होलिका दहन और नैतिक मुल्य।
होलिका दहन करने वाले इस लेख को अवश्य पढ़ें--- गत कई दिनों से पूरे देश के शैक्षणिक संस्थानों, मीडिया- चैनलों एवं राजनीतिक गलियारों में धर्मनिरपेक्षता की धज्जियां उड़ाते हुए होली मनाने की धूम मची हुई है। हर जगह आज की रात्रि में होलिका (महिला)का दहन किया जायेगा और कल रंग-अबीर उड़ाते हुए होली मनाई जाएगी। प्राचीन भारत में इस त्योहार की शुरुआत महान सम्राट हिरण्यकश्यप की हत्या और वैज्ञानिक एवं तकनीकी विशेषज्ञा हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के दहन करने से हुई थी।उसके पुत्र प्रह्लाद जो आर्य ब्राह्मणवादी देवता विष्णु के भक्त थे ,के जीवित बच जाने की खुशी से जुड़ी कहानी से हुई थी। इसके अलावा जितने भी ब्राह्मणवादी पुराण और पौराणिक कथाएं हैं उनमें तरह-तरह के विवरण मिलते हैं जो एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न और विपरीत हैं। दरअसल सिन्धु - हड़प्पा सभ्यता में इस त्योहार का कोई स्थान नहीं था। लगभग 1750 ईसा पूर्व से 1000ईसा पूर्व के बीच आर्यों-ब्राह्मणों द्वारा संपूर्ण सिंधु घाटी में वहां के मूलनिवासियों असुर,राक्षस, नाग, दास,दैत्य,दानव आदि की सम्पत्ति,सत्ता और संस्कृति पर कब्जा कर लिया गया था। फिर वे पूरब एवं दक्...