "बोस मुझसे मिलने आये और कहा कि यदि आपने हिन्दू महासभा को पोलिटिकल बॉडी बनाने की सोची तो वे ये निश्चित करेंगे कि इसे आवश्यक हुआ तो बलप्रयोग द्वारा वे इसके जन्मने के पहले खतम कर देंगे।" धमकी!!! बलराज मधोक, महासभा के नेता, ने लिखा है " सुभाष चन्द्र बोस अपने समर्थकों के साथ...

Awful history of RSS. - आरएसएस के घृणित सच्चाई का इतिहास।

आरएसएस के लोगो से ये 16 प्रश्न आप कीजिये इनके जवाब ये लोग नही दे पायेगे उलटा आप को गाली देगे या ब्लॉक करके भाग जायेगे या विरोधियो का फोटोशॉप पोस्ट डालेगे पर फिर भी आप ये सवाल करते रहे (1) आरएसएस ने आज़ादी की लड़ाई क्यों नही लड़ी ? (2) आरएसएस हिन्दू हित की बात करता है उसकी वेशभुषा विदेशी क्यों है (3) सुभाषचन्द्र बॉस आज़ाद हिन्द सेना का गठन कर रहे थे तब संघ ने सेना में शामिल होने से हिन्दू युवकों को क्यों रोका (4) संघ के वीर सावरकर अंग्रेजो से 21 माफ़ी देकर जेल से क्यों छूटे जबकि 436 लोग और थे सेलुलर जेल में सिर्फ इन्होंने ही क्यों माफ़ी नामे लिखे ऐसी क्या विपदा आ गई थी (5) आरएसएस के पहले अधिवेशन में 1925 में द्विराष्ट्र सिद्धान्त हिन्दू राष्ट्र और मुस्लिम राष्ट्र का प्रस्ताव क्यों पारित किया गया जबकि एक तरफ आप लोग अखंड भारत की बात करते है (6) 1942 में असहयोग आंदोलन का बहिष्कार करता है संघ ऐसा पत्र ब्रिटिश गवर्मेंट को क्यों लिखा अगर ये पत्र न लिखते तो देश 1942 में आज़ाद हो जाता (7) गांधी जी के हत्या के प्रयास संघ आज़ादी के पूर्व से कर रहा था क्यों ? गांधी जी पर आज़ादी के पूर्व 5 बार संघियों ने हम...

फातिमा शेख़

Image
स्त्रियों की शिक्षा और दूसरे सामाजिक मसलों को लेकर संघर्षमें अग्रणी भूमिका के लिए प्रसिद्ध समाज-सुधारकफ़ातिमा शेख़ के 191वें जन्मदिन पर आज गूगल ने उनके चित्र के साथ डूडल बनाया है। भारत में स्त्री शिक्षा और ख़ासकर आधुनिक शिक्षा के लिए अभूतपूर्व मुहिम में फुले दम्पती (जोतिबा-सावित्रीबाई) के साथ फ़ातिमा शेख़ का नाम अमर रहेगा। सावित्रीबाई फुले की तरह उन्होंने भी आधुनिक शिक्षण पद्धति की बाक़ाएदा ट्रेनिंग हासिल की थी।  उनके भाई उस्मान शेख़ वह शख़्स थे जिन्होंने उस दौर में रेडिकल अभियान के कारण घर-बदर कर दिए गए फुले दम्पती को अपने घर में रखा था।  फुले दम्पती से रिश्ता महसूस करने वालों को फ़ातिमा शेख़, उनके भाई उस्मान शेख़ और फुले दम्पती के बीच के रिश्ते और स्त्रियों, वंचित तबकों और सभी समुदायों के लिए किए गए अभूतपूर्व कार्यों में इस साझी सामाजिक-राजनीतिक भूमिका के महत्व को समझना होगा।  आधुनिक भारत की इस पहली पंक्ति की शिक्षिका, समाज सुधारक और हमारी महान पुरखिन को सलाम, सद-सलाम। एक बार फिर विदेशी इतिहासकार ही साक्ष्यों को तलाश कर हमारे नायकों को सामने लाने में सफल हुए हैं। देश के इतिहासकारो...

राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले की 191 वीं जयंती।

Image
आज दिनांक 3 जनवरी 2022 को राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले की 191 वीं जयंती विश्वविद्यालय अम्बेडकर विचार एवं समाज कार्य विभाग में बिहार फुले-अंबेडकर युवा मंच के तत्वावधान में आयोजित की गई.   कार्यक्रम की शुरूआत द्वीप प्रज्जवलन एवं पुष्पांजलि अर्पित कर की गई. कार्यक्रम की अध्यक्षता बिहार फुले-अंबेडकर युवा मंच के संरक्षक मान्यवर विलक्षण रविदास ने की.   वक्ताओं ने राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले के जीवन दर्शन पर विस्तार से चर्चा की एवं उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लिया. इतिहास की शोध छात्रा निमिषा राज ने कहा कि महिलाओं की शिक्षा में उनका योगदान अद्वितीय है। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के लिए लड़ाई लड़ी और सती प्रथा सहित कई अन्य सामाजिक कुरीतियों, जिसमें महिलाओं को निशाना बनाया जाता था, के खिलाफ आवाज़ उठाई। सबसे उल्लेखनीय आंदोलन में से एक ‘नाई हड़ताल’ थी। यह हड़ताल विधवाओं के मुंडन के खिलाफ थी। अम्बेडकर विचार एवं समाज कार्य विभाग की शोध छात्रा खुशबु कुमारी ने कहा कि सावित्रीबाई भारत की पहली शिक्षिका और प्रधानाध्यापिका हैं। उन्होंने देश में बहुत सारे सामाजिक सुधार...