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इस्लाम मानने वालों में अंतरद्वंद और पूंजीवाद | Inter conflict in Islamic thoughts and Capitalism.

उर्दू और अरबी नाम वाले काफ़ी लोग पिछले दिनों मित्रसूची में शामिल हुए हैं, तो इस पोस्ट के ज़रिये उनका एक टेस्ट ले लेता हूँ कि वो कितना मुझे झेल सकते हैं. अपना-अपना इस्लाम क़ुरआन इस्लाम का प्राथमिक ग्रंथ है। हदीस दूसरे नम्बर पर आती है, हलांकि हदीस को लेकर शिया व सुन्नियों में थोड़े मतभेद भी हैं, लेकिन क़ुरआन पर इन सबकी सहमति है। अहमदिया तक क़ुरआन मानते हैं लेकिन वो ये नहीं मानते की जनाब मुहम्मद स.अ. आखिरी नबी हैं। लिहाज़ा अहमदिया को शिया और सुन्नी दोनों ही मुसलमान नहीं मानते।  पाकिस्तान में तो इनके ऊपर जानलेवा हमले तक होते हैं। शिया और सुन्नियों का क़ुरआन एक है लेकिन शिया के नज़दीक सुन्नी और सुन्नियों के नज़दीक शिया सच्चे मुसलमान नहीं हैं। फिर सुन्नियों के भीतर बरेलवी के लिए देवबंदी और अहलेहदीस सच्चे मुसलमान नहीं हैं. अहलेहदीस के लिए दूसरे फिरके के लोग सच्चे मुसलमान नहीं हैं, मतलब हर फिरके के लिए उससे इतर दूसरी जमातें “सच्चे मुसलमान” की केटेगरी में नहीं आते। इन्हें काफ़िर कहने या सच्चा मुसलमान न मानने का फैसला इन स्कूल्स ऑफ थॉट्स के आलिमे दीन के हवाले से आता है। बाहर से देखने वाले लोग समझते हैं...

विश्व प्रेम दिवस अर्थात वेलेंटाइन डे

 विश्व प्रेम दिवस अर्थात वेलेंटाइन डे जिन्दाबाद! ******"************"***"**"********* एक मध्यकालीन कवि ने कहा था--            "प्रेम न बाड़ी उपजै,प्रेम न हाट बिकाय।              राजा प्रजा जै जुरे,सीस दैय ले जाय।।"     इसका सीधा अर्थ है कि आदमी चाहे अमीर हो या गरीब,राजा हो या आम जन, किसी भी पद पर हों, किसी भी जाति, वंश,धर्म,क्षेत्र एवं देश में जन्म लिया हो,वह अपने सिर को प्रेमी या प्रेमिका के आगे झूका कर( यानी हर प्रकार के घमंड को त्यागकर) प्रेम को पा सकता है।प्रेम तो आदमी से सिर्फ त्याग मांगता है-अमीरीऔर गरीबी की सीमाओं का,पद का, धन का, घमंड का,स्वार्थ का, जाति और वंश का, धर्म और संकीर्णता का, क्षेत्र और देश की सीमाओं का।प्रेम का आधार ही होते हैं-परस्पर त्याग और विश्वास। जहां इन दोनों में किसी एक का भी अभाव होता है या दोनों का अभाव होता है,वहां प्रेम भी नहीं होता है। जहां कहीं भी व्यक्ति रंग, जाति, पद, पैसे,स्वार्थ और अभिमान के प्रभाव से या प्रभाव में आकर प्रेम करता है,प्रेम वहां से भाग खड़ा होता है और वहां...

महानायक, महान विचारक एवं मार्गदर्शक, महान लेखक और समाज सुधारक ,पेरियार ललई सिंह यादव जी

