इस्लाम मानने वालों में अंतरद्वंद और पूंजीवाद | Inter conflict in Islamic thoughts and Capitalism.
उर्दू और अरबी नाम वाले काफ़ी लोग पिछले दिनों मित्रसूची में शामिल हुए हैं, तो इस पोस्ट के ज़रिये उनका एक टेस्ट ले लेता हूँ कि वो कितना मुझे झेल सकते हैं. अपना-अपना इस्लाम क़ुरआन इस्लाम का प्राथमिक ग्रंथ है। हदीस दूसरे नम्बर पर आती है, हलांकि हदीस को लेकर शिया व सुन्नियों में थोड़े मतभेद भी हैं, लेकिन क़ुरआन पर इन सबकी सहमति है। अहमदिया तक क़ुरआन मानते हैं लेकिन वो ये नहीं मानते की जनाब मुहम्मद स.अ. आखिरी नबी हैं। लिहाज़ा अहमदिया को शिया और सुन्नी दोनों ही मुसलमान नहीं मानते। पाकिस्तान में तो इनके ऊपर जानलेवा हमले तक होते हैं। शिया और सुन्नियों का क़ुरआन एक है लेकिन शिया के नज़दीक सुन्नी और सुन्नियों के नज़दीक शिया सच्चे मुसलमान नहीं हैं। फिर सुन्नियों के भीतर बरेलवी के लिए देवबंदी और अहलेहदीस सच्चे मुसलमान नहीं हैं. अहलेहदीस के लिए दूसरे फिरके के लोग सच्चे मुसलमान नहीं हैं, मतलब हर फिरके के लिए उससे इतर दूसरी जमातें “सच्चे मुसलमान” की केटेगरी में नहीं आते। इन्हें काफ़िर कहने या सच्चा मुसलमान न मानने का फैसला इन स्कूल्स ऑफ थॉट्स के आलिमे दीन के हवाले से आता है। बाहर से देखने वाले लोग समझते हैं...