आज बहुजन समाज के महानायक, महान विचारक एवं मार्गदर्शक, महान लेखक और समाज सुधारक ,पेरियार ललई सिंह यादव जी का 29 वां परिनिर्वाण दिवस है।इस अवसर पर भारत के नागरिकों, विशेष कर मूलनिवासी बहुजन समाज की ओर से उनके प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि और शत-शत नमन!           उनका जन्म 1 सितम्बर 1911ई को उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में कठारा गांव में एक सामान्य कृषक परिवार में हुआ था। उनके पिता गुज्जू सिंह यादव एक कर्मठ आर्य समाजी थे। इनकी माता का नाम मूलादेवी थी।ललई सिंह यादव ने 1928ई में उर्दू के साथ हिन्दी से मिडिल पास किया। 1929 ई  से 1931 ई तक ललई यादव फाॅरेस्ट गार्ड रहे। 1931 में सरदार सिंह यादव की बेटी दुलारी देवी के साथ उनका विवाह हुआ था। 1933ई में  वे  सशस्त्र पुलिस कम्पनी,जिला मुरैना (म.प्र.) में कॉन्स्टेबल पद पर भर्ती हुए। नौकरी के साथ-साथ उन्होंने पढ़ाई जारी रखी। उन्होंने 1946 ई में पुलिस एण्ड आर्मी संघ ,ग्वालियर की स्थापना की और वे उसके अध्यक्ष चुने गए। 29 मार्च 1947 को ललई यादव को पुलिस व आर्मी में हड़ताल कराने के आरोप में धारा 131 भारतीय दण्ड विधान (सै...

माता सावित्री बाई फूले वास्तविक विद्या की देवी

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बहुजनों के ज्ञान की देवी सरस्वती नहीं, सावित्रीबाई फुले हैं- संदर्भ सरस्वती पूजन दिवस ( वसंत पंचमी, आज) सरस्वती  द्विज मर्दों के ज्ञान की देवी हो सकती हैं, दलितों- पिछड़ों और महिलाओं के ज्ञान की देवी सिर्फ और सिर्फ सावित्रीबाई फुले हैं। अधिकांश हिंदू देवी-देवाओं के तरह सरस्वती भी सिर्फ द्विज मर्दों के ज्ञान की देवी रही हैं। वे कभी भी दलितों ( अतिशूद्रों) पिछड़ों ( शूद्रों) और महिलाओं ( शूद्र) की जीभ पर विराजमान नहीं होती थीं। उन्हें इन लोगों की तरफ देखना भी गवारा नहीं था। जब तक ज्ञान की देवी सरस्वती बनी रहीं, तब तक ज्ञान का दरवाजा बहुजनों के लिए बंद था।  लक्ष्मी की तरह सरस्वती भी सिर्फ और सिर्फ द्विज मर्दों पर कृपा करती थीं। जहां लक्ष्मी द्विज मर्दों को धन-धान्य से परिपूर्ण करती थीं, वैसे सरस्वती सिर्फ द्विज मर्दों को ज्ञान-विज्ञान से परिपूर्ण करती थीं।  दलितों, पिछड़ोंं और महिलाओं के लिए ज्ञान का दरवाजा सबसे पहले अंग्रेजों ने 1813 में खोला।  बहुजनों की शिक्षा में ईसाई मिशरियों की अहम भूमिका थी। डॉ. आंबेडकर के गुरू और भारतीय सामाजिक क्रांति के अग्रदूत जोतीराव फुले की...

गांधी की हत्या में गोडसे और उसके मित्र।

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गांधी की हत्या में गोडसे के साथ जिस दूसरे आदमी को फांसी की  सज़ा हुई थी उसका नाम नारायण आप्टे था. वह ब्रिटिश गुप्तचर  संगठन का एजेंट था और उसे इस काम के लिये नियमित पैसे मिलते  थे वह एक दुश्चरित्र व्यक्ति था उसने एक सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली  बच्ची के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाये जिसके फलस्वरूप वह  बालिका गर्भवती हो गई थी, गांधी को मारने में भले ही गोली गोडसे  ने चलाई थी लेकिन उसका गुरु नारायण आप्टे ही था गांधी की हत्या  ब्रिटिश गुप्तचर संगठन ने इसलिये करवाई थी क्योंकि गांधी ने बिहार  और बंगाल के दंगे जादुई तरीके से शांत करवा दिये थे और इसके  बाद गांधी ने घोषणा करी थी कि अब वे भारत से हिंदुओं को वापिस  पाकिस्तान लेकर जायेंगे और पकिस्तान से मुसलमानों को वापिस  भारत लेकर आयेंगे और आबादी के इस स्थानातंरण को वो स्वीकार  नहीं करेंगे गांधी की इस योजना से अंग्रेज घबरा गये क्योंकि  पकिस्तान को तो पश्चिमी साम्राज्यवादी खेमे ने अरब के तेल क्षेत्र  और  एशिया पर अपना दबदबा बनाये रखने के लिये एक फौजी अड्डे  के रूप में बना...

हिन्दू महासभा और सुभाष चन्द्र बोस

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4 मई 1940, एक सम्पादकीय छपता है। शीर्षक है "कोंग्रेस और साम्प्रदायिक संगठन" साप्ताहिक का नाम है, फॉरवर्ड ब्लॉक। सम्पादक सुभाष चन्द्र बोस। "बहुत समय पहले कोंग्रेस के बडे नेता हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग जैसे साम्प्रदायिक संगठनों के सदस्य हो सकते थे। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। ये साम्प्रदायिक संगठन और कट्टर साम्प्रदायिक हो गए हैं। इस कारण कांग्रेस के संविधान में हमने अब यह क्लॉज जोड़ दिया है कि  हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग जैसे किसी भी साम्प्रदायिक कट्टर संगठनों का सदस्य कॉंग्रेस का सदस्य नहीं रह सकता " मजेदार बात ये थी कि इस सम्पादकीय में हिन्दू महासभा का नाम हमेशा मुस्लिम लीग से आगे लिखा गया था ।  जब श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने हिन्दू महासभा जॉइन किया, तब अपनी डायरी में मुखर्जी ने लिखा कि "बोस मुझसे मिलने आये और कहा कि यदि आपने हिन्दू महासभा को पोलिटिकल बॉडी बनाने की सोची तो वे ये निश्चित करेंगे कि इसे आवश्यक हुआ तो बलप्रयोग द्वारा वे इसके जन्मने के पहले खतम कर देंगे।" धमकी!!! बलराज मधोक, महासभा के नेता, ने लिखा है " सुभाष चन्द्र बोस अपने समर्थकों के साथ...

Awful history of RSS. - आरएसएस के घृणित सच्चाई का इतिहास।

आरएसएस के लोगो से ये 16 प्रश्न आप कीजिये इनके जवाब ये लोग नही दे पायेगे उलटा आप को गाली देगे या ब्लॉक करके भाग जायेगे या विरोधियो का फोटोशॉप पोस्ट डालेगे पर फिर भी आप ये सवाल करते रहे (1) आरएसएस ने आज़ादी की लड़ाई क्यों नही लड़ी ? (2) आरएसएस हिन्दू हित की बात करता है उसकी वेशभुषा विदेशी क्यों है (3) सुभाषचन्द्र बॉस आज़ाद हिन्द सेना का गठन कर रहे थे तब संघ ने सेना में शामिल होने से हिन्दू युवकों को क्यों रोका (4) संघ के वीर सावरकर अंग्रेजो से 21 माफ़ी देकर जेल से क्यों छूटे जबकि 436 लोग और थे सेलुलर जेल में सिर्फ इन्होंने ही क्यों माफ़ी नामे लिखे ऐसी क्या विपदा आ गई थी (5) आरएसएस के पहले अधिवेशन में 1925 में द्विराष्ट्र सिद्धान्त हिन्दू राष्ट्र और मुस्लिम राष्ट्र का प्रस्ताव क्यों पारित किया गया जबकि एक तरफ आप लोग अखंड भारत की बात करते है (6) 1942 में असहयोग आंदोलन का बहिष्कार करता है संघ ऐसा पत्र ब्रिटिश गवर्मेंट को क्यों लिखा अगर ये पत्र न लिखते तो देश 1942 में आज़ाद हो जाता (7) गांधी जी के हत्या के प्रयास संघ आज़ादी के पूर्व से कर रहा था क्यों ? गांधी जी पर आज़ादी के पूर्व 5 बार संघियों ने हम...

फातिमा शेख़

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स्त्रियों की शिक्षा और दूसरे सामाजिक मसलों को लेकर संघर्षमें अग्रणी भूमिका के लिए प्रसिद्ध समाज-सुधारकफ़ातिमा शेख़ के 191वें जन्मदिन पर आज गूगल ने उनके चित्र के साथ डूडल बनाया है। भारत में स्त्री शिक्षा और ख़ासकर आधुनिक शिक्षा के लिए अभूतपूर्व मुहिम में फुले दम्पती (जोतिबा-सावित्रीबाई) के साथ फ़ातिमा शेख़ का नाम अमर रहेगा। सावित्रीबाई फुले की तरह उन्होंने भी आधुनिक शिक्षण पद्धति की बाक़ाएदा ट्रेनिंग हासिल की थी।  उनके भाई उस्मान शेख़ वह शख़्स थे जिन्होंने उस दौर में रेडिकल अभियान के कारण घर-बदर कर दिए गए फुले दम्पती को अपने घर में रखा था।  फुले दम्पती से रिश्ता महसूस करने वालों को फ़ातिमा शेख़, उनके भाई उस्मान शेख़ और फुले दम्पती के बीच के रिश्ते और स्त्रियों, वंचित तबकों और सभी समुदायों के लिए किए गए अभूतपूर्व कार्यों में इस साझी सामाजिक-राजनीतिक भूमिका के महत्व को समझना होगा।  आधुनिक भारत की इस पहली पंक्ति की शिक्षिका, समाज सुधारक और हमारी महान पुरखिन को सलाम, सद-सलाम। एक बार फिर विदेशी इतिहासकार ही साक्ष्यों को तलाश कर हमारे नायकों को सामने लाने में सफल हुए हैं। देश के इतिहासकारो...

राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले की 191 वीं जयंती।

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आज दिनांक 3 जनवरी 2022 को राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले की 191 वीं जयंती विश्वविद्यालय अम्बेडकर विचार एवं समाज कार्य विभाग में बिहार फुले-अंबेडकर युवा मंच के तत्वावधान में आयोजित की गई.   कार्यक्रम की शुरूआत द्वीप प्रज्जवलन एवं पुष्पांजलि अर्पित कर की गई. कार्यक्रम की अध्यक्षता बिहार फुले-अंबेडकर युवा मंच के संरक्षक मान्यवर विलक्षण रविदास ने की.   वक्ताओं ने राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले के जीवन दर्शन पर विस्तार से चर्चा की एवं उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लिया. इतिहास की शोध छात्रा निमिषा राज ने कहा कि महिलाओं की शिक्षा में उनका योगदान अद्वितीय है। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के लिए लड़ाई लड़ी और सती प्रथा सहित कई अन्य सामाजिक कुरीतियों, जिसमें महिलाओं को निशाना बनाया जाता था, के खिलाफ आवाज़ उठाई। सबसे उल्लेखनीय आंदोलन में से एक ‘नाई हड़ताल’ थी। यह हड़ताल विधवाओं के मुंडन के खिलाफ थी। अम्बेडकर विचार एवं समाज कार्य विभाग की शोध छात्रा खुशबु कुमारी ने कहा कि सावित्रीबाई भारत की पहली शिक्षिका और प्रधानाध्यापिका हैं। उन्होंने देश में बहुत सारे सामाजिक सुधार...

ईसामसीह

 जीसस ने बचपन से बहुत आकर्षित किया  चरवाहे के घर पैदा हुआ  भेड़ें चराता रहा एक  निर्दोष जीवन जिया  महिला को सजा देने के लिए पत्थर मारने वाली भीड़ से कहा पहला पत्थर वो मारे जिसने पाप ना किया हो  कितने साहस की बात ? जीसस का जन्म का धर्म यहूदी था  तब तक कहा जाता था कि दांत के बदले दांत और आँख के बदले आँख ही धर्म है  जीसस ने पहली बार कहा कि नहीं यह धर्म नहीं है  बल्कि धर्म यह है कि कोई तुम्हारे एक गाल पर चांटा मारे तो तुम दूसरा गाल भी आगे कर दो  और कोई तुमसे कमीज़ मांगे तो तुम उसे अपना कोट भी दे दो  जीसस ने मन्दिर के बाहर बैठ कर सूद पर क़र्ज़ देने वाले साहूकारों को कोड़े मार कर भगाया  वह गरीब की तरह पैदा हुआ गरीब की तरह जिया  उसे भला होने के लिए सज़ा दी गई  जीसस को दो चोरों के साथ अपना सलीब खुद अपने कन्धों पर ढोने के लिए मजबूर किया गया  काँटों की टहनी उसके सर के चारों तरफ पहना दी गई  अंत में जीसस को लकड़ी के सलीब पर कीलों से ठोक दिया गया  वह गरीब की तरह पैदा हुआ  गरीब की तरह जिया  गरीबों के लिए जिया ...

वीणा और हिमांशु की संघर्ष गाथा : छत्तीसगढ़ में आदिवासी के जीवन के लिए...

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जब मैंने वीणा को पहली बार देखा तो वह दिल्ली के गाँव गाँव में अपने साथियों के साथ उनके मानवाधिकारों के लिए पदयात्रा कर रही थी  वीणा ने खादी का सलवार कुरता पहना हुआ था और उसके एक कंधे पर कम्बल तह करके रखा हुआ था , कंधे पर खादी का झोला था और सर पर खादी का गमछा बांधा हुआ था  इसके कई साल के बाद 1992  में एक ट्रेन के सफर में मैंने वीणा के सामने एक साथ रहकर आदिवासियों के लिए काम करने का प्रस्ताव किया  और मुझे पता ही नहीं था कि वीणा कब से मुझे पसंद करने लगी थी वीणा ने तुरंत हाँ कर दी  हम दोनों ने अपने घर वालों को अपने फैसले की सूचना दी  दोनों के परिवार वाले बहुत खुश हुए और तीन महीनों के भीतर बीस नवम्बर के दिन ही हम दोनों की शादी हो गई  शादी के बीस दिन बाद हम दोनों ने अपना सामान पैक किया और हम दोनों बस्तर के एक गाँव में जाकर रहने लगे  गाँव में वीणा के मेकअप बाक्स में हमने दवाइयां भरी और मलेरिया से मरते हुए आदिवासियों का इलाज करने लगे  उसके बाद हमने आदिवासियों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने और उन्हें संगठित करने का काम किया  धीरे धीरे वह...

आइए, हम छठ पूजा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को जानें और समझें !

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आइए, हम छठ पूजा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को जानें और समझें! *****"*"*"*"*"*************"***"********** आज से चार दिनों तक चलने वाला छठ पर्व की शुरुआत नहाय- खाय (स्नान कर कद्दू की सब्जी और चावल भोजन करने से) होगी। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को यह व्रत मुख्य रूप से शुरु होता है, इसलिए लोग इसे छठ पूजा के नाम से पुकारते हैं।यह व्रत और पर्व इस अर्थ में अधिक महत्व का है कि यह मुख्य तौर पर बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश के लोगाें  द्वारा आयोजित किया जाता है। यहां के लोग भारत के विभिन्न प्रदेशों में स्थाई और अस्थाई तौर पर निवास करते हैं और बहुत लोग विदेशों में भी जा बसे हैं, इसलिए वे लोग उन स्थानों पर भी इस पर्व को मनाते हैं। इस व्रत की विशेषता यह है कि इसमें कृषि जनित अन्न,सब्जी, फल -फूल तथा गाय- भैंस पशु के दूध,घी, गोबर और नदी, सरोवर, पोखर आदि के जल से सूर्य की उपासना की जाती है। इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि घर द्वार की पूर्णतः सफाई की जाती है।व्रत करने वाले लोगों के द्वारा उपवास करने और फिर अस्ताचलगामी सूर्य एवं उदयमान सूर्य को अर्घ्य देकर उपासना के...

गणेश पूजा के इतिहास और संस्कृति को हम जानें और समझें...

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Social Justice (socialjusticesj.blogspot.com) आज गणेश चतुर्थी से पूरे देश भर में गणपति पूजा की हो रही है। महाराष्ट्र एवं  गुजरात में तो यह दस दिवसीय राजकीय पूजा का रूप ग्रहण कर चुका है। बिहार सहित पूरे हिन्दी भाषी क्षेत्रों में भाद्र माह अर्थात भादो महीने के शुक्ल चतुर्थी को चौठचंदा या चौरचंदा के नाम से महिलाओं द्वारा पति और बेटे की दीर्घायु जीवन के लिए चांद की पूजा का व्रत किया जाता है, जिसे गणेश पूजा के साथ भी जोड़ दिया गया है। वास्तव में यह गणेश या  गणपति पूजा है।इसकी शुरुआत गुप्तकाल के बाद हुई थी और बाद में इसे चांद की पूजा से जोड़ कर महिलाओं के बीच सदियों तक प्रचारित- प्रसारित किया गया। आधुनिक भारत में एक समारोह के रूप में महाराष्ट्र में इसकी शुरुआत स्वतंत्रता आंदोलन के प्रसिद्ध ब्राह्मणवादी नेता गंगाधर तिलक के द्वारा की गई थी। कोल्हापुर नरेश छत्रपति शाहूजी महाराज के द्वारा बहुजनों के लिए शिक्षा देने, छुआछूत खत्म करने, राजकीय पदों पर आरक्षण लागू करने एवं उनके अन्य समाज सुधार के कार्यक्रमों को देखकर ब्राह्मणवादी नेताओं और पुरोहितों में खलबली मच गई थी। उनके इन सुधार कार्यक्...

सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने जादुनाथ सिन्हा की थीसिस अपने नाम छपवा ली.

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https://www.facebook.com/rabindrakumar.mandal.1690/videos/3353200271659650/?idorvanity=439133580635381&mibextid=Nif5oz https://www.youtube.com/watch?v=wJbU4Foh7YM&t=25s यह पोस्ट पूरी तरह सत्य घटना पर आधारित है. इस पोस्ट में दर्ज सभी नाम वास्तविक हैं. मैं यह पोस्ट पूरी जवाबदेही के साथ लिख रहा हूँ. कहानी में छह प्रमुख किरदार हैं और तीन उच्च संस्थानों का वर्णन है. 1) जादुनाथ सिन्हा  2) सर्वपल्ली राधाकृष्णन  3) डॉ ब्रजेन्द्रनाथ सील  4) डॉ बीएन सील  5) आशुतोष मुखर्जी 6) श्यामा प्रसाद मुखर्जी संस्थान 1) कलकत्ता हाईकोर्ट 2) कलकत्ता विश्वविद्यालय 3) मैसूर विश्वविद्यालय ब्राह्मण कश्मीरी हो या बंगाली हो या तेलगु हो, इनमें गजब की एकता रहती है. 1921 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति थे आशुतोष मुखर्जी. इन्होंने औसत दर्जे के शिक्षक तेलगु नियोगी ब्राह्मण सर्वपल्ली राधाकृष्णन को 2011 किलोमीटर दूर मैसूर विश्वविद्यालय से निकालकर कलकत्ता विश्वविद्यालय में शिक्षक नियुक्त किया. बंगाली छात्रों को सर्वपल्ली राधाकृष्णन की भाषा शैली समझ में नही आती थी. जान पहचान के दम पर कलकत्ता ...

आरक्षण का विरोध करने वाले लोग

जाति आधारित आरक्षण का विरोध करने वाले लोग आमतौर पर निम्न बिंदुओं पर भी अपने तर्क और दावे प्रस्तुत करते हैं -  1. योग्यता की हत्या होती है - ज्यादातर आरक्षण विरोधी लोग यही तर्क देते हैं कि आरक्षण लागू होने पर योग्यता की हत्या होती है। वे कहते हैं कि उच्च शिक्षा जैसे मेडिकल, इंजीनियरिंग में अयोग्य लोगों को प्रवेश मिलेगा। जवाब - हजारों सालों से दबे-कुचले लोगों को मौका देने पर ही योग्यता आयेगी और वे अपने आपको योग्य बना लेंगे। यदि योग्यता ही एक मात्र मापदंड है तो पेमेंट-शीट, मंत्री कोटे, अफसर कोटे से अगड़े के बिगड़े बच्चों को प्रवेश देने में आपत्ति क्यों नहीं उठाते? कहीं इसलिए तो नहीं कि ये कोटे उन्हीं के लिए ही आरक्षित हैं? 2. आरक्षण से समाज में जातिवाद को बढ़ावा मिलता है और असली जरूरतमंदों को यानि निर्धनों को कोई लाभ नहीं मिलता है। जवाब - योग्यता तंत्र की दुहाई देने वाले लोग यह मानकर चलते हैं कि प्रतिभा और योग्यता उनकी जातियों की बपौती है। यह वैसा ही तर्क है जैसा कभी अंग्रेज हिन्दुस्तानियों के बारे में दिया करते थे कि हिन्दुस्तानियों को शासन की बागडोर सौंपी गई तो सब कुछ चौपट हो जाएगा। वा...

ग्रेट पेरियार नायकर के ईश्वर से कुछ सवाल

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1977 की बात है,मद्रास हाईकोर्ट में एक याचिका आई जिसमें कहा गया था कि तमिलनाडु में पेरियार की मूर्तियों के नीचे जो बातें लिखी हुई हैं, वे आपत्तिजनक हैं और लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाती हैं इसलिए उन्हें हटाया जाना चाहिए। याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि ईरोड वेंकट रामास्वामी पेरियार जो कहते थे, उस पर विश्वास रखते थे इसलिए उन के शब्दों को उन की मूर्तियों के पैडेस्टर पर लिखवाना गलत नहीं है। पेरियार की मूर्तियों के नीचे लिखा था- ‘ईश्वर नहीं है और ईश्वर बिलकुल नहीं है। जिस ने ईश्वर को रचा वह बेवकूफ है, जो ईश्वर का प्रचार करता है वह दुष्ट है और जो ईश्वर की पूजा करता है वह बर्बर है।’ ग्रेट पेरियार नायकर के ईश्वर से सवाल : 1. क्या तुम कायर हो जो हमेशा छिपे रहते हो, कभी किसी के सामने नहीं आते? 2. क्या तुम खुशामद परस्त हो जो लोगों से दिन रात पूजा, अर्चना करवाते हो? 3. क्या तुम हमेशा भूखे रहते हो जो लोगों से मिठाई, दूध, घी आदि लेते रहते हो ? 4. क्या तुम मांसाहारी हो जो लोगों से निर्बल पशुओं की बलि मांगते हो? 5. क्या तुम सोने के व्यापारी हो जो मंदिरों में लाखों टन सोना दबाये ब...

तानाशाही और अंधविश्वासों पर टिके हुए सामाजिक आधार

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उपनिवेश विरोधी संघर्ष के दौरान भारत के उच्च-वर्गीय नेताओं ने जान-बूझकर भारतीय राष्ट्रवाद को हिंदू राष्ट्रवाद के प्रतिनिधि रूप में पेश किया।  स्वाभाविक ही था कि उन्होंने इस राष्ट्रवाद को उन हिंदू ग्रथों में तलाश किया जो दलित-बहुजन को आध्यात्मिक रूप में अशुद्ध और ऐतिहासिक रूप से मूर्ख करार देती थीं। फुले, पेरियार और अंबेडकर को छोड़कर किसी भी और राष्ट्रवादी नेता ने राष्ट्रवादी विमर्श को धर्म-निरपेक्ष रखने और उसमें हिंदू चेतना की अवैज्ञानिकता की आलोचना को जगह देने का प्रयास नहीं किया। हिंदू धर्म को केन्द्र मे रखकर किया जानेवाला मुख्य धारा का समूचा विमर्श यही कहता है कि यह एक पवित्र धर्म रहा है, इसकी उत्पादन-विरोधी और विज्ञान -विरोधी नैतिकता पर कभी किसी ने कोई सवाल नहीं उठाया। इससे अविकास की एक विनाशकारी प्रक्रिया शुरू हुई। हिंदू आध्यात्मिक ने बौद्धिक गरीबी का निर्माण किस-किस तरह किया और भाऋत के आध्यात्मिक, सामाजिक और नैतिक तंत्र में अब हमारे पास क्या विकल्प हैं। देश को हिंदू धर्म की आध्यात्मिक तानाशाही और अंधविश्वासों पर टिके हुए सामाजिक आधार से रचनात्मक आध्यात्मिक के लोकतंत्र तक ले जान...

बहुजन राजनीति का मॉडल प्रदेश तमिलनाडु- 1912 ( जस्टिस पार्टी) से एम. के स्टालिन तक

तमिलनाडु में द्रविड़ बहुजन राजनीति  की औपचारिक शुूरूआत 1916 में तब हुई, जब जस्टिस पार्टी ने गैर-ब्राह्मण घोषणा-पत्र जारी किया। ब्राह्मणवाद बनाम गैर-ब्राह्मणवाद का संघर्ष ही इस घोषणा-पत्र का मूल स्वर था। तमिलनाडु (तब मद्रास प्रेसीडेंसी)  में ब्राह्मणों का वर्चस्व किस कदर था, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 1912 में वहां ब्राह्मणों की आबादी सिर्फ 3.2 प्रतिशत थी, जबकि 55 प्रतिशत जिला अधिकारी और 72.2 प्रतिशत जिला जज ब्राह्मण थे। मंदिरों और मठों पर ब्राह्मणों का कब्जा तो था ही जमीन की मिल्कियत भी उन्हीं लोगों के पास थी। इस प्रकार तमिल समाज के जीवन के सभी क्षेत्रों में ब्राह्मणों का वर्चस्व था 1915-1916 के आसपास मंझोली जातियों की ओर से सी.एन. मुलियार, टी. एन. नायर और पी. त्यागराज चेट्टी ने जस्टिस आंदोलन की स्थापना की थी। इन मंझोली जातियों में तमिल वल्लाल, मुदलियाल और चेट्टियार प्रमुख थे। इनके साथ ही इसमें तेलुगु रेड्डी, कम्मा, बलीचा नायडू और मलयाली नायर भी शामिल थे। 1920 में मोंटेग-चेम्सफोर्ड सुधारों के अनुसार मद्रास प्रेसीडेंसी में एक द्विशासन प्रणाली बनायी गयी जिसमें प्...

प्यार से रहना आसान, नफरत से रहना दूभर

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हिंदुओं में भक्ति का एक प्रकार होता है उसका नाम है विरोधी भक्ति कहते हैं जब आप किसी से खूब ज्यादा नफरत करते हैं तो असल में वह भी मोहब्बत का ही एक रूप होता है क्योंकि जिससे आप घृणा करते हैं आप हर वक्त उसी के बारे में सोचते रहते हैं किसी के बारे में हर वक्त सोचने से वह हमेशा आपके दिल में रहने लगता है और जो हमेशा आपके दिल में रहता है आपको उससे प्यार हो जाता है तो आपकी ना ना करते प्यार उसी से कर बैठे वाली हालत हो जाती है जब मैं छोटा था तो हमारी मां एक कहानी सुनाती थी एक चरवाहा था वह बहुत दुखी रहता था बचपन में उसके मां बाप मर गए थे वह गांव वालों के जानवर चराता था गांव वाले बदले में उसे बासी खाना दे देते थे  दुख सह सह कर धीरे-धीरे उसे भगवान से नफरत हो गई  जंगल में एक पुराना शिव मंदिर था वह गुस्से में जाकर रोज शिवलिंग को एक लात मारता था कई लोग थे जो जाकर शिव लिंग को जल भी चढ़ाते थे एक बार उस इलाके में बरसात जोर से हुई और बाढ़ आ गई  घर बह गए  शिव पर रोज जल चढ़ाने वाले अपना घर बार की फिक्र में पड़े थे लेकिन चरवाहे को शिवलिंग पर रोज लात मारना याद था चरवाहा बाढ़ में चढ़ी हुई नद...

सत्ता, नौकरियों एवं संपत्ति का बंटवारा वर्णों के क्रम के अनुसार ही है...

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आज भी भारत में, सत्ता, नौकरियों एवं संपत्ति का बंटवारा वर्णों के क्रम के अनुसार ही है, वर्ण व्यवस्था पूरी तरह लागू है-कुछ तथ्य  1- वर्तमान लोकसभा में (यानी 2019 में चुने गए सदन) कुल 543 सांसदों में 120 ओबीसी, 86 अनुसूचित जाति और 52 अनुसूचित जनजाति के हैं और हिंदू सवर्ण जातियों के सांसदों की संख्या 232 है। आनुपातिक तौर देखें, तो ओबीसी सांसदों का लोकसभा में प्रतिशत 22.09 है, जबकि मंडल कमीशन और अन्य आंकड़ों के अनुसार आबादी में इनका अनुपात 52 प्रतिशत है। इकनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित एक विश्लेषण के मुताबिक, आबादी में करीब 21 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले सवर्णों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व उनकी आबादी  से करीब दो गुना 42.7 प्रतिशत है।  52  प्रतिशत ओबीसी को अपनी आबादी के अनुपात से आधे से भी कम और सवर्णों को उनकी आबादी से दो गुना प्रतिनिधित्व  मिला हुआ है।  2-‘द प्रिंट’ में प्रकाशित एक विश्लेषण के अनुसार, 2019 में पीएमओ सहित केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में कुल 89 शीर्ष आईएएस अधिकारियों ( सचिवों) में से एक भी ओबीसी समुदाय से नहीं था और इनमें केवल एक एससी  औ...